Wednesday, January 15, 2025
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लघुकथाएं…जो सीधे दिल में उतरती हैं

*पुस्तक समीक्षा: घरों को ढोते लोग

फर की दूरियों को कम करती लघुकथा संग्रह की पुस्तक "घरों को ढोते लोग" संयोग से इस बार हाथ लग गई। इस संग्रह में किसानों, मजदूरों, कामगारों, कामवाली बाई आदि पर केंद्रित 71 लघुकथाएं संग्रहित हैं।

इन्हें पढ़ने के बाद ऐसा प्रतीत होता है मानो लेखकों ने बहुत नजदीक से इनकी समस्याओं को देखा हो। आजकल के इस दौर में भला इन पर कौन लिखना चाहता है? मैं इस लघुकथा संग्रह के सभी लेखकों को साधुवाद देता हूं, जिनकी लघुकथाएं सीधे दिल में उतरती हैं और एक चुभन छोड़ देती हैं।

रामेश्वर कांबोज ‘हिमांशु’ की लघुकथा काकभगोड़ा में किसान अपनी फसलों को बचाने के लिए नेताजी का पुतला ले आता है। रतन चंद्र रत्नेश की “बराबरी” लघु कथा में एक किसान जो अक्सर उच्च अधिकारी की पत्नी को सब्जी बेचता है और जब उसका लड़का टॉप करता है तो वह किसान मिठाई का डिब्बा लेकर मैडम के पास जाता है और उनके पूछे जाने पर कि लड़के को क्या बनाओगे जब बड़ा होगा तो उसका जवाब यह कि आप लोगों जैसा बड़ा अधिकारी। किसान के जाने के बाद मैडम द्वारा मिठाई का डिब्बा कूड़ेदान में फेंकना कहीं न कहीं उस सामंती सोच को दर्शाता है जो सोचती है कि उसके आगे कोई बड़ा न बन जाए ताकि उसके बने ताने-बाने में सब उलझे रहें।

राजेंद्र वर्मा की लघुकथा ‘मजबूरी का फैसला‘ में किसान सिंचाई के पानी में भ्रष्टाचार के कारण सोचता है कि इतनी कम जमीन से कुछ होता नहीं। लागत ज्यादा लगती है।‌ 20-25 लाख मिल जाएंगे जिसके ब्याज से घर तो चलेगा और वह पांव की बेड़ी यानी जमीन बेचने पर मजबूर हो जाता है। डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी की लघुकथा देशबंदी में किसान तीन काले कानूनों से परेशान होकर खेतबंदी करता है लेकिन उसका कोई हल नहीं निकलता।


सुकेश साहनी की लघुकथा ‘धूप-छांव’ में किसान के माथे पर लकीरें हैं कि पिछली बार की तरह सूखा पड़ जाएगा तो वह बर्बाद हो जाएगा। वहीं कृषि अधिकारी की पत्नी सोचती है कि सूखा पड़े जिससे पति भ्रष्टाचार करके पैसे लाए और वह किचन का सामान खरीद सके।
प्रेरणा गुप्ता की लघुकथा ‘यक्ष प्रश्न’ में मजदूर का होनहार बेटा कहता है कि सब पढ़-लिख जायेंगे तो आप लोगों के मकान कौन बनाएगा? डॉक्टर लता अग्रवाल ‘तुलजा‘ की लघुकथा ‘धूल भरी पगडंडी’ में गरीब मजदूर पन्नू का बेटा विदेश से यह सोचकर वापस आता है कि गांव से कोई पलायन न कर सके।

‘घरों को ढोते हुए’ पढ़ते समीक्षक योगेश योगी

सब लघुकथाएं बेहतरीन हैं। एक अच्छी पुस्तक पढ़ने का सौभाग्य मिला। धन्यवाद लघुकथाकार संपादक महोदय सुरेश सौरभ जी।

पुस्तक-घरों को ढोते लोग (साझा लघुकथा संग्रह)
संपादक- सुरेश सौरभ
प्रकाशन- समृद्धि पब्लिकेशन शाहदरा नई दिल्ली
मूल्य-₹245
वर्ष-2024

समीक्षक-योगेश योगी किसान (योगेश राजमणि लोधी)
पता-342 ख पुरानी बस्ती ग्राम पोस्ट सेमरवारा तहसील नागौद जिला सतना मप्र 485446
फोन -9755454999

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