Thursday, November 21, 2024
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‘ऑस्कर’ में गूंजेगी यूपी के मंझे हुए कलाकार अर्जुन सिंह के जीवंत अभिनय की गूंज

(फिल्म समीक्षा/लापता लेडीज़****)

"ला पता लेडीज'' फिल्म की मुख्य विषय वस्तु पर्दे/घूंघट के कारण दुल्हनों की अदला-बदली तो है ही लेकिन एक और महत्वपूर्ण पहलू पर दर्शकों और समीक्षकों का बहुत कम ध्यान गया है, वह है दहेज प्रथा। जया के खलनायक पति प्रदीप कुमार के पिता की भूमिका निभा रहे 'अर्जुन सिंह' के लिए आमिर खान प्रोडक्शन्स जैसे बड़े बैनर की यह पहली ही फिल्म एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। अर्जुन सिंह फिल्म की शुरूआत में कुछ ही समय के लिए नज़र आते हैं, लेकिन दर्शक मानते हैं कि बहुत ही सौम्यता और प्रभावशाली ढंग से उन्होंने अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है। फिल्म की मुख्य किरदार जया के खलनायक पति प्रदीप कुमार के पिता के रूप में वह अपनी दहेज लोभी तेज-तर्रार पत्नी के विचारों को मौन स्वीकृति देते हैं। बेटे की शादी करके आते ही, गर्व से भरे पिता की भूमिका बहुत ही सहजता से अर्जुन सिंह ने निभाई है।

अर्जुन सिंह-अभिनेता

अर्जुन सिंह फक्र से कहते हैं, “फिल्म में रोल कितना बड़ा है, महत्वपूर्ण यह नहीं है। सामाजिक विषय पर आधारित एक अच्छी फिल्म से जुड़ना मेरे लिए गर्व और हर्ष की बात है। यह फिल्म नये विमर्शों को, नये संदर्भों को असरदार ढंग से दर्शकों के समक्ष उठाती है। समाज के एक संवेदनशील मुद्दे के जरिए उन्हें झकझोरती भी है। सामाजिक चेतना जगाने वाली इस फिल्म से जुड़ना मेरे लिए वाकई बहुत महत्वपूर्ण है।”

कई सूत्रों के हवाले से जानकारी मिली है कि यह फिल्म ‘नेटफ्लिक्स’ पर सबसे ज्यादा देखी और सराही जा रही है। भारत की ओर से ऑस्कर में भी जा चुकी है, अब इसमें कोई संदेह नहीं कि चरित्र अभिनेता अर्जुन सिंह की फिल्म के चयन की समझ और विषय की पकड़ बहुत सुलझी हुई सार्थक है। इससे पहले अर्जुन सिंह फिल्म डिवीज़न ऑफ़ इंडिया द्वारा निर्मित ‘वीर चंद्र सिंह गढ़वाली’ पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म में वीर चंद्र के गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा चुके हैं।

अर्जुन सिंह एक सामान्य पृष्ठभूमि से आते हैं। वर्तमान में वह यूपी के बिजनौर जिले में जिला सहकारी बैंक लिमिटेड में प्रबंधक के पद पर कार्यरत है। बचपन से ही कला और रंगमंच में उनकी विशेष रुचि रही है। स्कूल-कॉलेज के दिनों से ही वे समाज को शिक्षा और मार्गदर्शन देने वाले नाटकों में कुशल-जीवंत अभिनय करते रहे हैं । दहेज प्रथा, जाति भेद, भ्रष्टाचार जैसे अनेक ज्वलंत विषयों पर आधारित नाटकों में अलग-अलग सशक्त किरदार निभाए हैं और समाज में जागृति लाने के निरंतर सार्थक प्रयास करते रहे हैं।

अर्जुन सिंह का अभिनय से प्रेम और कला से जुड़ाव इतना मजबूत है कि वह परिवार की आजीविका चलाने के लिए नौकरी भी करते रहे और अपने अंदर के कलाकार को जिंदा रखने के वास्ते नाटकों-फिल्मों के जरिए संघर्ष भी। उनकी पहली ही फिल्म आमिर खान के प्रोडक्शन और किरण राव के निर्देशन में बनी है। यह भी उनके अंदर के कलाकार और अभिनेता के लिए कम गौरव की बात नहीं है।

अर्जुन सिंह की पहली ही फिल्म ने ऑस्कर में प्रवेश कर इतिहास रच दिया है। खास बात यह भी है कि अर्जुन की बॉलीवुड में न तो कोई अप्रोच है और न ही उनका कोई गॉडफादर है। पारिवारिक पृष्ठभूमि भी निम्न मध्य वर्गीय ही रही है। अपने संघर्ष के दम पर अर्जुन सिंह ने इस महत्वपूर्ण फिल्म में अपनी मौजूदगी दर्ज करके बहुत से संघर्षरत कलाकारों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।

'लापता लेडीज' को प्रसिद्ध असमिया निर्देशक 'जाह्नु बरुआ' की अध्यक्षता वाली फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया की तेरह सदस्यीय जूरी द्वारा भारत की ओर से निकट भविष्य में आयेजित होने वाले 97वें ऑस्कर अवार्ड समारोह में भेजने की घोषणा की गई है। भारत की ओर से जूरी ने इस फिल्म को चुनते हुए यह कहा है कि "लापता लेडीज ऐसी फिल्म है जो न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी महिलाओं को प्रेरित-प्रोत्साहित आकर्षित कर सकती है। साथ ही सबका स्वस्थ मनोरंजन करने में भी सक्षम है।" जूरी के शब्दों में-भारतीय महिलाएं अधीनता और प्रभुत्व का एक अजीब-अद्भुत मिश्रण हैं।"

इस साल विभिन्न भारतीय भाषाओं में बनी 29 फिल्मों को पीछे छोड़कर 'लापता लेडीज' फिल्म ऑस्कर की दौड़ में शामिल हुई है। समिति द्वारा 97वें ऑस्कर पुरस्कारों में भारत की ओर से जिन फिल्मों पर विचार किया गया उनमें कल्कि 2898 ई., ऑल वी इमेजिन ऐज़ लाइट, वाज़हाई, थंगलान, चंदू चैंपियन, सैम बहादुर, स्वातंत्र्य वीर सावरकर, मैदान और जोराम आदि प्रमुख हैं। 'लापता लेडीज' भारत की ओर से सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय फिल्म श्रेणी के लिए विश्व के अन्य 52 देशों से आई हुई फिल्मों से मुकाबला करेगी।

'लापता लेडीज' में महिलाओं के प्रति होने वाले लैंगिक भेदभाव और रुढ़िवादी परंपराओं की सामान्य सी दिखने वाली विषय वस्तु को दो महिला चरित्रों के माध्यम से बहुत ही प्रभावशाली तरीके से पेश किया गया है। जहां एक ओर भारतीय महिलाएं नासा से लेकर इसरो तक अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं, जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, वहीं दूसरी ओर रूढ़िवादी समाज में महिलाएं आज भी 'लापता सी' जिंदगी से बाहर निकालने के लिए निरंतर संघर्ष कर रही हैं। अनेक कष्ट सह रही हैं।

अर्जुन सिंह के बारे में यूपी के लखीमपुर खीरी जनपद के लोग बताते हैं कि जब वे कक्षा तीन के छात्र थे तो लखीमपुर में ऐतिहासिक दशहरा मेला मंच पर बाल नाटिका में इतना मार्मिक-प्रभावशाली और जीवंत अभिनय किया था कि हजारों दर्शकों की तालियों से पूरा पांडाल देर तक गूंजता रहा था। फिल्म की कथा बताती है कि आज भी भारत में कुछ हिस्से ऐसे हैं, जहां नारी जागृति की चेतना न्यूनतम है।

फिल्म के आरंभ में ही कुछ दुल्हनें ट्रेन के एक ही डब्बे में बैठी हुईं हैं, उनमें से दो दुल्हनों जया और फूल की अदला-बदली हो जाती है क्योंकि दोनों घूंघट में अपना पूरा चेहरा छुपाए हुए हैं। रात का वक्त है, अंधेरा है, ट्रेन रुकती है। सोते यात्री हड़बड़ी में जागकर ट्रेन से उतर जाते हैं। यहां घूंघट मात्र चेहरा छुपाने का जरिया नहीं है, बल्कि फिल्मकार ने एक सामाजिक रूपक के रूप में इसका प्रयोग किया है। पूरी फिल्म एक सस्पेंस बनाए रखती है, साथ ही दोनों दुल्हनें अपने-अपने विश्वास, सच्चाई और संघर्ष के साथ जटिल परिस्थितियों से बाहर आती हुई दीख पड़ती हैं। वे अपनी अस्मिता की पहचान और प्रतिष्ठा को बचाने के संघर्ष में दर्शकों के मन पर कुछ महत्वपूर्ण सवाल छोड़ जाती हैं। कुल मिलाकर दर्शकों को बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है यह फिल्म।

समीक्षक-सुरेश सौरभ, लखीमपुर खीरी

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