एफएनएन ब्यूरो, लखीमपुर खीरी। खीरी जिले के दुधवा नेशनल पार्क में 66 साल बाद फिर से दुर्लभ प्रजाति का सीबोल्ड सांप देखा गया है। इससे पहले दुधवा में ही वर्ष 1957 में इस प्रजाति का सांप देखा गया था।
सीबोल्ड सांपों की एक ऐसी विशिष्ट प्रजाति है जो सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप में ही पाई जाती है। यह प्रजाति छोटी मछलियों, मेंढकों को अपना आहार बनाती है। दुधवा पार्क के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. रंगाराजू टी. ने बताया कि इस प्रजाति को सबसे पहले 1837 में जर्मन हर्पेटोलाजिस्ट हर्मन श्लेगेल द्वारा भारत में खोजा गया था और जर्मन वनस्पति वैज्ञानिक फिलिप फ्रांज बाल्थासार वॉन सीबोल्ड के नाम पर इस प्रजाति का नामकरण किया गया था।
पहली बार 1907 में यूपी के फैजाबाद में दिखा था
उत्तर प्रदेश में पहली बार 1907 में यह सांप फैजाबाद में देखा गया था। दुधवा के एफडी ललित वर्मा और डीडी डॉ. रंगाराजू टी. ने इस प्रजाति की आर्दभूमियों के सरंक्षण व अध्ययन करने की बात भी कही है, ताकि इस प्रजाति के संरक्षण पर भी जोर दिया जा सके।
दुधवा में वन्य जीवों संग सरीसर्पों के भी नैसर्गिक आवास
डॉ. रंगाराजू टी. ने बताया कि दुधवा के बफर जोन में दुर्लभ प्रजाति के सीबोल्ड सांप के मिलने से यह प्रतीत होता है कि दुधवा में वन्यजीवों के साथ ही सरीसृपों को भी बेहतर वातावरण मिल रहा है और वे सब यहां के जंगल को अपना नैसर्गिक घर मानने लगे हैं। लगातार दुर्लभ प्रजातियों के सांप मिलने से दुधवा भी इन सरीसृप प्रजातियों के लिए प्रसिद्ध हो रहा है।
पहले बंशीनगर, फिर दुधवा में दिखी सरीसर्प की यह दुर्लभ प्रजाति
डीडी डॉ. रंगाराजू टी. ने बताया कि 27 अक्तूबर को बायोलॉजिस्ट अपूर्व गुप्ता व प्रतीक कश्यप को सूचना मिली थी कि बंशीनगर गांव में दीपक व सुधीर के यहां सांप निकला है। दुर्लभ प्रजाति का होने के कारण टीम ने उसे पकड़ा और उसको रिकॉर्ड करते हुए जंगल में छोड़ दिया गया। अगली सुबह फिर पलिया के दुधवा मार्ग स्थित एक रिजॉर्ट के पास इस प्रजाति के सांप को देखा गया और मिलान किया गया तो यह सीबोल्ड प्रजाति का ही सांप निकला।