कोरोना की आंधी (पहली लहर) में मोदी सरकार द्वारा उठाए जोखिम भरे निर्णय से धन की हानि अधिक, जन की कम हुई थी। हम कह सकते हैं उस आंधी से देश लगभग बच गया था। अब कोरोना की सुनामी आयी है। हम सभी जानते हैं सुनामी से होने वाले विनाश का पता उसके थमने के बाद ही चलता है। सुनामी को हम रोक तो नही सकते परन्तु सरकारें अपनी तैयारी से विनाश को कम से कम कर सकती हैं।
आज पूरा देश जैसे लाचार नजर आ रहा है। अस्पतालों में बेड,आक्सीजन और दवाओं का अभाव है, इसके लिए राज्य सरकारों के साथ केंद्र सरकार भी बराबर की जिम्मेदार है। आपदा प्रबंधन में हम असफल साबित हुए। आप विश्व परिदृश्य में देखें तो पहली लहर में अमेरिका और यूरोप की सरकारें भी लाचार नजर आईं थी, परन्तु सुनामी में उन्होंन अपने उत्तम आपदा प्रबंधन से अपने दशों को बचा लिया। कोरोना आंधी में देश की सरकार और जनता ने इससे बचाव के लिए सब कुछ झोंक दिया था, आज वे दिखाई नही दे रही हैं। जैसे जब जब कुम्भ आता है , तैयारियाँ युद्ध स्तर पर चलती हैं, परन्तु अगले कुम्भ पर सबकुछ नदारद वही हाल आज इस महामारी से हुई तैयारियों का भी दिखाई दे रहा है। सरकार तो इसके लिए सौ प्रतिशत उत्तरदायी है ही, चुनावी रैलियों व कुम्भ कर जनता को वेपरवाह बना दिया। हमारे विपक्ष का हाल तो उससे भी गया गुजरा है। सरकार की पहली तैयारियों की जमकर आलोचना, उसके बाद किसान रैलियों में हर दल ने किसान आंदोलन के नाम पर देश के तमाम हिस्सों में भीड़ बटोरकर भरपूर अराजकता फैलाने का प्रयास किया। और तो और वैक्सीन को लेकर जिस तरह विपक्ष का रवैया रहा वह तो अपराध की श्रेणी में गिना जाना चाहिए। अब भी समय है, सारे मतभेद भुलाकर सरकार और विपक्ष को एक ठोस और दीर्घकालीन नीति बनाकर इससे निपटना होगा, अन्यथा अनर्थ हो जाएगा । रह गई जनता, वह तो स्वेच्छा से या सरकार के भय से सबकुछ करने को तैयार है।
जेबी सिंह, समाजसेवी (रुद्रपुर)