एफएनएन, चंडीगढ़: चाहे पटियाला से परनीत कौर हों, फरीदकोट से हंसराज हंस या फिर अमृतसर से भाजपा प्रत्याशी तरणजीत सिंह संधू हों, सभी को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा प्रत्याशियों को प्रचार के लिए गांव में घुसने नहीं दिया जा रहा है।
- किसान संगठन तीन कृषि कानूनों के बहाने अब भाजपा के उम्मीदवारों को यह कहते हुए गांवों में घुसने नहीं दे रहे हैं कि इन्होंने हमें दिल्ली में घुसने नहीं दिया था।
- इस मुद्दे को हवा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटी की मांग को लेकर शंभू बार्डर पर बैठे किसानों के धरने से और मिल रही है।
- भारतीय किसान यूनियन डल्लेवाल और किसान मजदूर संघर्ष कमेटी की अगुवाई में किसान संगठनों ने करीब तीन महीने से पटियाला जिले के शंभू और संगरूर जिले के खनौरी बॉर्डर पर नेशनल हाईवे जाम कर रखा है। 17 अप्रैल से किसानों ने शंभू रेलवे स्टेशन पर रेल ट्रैक पर भी अनिश्चितकालीन धरना लगाया हुआ है।
- नेशनल हाईवे और रेल ट्रैक बंद होने के कारण वाहनों व ट्रेनों को रूट डायवर्ट कर चलाया जा रहा है। इससे आम लोगों के अलावा कारोबार पर भी बुरा प्रभाव पड़ने लगा है, लेकिन किसान पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
- गत शनिवार को पटियाला के गांव आकड़ी के किसान सुरिंदर सिंह की मौत भी भाजपा प्रत्याशी परनीत कौर का घेराव करने के दौरान हुई।
- प्रशासन की छह दिन की मशक्कत के बाद किसान संगठन शव का अंतिम संस्कार करने को राजी हुए हैं। सुरिंदर के पड़ोसी गांव शंकरपुरा के सुखजिंदर सिंह ने भी सवाल किया कि पिछले धरने में मेरा सारा परिवार गया था। एक वर्ष तक हम संघर्ष करते रहे, लेकिन केंद्र सरकार ने दिल्ली में घुसने नहीं दिया। अब भाजपा के प्रत्याशी किस मुंह से गांवों में आ रहे हैं।
- भाजपा प्रत्याशियों के पास इसका कोई जवाब नहीं है। फरीदकोट से सांसद हंसराज हंस किसान संगठनों से कह रहे हैं कि उनकी जो जायज मांगें हैं, वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से हल करवाकर लाएंगे नहीं तो फरीदकोट से बाहर नहीं जाएंगे। इसी तरह के आश्वासन अमृतसर में तरनजीत सिंह संधू भी दे रहे हैं, लेकिन विरोध थम नहीं रहा।
‘किसान उम्मीदवारों के प्रचार में विघ्न न डालें’
राज्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए मुख्य चुनाव अधिकारी सिबिन सी ने सभी जिला चुनाव अधिकारियों (डिप्टी कमिशनरों), पुलिस कमिश्नरों और एसएसपी को निर्देश जारी किए हैं।
सभी संबंधित अधिकारियों को जारी पत्र में मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने कहा कि उनके ध्यान में आया है कि राज्य के अलग-अलग हिस्सों से चुनाव प्रचार में विघ्न डालने की कई घटनाएं हो रही हैं, जिसमें आंदोलनकारी किसानों द्वारा उम्मीदवारों को चुनाव प्रचार करने से रोका जा रहा है। इस कारण वह नागरिकों को अपने चुनाव घोषणा-पत्र से अवगत नहीं करवा पा रहे।
यह निर्वाचन आयोग की हिदायतों का उल्लंघन है। उन्होंने सभी पार्टियों के उम्मीदवारों की सुरक्षा के लिए एक समान माहौल यकीनी बनाने को भी कहा है। उन्होंने कहा कि उम्मीदवारों की सुरक्षा यकीनी बनाना जिला चुनाव विभाग की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
यह भी देखा गया है कि सीआरपीसी की धारा 144 के तहत जिला मजिस्ट्रेट की तरफ से जारी आदेश के बावजूद प्रदर्शनकारी किसानों द्वारा बिना इजाजत के सभाएं करने के अलावा लाउड स्पीकरों का प्रयोग भी किया जा रहा है। हालांकि यह नियमों का उल्लंघन है, हर किसी के लिए अनुमति लेना जरूरी है।
संयुक्त किसान मोर्चा के एक प्रतिनिधिमंडल ने वीरवार को राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) सिबिन सी से मुलाकात की। किसान नेताओं ने मुख्य चुनाव अधिकारी से कहा कि किसान प्रचार करने आ रहे भाजपा, आम आदमी पार्टी, कांग्रेस व शिअद समेत सभी राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों से सवाल पूछेंगे, क्योंकि वे देश व समाज के प्रतिनिधि बनने जा रहे हैं। हमारा सभी से सवाल पूछने का अधिकार भी है।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने ऐसे कार्यक्रम से पहले जिला प्रशासन से अनुमति लेने का अनुरोध किया तो किसान नेताओं ने स्पष्ट कर दिया कि किसानों ने पूर्व में किसी भी धरना-प्रदर्शन के लिए अनुमति नहीं ली है और न आगे भी ऐसी कोई अनुमति लेंगे। किसानों ने कहा कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि लोग अब अपने प्रत्याशियों से सवाल पूछ रहे हैं, जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है।
संयुक्त किसान मोर्चा के नेता भारतीय किसान यूनियन लक्खोवाल के अध्यक्ष हरिंदर सिंह लक्खोवाल, भारतीय किसान यूनियन कादियां के अध्यक्ष हरमीत सिंह कादियां और भारतीय किसान यूनियन राजेवाल के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल ने मुख्य चुनाव अधिकारी को आश्वासन भी दिया कि वह किसानों से अनुरोध करेंगे कि वे हिंसक न हों लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से सवाल पूछना जारी रखें।
किसान आंदोलन पर एक नजर
- पांच जून 2020 को जब कृषि के लिए ऑर्डिनेंस जारी किए गए तो सितंबर महीने में किसानों ने संघर्ष शुरू कर दिया।
- 24 सितंबर 2020 को पंजाब में किसानों ने तीन दिन के रेल रोको आंदोलन की घोषणा की।
- 26 सितंबर 2020 को शिअद कृषि विधेयकों पर भाजपा समर्थित राजग छोड़कर अलग हो गया।
- 27 सितंबर 2020 को कृषि विधेयकों को राष्ट्रपति ने मंजूरी दी और फिर ये कृषि कानून बने।
- 25 नवंबर 2020 को पंजाब और हरियाणा में किसान संगठनों ने ‘दिल्ली चलो’ आंदोलन का आह्वान किया।
- 3 दिसंबर 2020 को केंद्र सरकार ने किसानों के प्रतिनिधियों के साथ पहले चरण की वार्ता की इसके बाद पांच दिसंबर, आठ दिसंबर से होती हुई चार जनवरी 2021 तक सात दौर की बातचीत हुई।
- 4 जनवरी 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने नए कानूनों को चुनौती देने वाली और प्रदर्शनों के खिलाफ याचिकाओं पर 11 जनवरी को सुनवाई के लिए राजी हो गया।
- 12 जनवरी 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाई, कानूनों पर सिफारिशें देने के लिए चार सदस्यीय समिति गठित की।
- 26 जनवरी 2021 को गणतंत्र दिवस पर किसान यूनियनों ने बुलाई ट्रैक्टर परेड के दौरान हजारों प्रदर्शनकारियों की पुलिस के साथ झड़प हुई।
- 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की।