नोएडा में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार संतोष त्रिपाठी ‘प्रखर’ अपना पहला हिंदी उपन्यास ‘राजधर्म…एक अनकही गाथा’ लेकर आए हैं। हंस प्रकाशन दिल्ली ने इसे प्रकाशित किया है और इसकी खानी 266 पृष्ठों में कही गई है। उपन्यास की लगभग 11 सौ वर्ष पूर्व की कहानी पाठकों को खूब भा रही है और उपन्यास ने आते ही अमेजन पर ट्रेंड करना शुरू कर दिया है। हिंदी के चार-पांच बड़े अखबारों में काम कर चुके संतोष त्रिपाठी ने उपन्यास के पात्रों के संवाद भी बहुत दमदार लिखे हैं और कहानी का उतार-चढ़ाव पाठकों को पहले पेज से लेकर आखिर तक बांधे रखता है।
कहानी का नायक वीर प्रताप उर्फ वीरा अपनी जिंदगी के असहनीय कष्टों को झेलते हुए पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों को बचाने की लड़ाई लड़ता है। इस प्रक्रिया में वह अपने राज्य सुमेरगढ़ व उसके राजघराने के खिलाफ षड्यंत्रों को रोकता है और इस दौरान उजगार होने वाले कई रहस्य पाठकों को अचंभित तथा रोमांचित करते हैं। यह कहानी भले ही वीरा की है, किंतु उपन्यास के अन्य किरदार भी पाठकों के हृदय को गहराई तक छूटे हैं और उन्हें कई बार अनायास ही इस बात का अहसास करा देते हैं कि यह कहानी उनकी ही है। यह कहानी जहां तांत्रिक ज्याशंकर के प्रतिशोध को दिखाती है, वहीं वीरा की प्रेयसी मंझारी के अपने प्रेम पर विश्वास का भी प्रतिघोष करती है।
उपन्यास में प्रेम, ईमानदारी, राजनीति, कूटनीति, ज्योतिष, तंत्र, षड्यंत्र और युद्ध सभी कुछ हैं, जो हर तबके तथा आयु वर्ग के पाठकों का मनोरंजन करते हैं। षडयंत्र और धूर्तता होने के बावजूद उपन्यास में उपन्यासकार ने राष्ट्रप्रेम, राजधर्म, प्रेम की पवित्रता, ईमानदारी और सामाजिक मूल्यों को बखूबी स्थापित किया है। अमेजन पर उपन्यास के बारे में पाठकों के रिव्यू भी अच्छे आ रहे हैं। उपन्यास पढ़ने के शौकीन लोग https://amzn.to/359W7nS लिंक पर जाकर अमेजन से इस राजधर्म पुस्तक खरीद सकते हैं। संतोष त्रिपाठी प्रखर उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के श्री कांत का पुरवा गांव के रहने वाले हैं। इनका बचपन ग्रामीण परिवेश में गुजरा है और इन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर किया है। 2015 में इनका काव्य संग्रह ‘ख्वाबों का वीराना’ उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ से प्रकाशित हो चुका है।