आज़ादी के इतने बरसो के बाद भी भारतीय पद्धती में सार्वजनिक शिक्षा की व्यवस्था का ना होना एक तरह से अपने ही खेतो के पेड़ो मे खाद – पानी की जगह मट्ठा डालने के समान है । सदियो की गुलामी का इतना ब्यापक असर रहा कि हमारे हुक्मरान, नीति नियंता आज तक गलफत मे है । नर्सरी, से लेकर प्राथमिक , माध्यमिक , उच्चशिक्षा ,प्रावधिक ,तकनीकी एवं शोध भी अंको के मोहपाश से बाहर नहीं निकल पा रही है ।हमारी सारी पढ़ाई,लिखाई ,शैक्षणिक क्रियगतिविधि ,मूल्यांकन,परीक्षण,पर्यवेक्षण से लेकर विभिन्न प्रतियोगिताओ में सफलता अंको के दीवानी बनी हुई है। सारे विद्यार्थी ,अध्यापक ,विध्यालय, विश्वविध्यालय, यहा तक की अन्वेषण संस्थान भी अंको के भरमजाल में पल बड़ रहे है। और अंको की फसल की कमाई की खेती खूब फल फूल रही है। माता-पिता ,अभिवावक,चिर परिचित साल भर की सारी कवायद को अपने पाल्यों के द्वारा अर्जित अंक के पैमाने से ही मापते है। जैसे अंक जीवन की सफलता का पर्यायवाची बन गया हो। अंको की अधिकता शिक्षा की उद्देशय को दिन प्रतिदिन संकुचित बना रही है और कमज़ोर कर रही हैं।जरूरत एक समग्र सोच के साथ सही मायने में सफल व ज़िम्मेदारी का एहसास करने वाले नागरिकों का निर्माण करना होना चाहिए । लेकिन अफसोच ,हम अभी तक विदेशों की जमीं का प्रयोग,अनुप्रयोग ही करते चले आ रहे है। यह ठीक उसी प्रकार से है जैसे कोई विदेशी जादूगर हमसे कहे कि मेरे पास एक रत्न है जो यह बताएगा कि के आप अपने घर से प्यार करते है या नही। जब इस रत्न को पहनने पर इसका रंग काला हो जाय तो समझ लो आप अपने परिवार से प्यार नही करते और अगर गुलाबी आये तो कड़ाते है। ये क्या बात हुई?। हम सब उसकी बात को सच समझ कर अपने को उसके हवाले सुपूर्द कर देते है। और तैयार हो जाते है कि एक मामूली से पत्थर के टुकड़े से अपना बही खाता बनवाने। भई अगर रत्न का रंग काला भी पड़ जाय तो क्या हम प्यार के इस इम्तिहान में असफल हुए। एक छोटा सा रत्न हमारे घर संसार के प्यार की मात्रा को नापेगा और बताईएगा की हम प्यार करते है या नही। कितनी हास्यपद व हल्की बात है। और हम मान भी जाते है। क्योंकि यह टेस्ट विदेशो से मंगवाया जो गया है और हम नकल कर रहे होते है। प्यार किसी प्रदर्शन की चीज नही यह तो एक एहसास है जो हमारे चरित्र से,मनोभावों से परिलक्षित होती है। बस ठीक यही बात हमारी शिक्षा की परीक्षा प्रणाली से है। अंक अर्जीत करो, करते जाओ फिर प्रदर्शन । आखिर अच्छी शिक्षा ग्रहण,शिक्षित, सभ्य होने, समझदार होने,ज़िम्मेदार होने, संवेदनशीलता की अनुभूति कब होंगी?. होगी भी या नही??। जिस प्रकार एक छोटा सा ताबीज़ आपके प्यार का इम्तिहान नही ले सकता उसी प्रकार अंक आपके जीवन को नही माप सकते। अंक गिने जाते है और हर गिनी हुई चीज खत्म हो जाती है। इसीलिए शिक्षा जीवन के लिए हो अंको के लिए नही।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’
उत्तराखंड
(लेखक शिक्षा के क्षेत्र के विशेषज्ञ है दो दशकों से अधिक समय तक देश के प्रतिष्ठित एवं ख्यातिप्राप्त बिरला विद्या मंदिर, नैनीताल सहित नवोदय विद्यालय पिथोरागढ़ और वर्तमान में उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा से जुड़े है)