
एफएनएन ब्यूरो, बरेली। शहर की प्राचीनतम एवं प्रतिनिधि साहित्यिक संस्था ‘साहित्य सुरभि’ की 370वीं नियमित मासिक काव्य गोष्ठी बुधवार को केडीईएम इंटर कॉलेज के स्टाफ रूम में वरिष्ठ शिक्षक एवं संस्थाध्यक्ष रामकुमार कोली के संयोजकत्व और हास्य रस के श्रेष्ठ कवि पी. के. दीवाना के सौजन्य से संपन्न हुई। संस्था के संस्थापक अध्यक्ष और सबसे वयोवृद्ध एवं वरिष्ठतम कवि-साहित्यकार राममूर्ति गौतम ‘गगन’ के बीते दिनों गोलोक गमन पर कवियों ने उन्हें भावभरी श्रद्धांजलि अर्पित की।

गोष्ठी की अध़्यक्षता पांच दशक से भी अधिक समय से साहित्यिक सेवाएं दे रहे बरेली के वरिष्ठतम कवि-साहित्यकार और ‘साहित्य सुरभि’ की 200 से भी अधिक गोष्ठियों की मध्यक्षता और सफल संचालन कर चुके रणधीर प्रसाद गौड़ ‘धीर’ ने की। मुख्य अतिथि का दायित्व वरिष्ठ साहित्यकार हिमांशु श्रोत्रिय ‘निष्पक्ष’ ने निभाया। विशिष्ट अतिथि चर्चित गीतकार कमल सक्सेना रहे।
गोष्ठी का शुभारंभ अध्यात्म के चर्चित कवि रीतेश साहनी और मनोज दीक्षित ‘टिंकू’ की सरस वाणी वंदना से हुआ।

कवि सुरेश ठाकुर ने स्मृति शेष मूर्धन्य साहित्यकार गौतम गगन जी को प्रांजल भाषा में अनूठी भावाभिव्यक्ति के साथ कुछ इस तरह काव्यमय श्रद्धांजलि दी-
द्वार तक निर्वाण के,
द्वार तब पहुंचा पथिक हारा सृजन का।
हो गया लो गगन में ध्यानस्थ,
वो तारा गगन का।
सशक्त कवयित्री किरन प्रजापति ‘दिलवारी’ ने ये गीत सस्वर सुनाए तो सब पूरे समय साथ-साथ गाते और झूमते ही रहे-
मंदिर तोड़-तोड़ बनवाईं, मस्जिद वहीं पे क्यों चुनवाईं?
भरत का लाल पश्चाताप से धरती पे सोता है…
….हरेक युग में वहां राम को वनवास होता है।
अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठतम कवि-साहित्यकार रणधीर प्रसाद गौड़ ‘धीर’ की इस ग़ज़ल के हर शेअर पर काव्य रसिक देर तक वाहवाह करते और तालियां बजाते रहे-
तुम क्या गए चमन के नज़ारे चले गए।
महफिल से उठके दर्द के मारे चले गए।
पानी के साथ बहके किनारे चले गए।
जैसे भी गुजरी उम्र गुजारे चले गए।

मुख्य अतिथि हिमांशु श्रोत्रिय ‘निष्पक्ष’ ने गगन जी की दिवंगत आत्मा की परम शांति के लिए कुछ इस तरह प्रार्थना की-
है विनम्र श्रद्धांजलि मुक्त करें हनुमान
काव्य गगन के गगन जी थे नक्षत्र महान।
वरिष्ठ साहित्यकार ब्रजेंद्र तिवारी ‘अकिंचन’ ने वाणी पुत्रों की सभा को अपनी इस भावांजलि से गति दी-
तुम क्या गये प्रसून गीतमय उपवन चला गया,
अनुरागमयी, मधुगन्धमयी शुभ चन्दन चला गया।
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उन्होंने अपने इस छंद से भी खूब वाहवाही बटोरी-
थल में जग जन्म महोत्पल यूं न लिया
न लिया जल बिंदु कभी उसने तज दीं लपटीं छिटकी बुंदियां।
बुदियां जल जीवन गीत निधे क्षण भंगुर प्यास व्यथा दुनिया
दुनिया लख हस्त सिकंदर के कहती हुलिया न दिया नदिया।
‘साहित्य सुरभि’ की स्थापना से ही छाया की तरह (अब स्मृतिशेष) गगन जी का निरंतर साथ देते रहे गोष्ठी के संयोजक और इस संस्था के वर्तमान अध्यक्ष रामकुमार कोली ने उन्हें काव्यमय भावपूर्ण श्रद्धांजलि देने के साथ ही प्रयागराज में चल रहे धर्म और आस्था के वैश्विक जनज्वार ‘महाकुंभ’ की महत्ता बखानता अत्यधिक प्रभावपूर्ण और मर्मसंपर्शी गीत प्रस्तुत किया। उन्होंने गाया-
श्रद्धा के सुमन अर्पित हैं गगन जी को,
नमन हजारों वार लगन सुहाई है।
गहरे घुसे वे काव्य गंगा में नहाने हेतु,
जग में अमर उनकी यूँ कविताई है।

ओज के शीर्ष मंचीय कवि कमलकांत तिवारी ने ‘एक शाम गौतम गगन के नाम’ से अतिशीघ्र शहर में श्रद्धांजलि-काव्य संध्या आयोजित कराने की घोषणा की। उन्होंने तन्मय होकर यह छंद सुनाया तो सब झूम उठे-
हर ज़ुल्म और ज़ालिम को संवरने नहीं देंगे,
भारत की सरजमीं को बिखरने नहीं देंगे।
सौगन्ध खाओ आज मेरे प्यारे दोस्तों!
मज़हब के नाम देश को बंटने नहीं देंगे।
राज शुक्ल ‘ग़ज़लराज’ ने भी स्वर्गस्थ कवि गौतम गगन को कुछ इस तरह भावसुमन अर्पित किए-
आना-जाना रीति है माना,
नामुमकिन है इसे मिटाना;
पर श्रद्धेय हमारे दिल को
बहुत खला है आपका जाना।
राजकुमार अग्रवाल की यह ग़ज़ल भी बहुप्रशंसित हुई-
आई है अब बहार ग़ज़ल कह रहा हूं मैं,
दामन है तार-तार ग़ज़ल कह रहा हूं मैं।
डॉ राजेश शर्मा ‘ककरेली’ ने कुछ इस अंदाज में भावनाएं व्यक्त कीं-
गगन में फैली सुगंध गगन की,
ऋषियों की ऋचाओं सी फ़ैल गयी सुरभि।।
वरिष्ठ कवि रामकृष्ण शर्मा ने इस तरह भावांजलि दी-
हृदय के गगन में अमर तुम रहोगे,
‘गगन’ याद प्रति पल की आती रहेगी।
तुम्हारे हृदय की अनोखी अदाएं,
काव्य जगत में सदा ही भाती रहेंगी।
अश्विनी कुमार तन्हा ने कुछ इस अंदाज में गगन जी को श्रद्धा सुमन समर्पित किए-
लगा न सका कोई उनके कद का अंदाजा
वो गगन थे लेकिन सिर झुकाकर चलते थे।
हास्य-व्यंग के साथ ही गंभीर क्षणिकाओं के माध्यम से दिलों पर गहरा असर करने वाले दीपक मुखर्जी ‘दीप’ की क्षणिकाएं भी खूब सराही गईं-
अब्दुल तुमको क्या हो गया है?
तू ऐसा क्यों हो गया है, लौट आ,
अपने पुराने आंगन में अम्मा,
अब भी याद कर रही है।

बरेली के मुक्तक सम्राट रामकुमार भारद्वाज ‘अफ़रोज़’ ने एक बार फिर अपने चुटीले मुक्तकों से महफिल लूट ली-
कोई विरोधाभास न हो,
तुलसी का उपहास न हो।
रामचरित मानस पढ़कर
चिंतन हो, बकवास न हो।
निष्ठुर उसको मानें हम करुणा जिसके पास न हो,
फीकाकश की मुट्ठी में रोटी हो, सल्फास न हो।
खाली है या जेब भरी, कातिल को आभास न हो।
मां जब हो फैशन मॉडल, बेटी क्यों बिंदास न हो?

वरिष्ठ पत्रकार-कवि गणेश ‘पथिक’ ने गगन जी के गगनाकार साहित्यिक व्यक्तित्व पर अपने इस सशक्त गीत से भावपुष्प चढ़ाए-
मृगमरीचिकाएं ही रे भाग्य में यदि लिख गई हैं,
मरुस्थल की भटकनें यदि भाग्य रेखा बन गई हैं,
दुखों का संसार यदि प्रारब्ध अपना बन गया है,
तो हमें पाणिनि सदृश प्रारब्ध से लड़ना पड़ेगा।

विशिष्ट अतिथि गीतकार कमल सक्सेना ने अपने इस गीत से सबको प्रभावित किया-
ये जीवन है एक तमाशा
थोड़ी आशा थोड़ी निराशा
सबकी यही कहानी है।
कवि गोष्ठी में ए.के. तन्हा, डॉ.धर्मराज यादव, ब्रजेश कुमार साहनी, ओम पाल सागर, श्रीमती नीरज शर्मा, कृष्ण अवतार गौतम, रामधनी द्विवेदी ‘निर्मल’ समेत कुल 27 कवियों ने अपनी रचनाओं और भावनाओं से गोलोकस्थ कवि गौतम को श्रद्धांजलि दी। साथ ही महाकुंभ समेत बहुत सी समसामयिक-यादगार रचनाओं का प्रभावी प्रस्तुतिकरण करके भी खूब वाहवाही बटोरी। हास्य और आध्यात्मिक रचनाओं के स्थापित कवि मनोज दीक्षित टिंकू ने श्रद्धांजलि गोष्ठी का काव्यमय सफल संचालन किया। अंत में श्रद्धांजलि स्वरूप दो मिनट का मौन भी रखा गया।