Thursday, November 21, 2024
spot_img
spot_img
03
20x12krishanhospitalrudrapur
previous arrow
next arrow
Shadow
Homeबुद्धिजीवियों का कोनानेता जी का पराक्रम

नेता जी का पराक्रम

‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
मरने वालों का बस यही निशां बाकी रहेगा’

नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रेसीडेंसी के ओड़ीसा डिवीज़न में हुआ था। प्रोटेस्टेंट स्कूल से प्राइमरी, स्कॉटिश चर्च कॉलेज , कलकत्ता विश्वविद्यालय फिर आई सी एस परीक्षा पास करने को इंग्लैंड से शिक्षा ग्रहण की। 1920 , प्रतिष्ठित आई सी एस परीक्षा उत्तीर्ण कर पिता के सपने को पूरा किया।सुभाष के दिलो – दिमाग पर स्वामी विवेकानंद और अरविंद घोष के विचारों ने कब्जा कर रखा था तो भला अंग्रेज़ो की गुलामी करने के लिए नौकरी में कहा मन लगता? । सन 1921 में त्यागपत्र देकर विज्ञान में ट्राई पास
ओनोर्स की डिग्री के साथ स्वेदश लौट आये।
कोलकाता में देशबंधु चितरंजन दास के कार्य से प्रेरित होकर सुभाष देशबन्धु के साथ काम करने लग गए। 20 जुलाई 1921 को मणिभवन में गांधी जी और सुभाष के बीच पहली मुलाकात हुई।
बहुत जल्द ही सुभाषचंद्र बोस देश मे एक महत्त्वपूर्ण युवा नेता के रूप में उभर गए। 26 जनवरी 1931 को कोलकाता में राष्ट्रीय ध्वज फहराकर सुभाष एक विशाल मोर्चे के नेतृत्व कर रहे थे तभी पुलिस ने उन पर लाठी चलायीं और उन्हें घायल कर जेल भेज दिया। भगत सिंह को न बचा पाने पर सुभाष गांधी और कांग्रेस के तौर -तरीकों से बहुत नाराज हो गए। अंग्रेज़ों ने सुभाष के क्रांतिकारी कदमो को रोकने के लिए बिना मुक्कदमा चलाये ही म्यामार के माण्डले कारागृह में डाल दिया। 1932 में सुभाष के यहां से अल्मोड़ा,उत्तराखंड के जेल में डाल दिया। इसके बाद वे 1933 से 1936 तक यूरोप में इटली के नेता मुसोलिनी से मिलने चले गए जिन्होंने उन्हें भारत के स्वंतन्त्रता संग्राम में सहायता का बचन दिया। अपनी पुस्तक लिखने के दौरान आस्ट्रियन महिला एमिली शेंकल से उन्होंने शादी की।
1938 में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन हरिपुरा में नेता जी को अध्यक्ष चुना गया। यह कांग्रेस का 51वा अधिवेशन था। इसीलिए नेता जी का स्वागत 51 बैलो द्वारा खिंचे हुये रथ से किया गया। सन 1937 में जापान ने चीन पर आक्रमण कर दिया।सुभाष कांग्रेस से इस समय सहयोग चाहते थे। लेकिन गांधी जी नेता की काम करने के तरीकों के साथ सहज नही थे। अतः इसी दौरान द्वितीय विश्व युद्व के बादल छा गए।
कविवर रविन्द्र नाथ टैगोर, मशहूर वैज्ञानिक मेघनाद साह और प्रफुल्ल चंद्र रॉय ने भी नेता जी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये रखने की पुरीज़ोर कोशिश की। बहुमत नेता जी के पक्ष्य में होने के वावजूद भी गांधी जी सहमत नही थे।
16 जनवरी को पुलिस को चकमा देते हुए नेता जी गोमोह रेलवे स्टेशन से होते हुए पेशावर, अफगानिस्तान, काबुल और फिर मास्को होते हुए जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुचकर आज़ाद हिंद फौज की स्थापना की। आज़ाद हिंद रेडियो के स्थापना कर नेता जी वहां भी देशभक्ति के लिए लोकप्रिय हो गए। वही से मां भारती का यह लाडला, महान क्रांतिकारी, पराक्रमी व सच्चा सपूत सुभाष चंद्र बोस से नेताजी सुभाष चंद्र बोस कहलाये। अडोल्फ हिटलर उनके देश के प्रति जुनून से बहुत अधिक प्रभावित था।

18 अगस्त 1945 को नेता जी हवाई जहाज़ से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे।इस सफर के दौरान वे लापता हो गए। इसके बाद वे कभी किसी को नही दिखाई दिए। 18 अगस्त को जापान के ताई होंव हवाई अड्डे पर उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और वे सदा के लिए इस धरती को अलबिदा कह गए।
गुज़रा कल, वर्तमान और आना वाला कल में नेताजी देश के सबसे बड़े नेता बन गये थे ,है और बने रहंगे।
आज की भावी पीढ़ी खासतौर से हमारे तथाकथित नेताओ को पराक्रम दिवस से ही सही सिख लेनी चाहिए। नही तो इतिहास के आयने में ढूढे नही मिलेंगे।
निःस्वार्थ देशप्रेम की भावना व इससे प्रेरणा लेकर अपने जीवन की आहुति देकर ही कोई राष्ट्र किसी को उचाई की इतनी अधिक सीढ़ियां चढ़ाकर ही गगन में चमकते तारे का स्थान दिला सकता है।

प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’
बागेश्वर, उत्तराखंड   (लेखक राष्ट्रीय पर्वो, उत्सवो, देशप्रेम के अध्येता व लेखक है)

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments