एफएनएन ब्यूरो, बरेली। शहर की सुप्रिसिद्ध साहित्यिक संस्था ‘लेखिका संघ’ की काव्य गोष्ठी सेंट फ्रांसिस स्कूल के पास श्रीमती उमा शर्मा के आवास पर उन्हीं के संयोजकत्व में संपन्न हुई। अध्यक्षता सुशीला धस्माना मुस्कान ने की। मुख्य अतिथि मीना अग्रवाल रहीं। संचालन का दायित्व वरिष्ठ कवि-गीतकार कमल सक्सेना ने संभाला।
संस्था की संरक्षक श्रीमती निर्मला सिंह, सुशीला धस्माना,कमल सक्सेना, मीना अग्रवाल, अध्यक्ष दीप्ती पांडे, महासचिव किरण कैंथवाल ने संयुक्त रूप से माँ शारदे की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन व पुष्पार्पण किया।
माँ शारदे की वंदना श्रीमती मीरा मोहन ने मधुर स्वर में प्रस्तुत की।सुधीर मोहन ने गीत प्रस्तुत किया,,
चले आओ हमें आँसू तुम्हारे याद आते हैँ।”

उमा शर्मा ने “मन सुनाना चिर विरह का गीत कोई ” सुनाकर सबका मन मोह लिया।
संचालन करते हुए गीतकार कमल सक्सेना ने अपनी ग़ज़ल सुनाकर वाहवाही लूटी,,,
” दर्द जो हमने सुने वे अश्क़ में ढलते रहे। पाँव नंगे थे हमारे हम मगर चलते रहे। मंदिरों में जब गये हमको अँधेरे ही मिले, औऱ दुश्मन के मजारों पर दिये जलते रहे। “
अविनाश अग्रवाल ने अपनी ग़ज़ल,,,” बेशक हमारी आहों का उन पर असर न हो।” सुनाकर वाहवाही लूटी। डॉ किरण कैंथवाल ने शिक्षा पर अपना. गीत,,, हर घर दीप जलाना है घर-घर दीप जलाना है,,, सुनाया। संस्था की अध्यक्ष दीप्ती पांडे ने अपनी व्यथा इस तरह से उजागर की,,, “”मैं आदतन प्यार लुटाती हूँ। फिर भी जीतकर हर बाजी हार जाती हूँ।”
सुशीला धस्माना ‘मुस्कान’ की यह कविता भी सराही गई,,, ” “हँसाना देख रोते को खिलाना देख भूखे. को.,समझ पर नार को माई यही तो धर्म है भाई । मीना अग्रवाल ने अपनी ग़ज़ल पर तालियां बजवाईं-“इत्तफ़ाक़ अजीब होते हैँ। आँख बंद करते ही वो मेंरे करीब होते हैँ। “
संरक्षक निर्मला सिंह ने अपनी ग़ज़ल कुछ ऐसे पढ़कर वाहवाही लूटी,,,”ए दोस्त तुमने कभी उनका बदन देखा है जिनके तन पर कपड़े का टुकड़ा है।” अंत में श्रीमती उमा शर्मा के आभार प्रदर्शन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।