कोविड-19 महामारी आजाद भारत की सबसे बड़ी त्रासदी है जहां अभी तक लगभग ढाई लाख लोग इस महामारी से अपनी जान गवा चुके हैं 135 करोड़ के इस विशाल देश की स्थिति आंकड़ों के लिहाज से अमेरिका व अन्य यूरोपीय देशों
के मुकाबले थोड़ा ठीक है जहां हेल्थ केयर सिस्टम उच्च दर्जे का हो तथा जनसंख्या भी अनुपातिक रूप से निम्न हो ऐसे में भारत की स्थिति तुलनात्मक रूप से ठीक ठाक है लेकिन आँकड़ो को बदलने में देर नहीं लगती है क्योंकि भारत में प्रत्येक दिन लगभग 4 लाख नये केस आ रहे हैं और साथ ही इस वायरस का प्रसार गाँवो तक पहुंचने लगा है ऐसे समय मे कुछ लोग केंद्र सरकार को कुछ राज्य सरकारों को और कुछ लोग सिस्टम को दोष दे रहे हैं मैं समझता हूं कि सभी परिस्थितियों में सामूहिक जिम्मेदारी बनती है ऐसे मे स्वास्थ्य बिषय की सवैधानिक स्थिति को भी समझना होगा क्योंकि इस लोकतांत्रिक देश में संघीय ढांचा है जहाँ केंद्र सरकार व राज्य सरकारें
अपने अपने क्षेत्र मे सम्प्रभुता रखती हैं विपत्ति के समय हमारा सविधान केन्द्रोमुख है।दोनों सरकारें एक ही नागरिक पर शासन करती हैं ।स्वास्थ्य सवैधानिक रूप से राज्य सूची का बिषय होने के कारण राज्य सरकारों की नीति व नियत पर निर्भर करता है । विश्व का कोई भी देश अभी तक 62% से अधिक टीकाकरण नहीं कर पाया है जहां इजरायल की जनसंख्या लगभग 90 लाख है वहां उसने लगभग 62% लोगों का टीकाकरण किया है दूसरी तरफ 33 करोड़ की आबादी वाला सबसे विकसित देश अमेरिका ने लगभग 44% टीकाकरण अपने नागरिकों का किया है ऐसे में भारत में अभी तक केवल 9% टीकाकरण ही हो पाया है विशाल जनसंख्या की दृष्टि से टीकाकरण की यह रफ्तार बहुत कम है इस देश में शुरू से ही सरकारों ने स्वास्थ्य पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया है लेकिन जब कभी महामारी आती है तो ऐसे में सभी लोग केंद्र सरकार को ही दोषी ठहराते लगते हैं अब समय आ गया है कि स्वास्थ्य को समवर्ती सूची का विषय बना कर इस ओर केंद्र और राज्य सरकारों को समुचित ध्यान देना चाहिए किसी भी देश मे संसाधन और सुविधाएं असीमित नहीं हो सकते हैं अब समय आ गया है कि हम लोग इस बेतहाशा बढ़ती हुई जनसंख्या को नियंत्रित करने के बारे में भी गंभीरता पूर्वक मनन व चिंतन करें। उत्तम स्वास्थ्य तथा उत्तम स्वास्थ्य सुविधाओं को हम प्राण व दैहिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार मे शामिल कर लोगों को स्वास्थ्य सुरक्षा की गारंटी प्रदान करें ।इस देश में अभी बहुत कुछ बदलाव की जरूरत है। ये तभी सम्भव है जब दूरदर्शी, पारदर्शी व उत्तरदायी सरकारों की स्थापना हो। जिस देश के प्रधानमंत्री को 70 साल बाद भी शौचालय बनवाना पड़े,जहाँ नेता अपने जीते जी अपनी मूर्तियों पर जनता का करोड़ो रूपये खर्च कर दे,जहाँ माननीयों की कैंटीन सुविधा को समाप्त करने मे 73 साल लग गये हो,जिस देश में जज अपने मे से अपने को ही चुनते हो,जिस देश की मीडिया को नियंत्रित करने का कोई तन्त्र ना हो,जहाँ सत्ताएं अधिक्तम तुस्टीकरण की कीमत पर प्राप्त हो रही हो ऐसे देश मे अन्त्योदय की कल्पना करना बेइमानी नहीं है तो और क्या है ?
प्रो.(डॉ.) कुंदन राठौड़
प्राचार्य
लेखक संवैधानिक मामलों का जानकार