एफएनएन, (दुधवा नेशनल पार्क, लखीमपुर खीरी) दबीर हसन: आज विश्व बाघ दिवस है इस मौके पर इतना कहना चाहूंगा कि वर्ष 2004-05 से बाघ संरक्षण का काम एक ऐसे इलाके में शुरू किया जहाँ पर इक्का दुक्का बाघ बचे थे लकड़ी माफियाओं , बावरिया गिरोह एंव संसारचंद गिरोह का बोलबाला था ।पिछले 15 -16 सालों में इस शानदार प्रजाति को बचाकर एक ऐसी स्थिति में पहुँचाया गया है जहां पर इस इलाके की कैरिंग कैपेसिटी के आधार वैज्ञानिक इस से संख्या पर संतुष्ट हो सकते हैं एंव इस अवधि में इस इलाके में काम करने वाले वन विभाग के लोगों , स्थानीय समुदाय के लोगों , पत्रकार बंधुओ को गर्व का अनुभव होगा। हालांकि इसके पीछे व्यक्तिगत तौर पर कड़ी मेहनत, सुख सुविधाओं त्याग और लोगों के विरोध एंव लंबे संघर्ष का सामना करना पड़ा परंतु आज इस मौके पर परम संतुष्टि का भाव है।
पिछले पन्द्रह वर्षों से फील्ड के कई रोचक किस्से हैं जिनकी शुरुआत नई पीढ़ी के लिये जल्दी ही कि जाएगी नहीं तो बच्चे सोचेंगें की बाघ केवल फेसबुक, इंस्टाग्राम और सोशल मीडिया से बचता है। खैर इसअभियान के मुखिया विभाग में लगे सीमित संसाधनों के साथ काम करने वाले वन कर्मियों सहयोगी संस्थाओं , तराई क्षेत्र में अपने गन्ने के खेतों में बाघों को शरण देने वाले किसानों , प्रशासन, जनप्रतिनिधियों, बाघों के बारे में लगातार जागरूकता बढ़ाने वाले कवरेज करने वाले पत्रकारों एंव सभी बाघ प्रेमियों को शुभकामनाएं। (लेखक दबीर हसन, पिछले 16 सालों से बाघों के संरक्षण को काम कर रही संस्था WWF-INDIA में कार्यरत हैं, इस समय दुधवा नेशनल पार्क एरिया में कार्यरत हैं। इनके पास जंगलों के करीब रहने वाले लोगों और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष को करीब से देखे जाने का अनुभव है)