मुकेश तिवारी, बरेली : विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के लिए बरेली जिले में 14 फरवरी को मतदान होगा। इसलिए इन दिनों सभी राजनीतिक दलों अपने अपने प्रत्याशियों के दिन रात चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं और मतदाताओं को रिझाने के लिए हर हथकंडे अपना रहे हैं। खास बात यह है कि मतदाता इस बार अपने मन की बात नहीं बता रहा है। इसके चलते बरेली जिले में भाजपा को 2017 का चुनावी इतिहास दोहराना चुनौती भरा है क्योंकि पिछले चुनाव में भाजपा ने नौ विधानसभा सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार सभी सीटों पर भाजपा और सपा के बीच में सीधा मुकाबला होने की संभावना है। बरेली शहर विधानसभा सीट की बात करें, तो यह भाजपा की परंपरागत सीट है।
1985 में भाजपा के डा. दिनेश जौहरी ने शहर सीट पर कब्जा जमाया है कि आज तक भाजपा के अलावा कांग्रेस,सपा व बसपा अपना खाता न खोल सकी है। इस बार भी 2012,2017 से लगातार विजयी रहे भाजपा विधायक डॉ अरुण कुमार चुनाव मैदान में हैं और उनके मुकाबले पर सपा से सभासद राजेश अग्रवाल, कांग्रेस से के के शर्मा एडवोकेट, बसपा से ब्रह्मानंद चुनाव मैदान में हैं। डॉ अरुण कुमार के मुकाबले सभी अन्य प्रत्याशी मतदाताओं पर अपनी छाप नहीं छोड़ पा रहे हैं। वहीं डॉ अरुण की जनता के बीच में सरल, सहज , सुलभ वाली छवि है और जनता के सुख व दुख में सदैव तत्पर रहते हैं।
जबकि राजेश अग्रवाल भी छवि अच्छी है लेकिन इसके बावजूद भी राजेश अग्रवाल भाजपा प्रत्याशी डॉ अरुण कुमार के मुकाबले कमजोर दिखाई दे रहे हैं मुस्लिमों और यादव में तो सपा का असर नजर आ रहा है। लेकिन हिंदू बाहुल्य क्षेत्रों में सपा कमजोर है। हालांकि अभी मतदान में समय है। फरीदपुर सीट पर इस बार भाजपा और सपा के बीच में सीधा मुकाबला है, सन् 2017 में भाजपा के डा. श्याम बिहारी लाल विजयी रहे और पार्टी ने एक बार फिर डॉ श्याम बिहारी लाल को प्रत्याशी बनाया है और सपा ने बसपा के पूर्व विधायक विजय पाल सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है।
बसपा ने शालिनी को और कांग्रेस ने सपा के पूर्व विधायक सियाराम सागर के बेटे विशाल सागर को प्रत्याशी घोषित किया है। इस बार भाजपा प्रत्याशी डॉ श्याम बिहारी लाल को सपा प्रत्याशी पूर्व विधायक विजय पाल सिंह सीधी टक्कर दे रहे हैं। क्योंकि मुस्लिम, यादव व दलित समाज का उन्हें समर्थन मिल रहा है और साथ ही भाजपा विधायक डॉ श्याम बिहारी लाल से क्षेत्रीय जनता नाराज़ हैं। हालांकि मोदी व योगी सरकार से जनता खुश हैं। लेकिन अब देखना है कि चुनावी ऊंट किस करवट बैठता है। आंवला सीट पर भाजपा और सपा के बीच में जबरदस्त चुनावी मुकाबला होने की संभावना है। क्योंकि इस बार भाजपा के पूर्व मंत्री धर्मपाल सिंह चुनाव मैदान में हैं और उनके मुकाबले में 2007 में बसपा और 2017 में बिल्सी सीट से भाजपा विधायक पंडित आर के शर्मा चुनाव लड़ रहे हैं।
वहीं बसपा से लक्ष्मण प्रसाद लोधी और कांग्रेस सेओमवीर सिंह भी चुनाव मैदान में हैं। लेकिन इस सीट पर सपा बागी डाक्टर जीवराज सिंह यादव पार्टी प्रत्याशी आर के शर्मा के लिए गले की हड्डी बन गए हैं क्योंकि जीराज सपा से टिकट मांग रहे थे और वह सपा नेता पूर्व सांसद वीरपाल सिंह यादव के दामाद हैं और उनका अपनी यादव जाति में अच्छी पैठ है इसके अलावा आंवला विधानसभा क्षेत्र में उनका प्रभाव है। इसलिए भाजपा प्रत्याशी पूर्व मंत्री धर्मपाल सिंह को लाभ होगा। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है। इस सीट का चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो अब तक 17 बार चुनाव हुए है और दस बार भाजपा जीती है पांच बार कांग्रेस , एक बार सपा और एक बार बसपा ने जीत हासिल की है।
मीरगंज विधानसभा सीट पर इस बार भाजपा, सपा और बसपा के बीच में त्रिकोणीय मुकाबला होने संभावना है क्योंकि इस बार भाजपा विधायक डॉ डी सी वर्मा जोकि 2017 में चुनाव जीते थे और इस बार भी चुनावी मैदान में हैं। लेकिन इस बार उन्हें क्षेत्रीय जनता की नाराजगी झेलनी पड़ रही है। हालांकि भाजपा के पूर्व केन्द्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने डी सी वर्मा की चुनावी कमान संभाली है इसके बावजूद भी डी सी वर्मा के लिए चुनावी डगर आसान नहीं है। वहीं समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी पूर्व विधायक सुल्तान बेग भी चुनाव मैदान में हैं जोकि इस क्षेत्र से 2002,2007 और 2012 में विधायक रहे चुके हैं।
इस सीट पर मुस्लिम, कुर्मी और लोधी जाति का दबदबा है। खास बात यह है कि इस बार बसपा से कुंवर भानुप्रताप सिंह प्रत्याशी हैं जोकि कुर्मी जाति से आते हैं और सोहोड़ा के जमींदार खानदान से ताल्लुक रखते हैं इसलिए इस क्षेत्र की सभी जातियों में उनका दखल रखते हैं और सभी के सुख व दुख में शामिल होते हैं। इसलिए इस बार यहां दिलचस्प चुनावी मुकाबला होने की उम्मीद है।