

एफएनएन ब्यूरो, बरेली। प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था ‘साहित्य सुरभि’ की 372वीं मासिक काव्य गोष्ठी तीसरे रविवार को हार्टमैन कॉलेज रोड स्थित फ्यूचर किड्स पब्लिक स्कूल में संस्थाध्यक्ष रामकुमार कोली के संयोजकत्व में संपन्न हुई।

गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार रणधीर प्रसाद गौड ‘धीर’ ने की। मुख्य अतिथि गजेन्द्र सिंह और विशिष्ट अतिथि-राम कुमार भारद्वाज अफ़रोज़’ रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवि-पत्रकार गणेश ‘पथिक’ एवं वरिष्ठ साहित्यकार रजत कुमार भी मंचासीन रहे। गोष्ठी का काव्यमय सफल संचालन संस्थाध्यक्ष राम कुमार कोली ने किया।

कवि गोष्ठी में सभी कवि होली के रंगों में सराबोर और होली की मस्ती-ठिठोली में चूर तथा समाज को स्वस्थ संदेश देते दिखे। अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार रणधीर प्रसाद गौड़ ‘धीर’ ने होली पर कई गीत सुनाए और खूब प्रशंसा, तालियां तथा वाहवाही बटोरीं-
जिक्र है आज तो बस होली का, कौन समझा मिजाज़ होली का?… होली है चोली गोरी रखना संभाल के।… मौज मनाके झूमके गाके आज मनाएं हम होली।
हास्य-व्यंग के छोटे-छोटे असरदार मुक्तकों से समाज को बड़े संदेश देते दीपक मुखर्जी दीप ने इस रचना से वाहवाही लूटी- झंझाबाद के सागर में
इच्छाओं की नाव
कब डूब गयी पता ही नहीं चला
हम मूकदर्शक बने देखते रहे।।
डॉ. धर्मराज यादव ने मानव जीवन में आस्था और विश्वास की महत्ता बताती उत्कृष्ट अतुकांत कविता सुनाकर पूरे सदन की प्रशंसा-सराहना अर्जित की। बताया- आस्था एक मन का नेटवर्क है… जो सब से नहीं जुड़ता है… आस्था एक प्रेम का दृष्टिकोण है… जो विश्वास जैसे ( 5G) नेटवर्क पर ही भरोसा करता है। विश्वास एक राजमार्ग है…….. आस्था का….!
संस्थाध्यक्ष एवं संयोजक राम कुमार कोली ने विभिन्न संप्रदायों में एक जैसा संदेश देने का उल्लेख करते हुअ अपना श्रेष्ठ होली गीत सुनाकर प्रशंसा और तालियां बटोरीं- ‘होली होली _ होली हो़..अपने अपने रंग-ढंग से सबने खेली होली हो।

वरिष्ठ कवि-पत्रकार गणेश पथिक ने होली गीत और कृष्ण प्रेम पर आधारित ब्रज भाषा के सवैया और घनाक्षरी छंद सुनाकर वाहवाही बटोरी- वरिष्ठ साहित्यकार सुरेश ठाकुर ने उत्कृष्ट होली गीत और श्रृंगार रस का यह श्रेष्ठ गीत सुनाकर खूब तालियां और वाहवाही बटोरीं-किसी का जनाज़ा चला तो कहीं चली डोली। कहीं सुर्ख जोड़े में लिपटा बदन है। कहीं तन छुपाने की खातिर कफन है। कहीं अलविदा के नारे कहीं आगमन की बोली। किसी ने मोहब्बत में जान गंवा दी। किसी ने मोहब्बत यूं ही गंवा दी।
चर्चित कवि प्रकाश ‘निर्मल’ का गीत भी खूब पसंद किया गया- चांदी जैसे दिन सोने जैसी रातें। कभी खत्म न होने वाली हीर रांझे की बातें। जादू की दुनिया में खुद को कितना और छलें। चलो अब लौट चलें।
हिंदी ग़ज़ल को नई धार और चुटीले-व्यंग भरे नए आयाम देने वाले रामकुमार भारद्वाज ‘अफरोज़’ ने अपने चिर-परिचित अंदाज में इन शेरों को सुनाकर सबकी प्रशंसा, तालियां और वाहवाही बटोरी-
सुंदरी की कलात्मक सोच में रूप का चोंचला भी शामिल है, आजकल की समाजसेवा में सेवकों का भला भी शामिल है।
लोकभाषा और लोकगीतों के सिद्धहस्त चितेरे रामधनी निर्मल ने तन्मय होकर यह लोकगीत सुनाया तो सभी आनंद और मस्ती में डूबते-उतराते और तालियां बजाते दिखे-निकरे कुआं से तो गिर गए खाई मां।
वरिष्ठ साहित्यकार ब्रजेन्द्र तिवारी ‘अकिंचन’ ने अति उत्कृष्ट एवं गम्भीर साहित्यिक गीत, रीतेश साहनी ने आध्यात्मिक दोहे, संस्था के महासचिव डॉ. राजेश शर्मा ‘ककरेली’ ने गंभीर प्रश्न उठाती अतुकान्त कविता, राजकुमार अग्रवाल ‘राज़’ ने होली पर ग़ज़ल सुनाकर तालियों की गड़गड़ाहट और वाहवाहियां बटोरीं।

काव्य गोष्ठी के अन्त में संयोजक राम कुमार कोली ने एक छन्द के द्वारा सभी का आभार व्यक्त किया। श्री कोली ने गोष्ठी के समापन पर अपने छोटे सुपुत्र के कर्मचारी चयन आयोग में चयन की खुशी में कवियों को उत्तम जलपान कराया और बेटे को उज्ज्वल भविष्य का शुभाशीष देने का सबसे आग्रह भी किया।