वर्ष 2018 में केंद्र ने पशुपालन निदेशालय और पशुधन विकास परिषद को तीन चरणों में 9.50 करोड़ टैग दिए थे। जो सभी चिकित्सालयों को भेजे गए। इसके सापेक्ष भारत पशुधन पोर्टल पर 3,30,16,326 पशुओं का पंजीकरण किया गया। यानी इतने टैग पशुओं के कानों पर लगाकर विवरण फीड किया। इसके बाद भी विभाग ने केंद्र से और टैग मांग लिए। जबकि पोर्टल के अनुसार बड़ी संख्या में विभाग के पास टैग उपलब्ध होना चाहिए। केंद्र ने जितने टैग दिए थे, उतने प्रदेश में गोवंशी व महिषवंशीय पशु भी नहीं हैं, न ही 100 फीसद टैगिंग की गई। इसके बाद भी टैग का पता नहीं है।
इसे शासन ने गंभीरता से लेकर पशुपालन निदेशालय से गहन जांच कराकर आख्या मांगी है। इस क्रम में निदेशक रोग नियंत्रण एवं प्रक्षेत्र डॉ. राजीव सक्सेना ने सभी मंडल के अपर निदेशक को टैग न मिलने पर एफआईआर कराने को पत्र जारी किया है। जांच के दौरान जिलों पर करीब एक करोड़ टैग मिले हैं।
विभाग बता रहा 6.89 करोड़ ही मिले टैग
पशुधन विकास परिषद और पशुपालन निदेशालय का कहना है कि केंद्र से 6.89 करोड़ टैग प्राप्त किए थे। जबकि केंद्र 9.50 करोड़ टैग देना दर्शाया है। यदि 6.89 करोड़ टैग मिले हैं तो भी शेष बड़ी संख्या में नहीं हैं। सूत्रों की मानें तो टैगिंग के लिए हेल्परों को रखा गया था। जिन्हें गांव-गांव पशुओं के कानों पर टैग लगाने के लिए दिए गए। इनके द्वारा बचे टैग वापस नहीं किए गए और इधर-उधर हो गए।
केंद्र से करीब 7.25 करोड़ टैग मिले थे, जो अस्पतालों पर उपलब्ध हैं। करीब एक करोड़ टैग रिकवर हो चुके हैं। शेष प्रक्रिया में हैं। किसी तरह की गड़बड़ी नहीं है।
– डॉ. अनवर आलम, संयुक्त निदेशक, पशुपालन निदेशालय