5 सितम्बर शिक्षक दिवस पर विशेष
औंध उच्च प्राथमिक विद्यालय को अकेले दम पर जिले भर में बना दिया बेमिसाल, अफसर भी देखकर करते हैं तारीफ
गणेश पथिक, ब्यूरो चीफ
एफएनएन ब्यूरो, बरेली। घनघोर स्वार्थी, कामचोर, सुविधाभोगी और आलसी लोगों से भरे आजकल के जमाने में कर्मठता, जोश-ओ-जुनून, जज्बे और दृढ़ इच्छा शक्ति जैसे गुणों को यदि किसी एक व्यक्ति में एक साथ देखना हो तो वह हैं निर्विवाद रूप से अकेले-अनूठे राहुल यदुवंशी!
राहुल हैं तो पेशे से परिषदीय शिक्षक, लेकिन सरकारी सेवा कार्य भी सिर्फ खानापूरी करने या ड्यूटी बजाने के लिए नहीं करते बल्कि अपने स्कूल और पेड़-पौधों, फुलवारी के प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर उसके रमणीक परिसर को सजाने-संवारने और छात्र-छात्राओं को अपने ही बच्चों की तरह पूरे दिल से पढ़ाने का उनका काबिलेतारीफ जज्बा ही उन्हें बाकी सबसे अलग शख्सियत बनाता है।

कर्मनिष्ठ, ‘एकला चलो’ कार्यशैली से बनाई अलग पहचान
राहुल अपने 21 वर्ष के निर्बाध शिक्षकीय सेवाकाल में अपनी कर्मनिष्ठ और ‘एकला चलो’ कार्यशैली की बदौलत सरकारी स्कूलों और उनकी शिक्षा-दीक्षा को पुराने ढर्रे वाली दकियानूसी सोच से बाहर निकालने की अपनी छोटी-छोटी कोशिशों से आम अभिभावकों को भी निरंतर सकारात्मक बदलावों की अनुभूति सफलतापूर्वक कराते रहे हैं।

शारीरिक रूप से 55% तक दिव्यांग लेकिन जीवट बेमिसाल
मीरगंज तहसील के गांव नथपुरा के मूल निवासी राहुल यदुवंशी का दाहिना पैर बचपन से ही पोलियो की वजह से बेकार है। लेकिन शारीरिक रूप से 55% तक की इस बड़ी दिव्यांगता को भी उन्होंने कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। शिक्षक पिता और अन्य परिजनों के रोकने-टोकने पर भी उन्होंने खटारा-कबाड़े की साइकिल की मरम्मत करवाकर उसे चलाना सीखा बल्कि अपनी बहन को भी इसी साइकिल पर बैठाकर मीरगंज स्थित स्कूल में पढ़ने आते थे। उनकी यह जिद आज भी बरकरार है। दाहिना पैर पूरी तरह बेकार होने पर भी बाएं पैर से ही ब्रेक और स्पीड नियंत्रित कर कार की लांग ड्राइव भी बखूबी कर लेते हैं।
सामाजिक कार्यों में भी निरंतर योगदान
कुशल वक्ता और सिद्धहस्त कार्यक्रम संचालक राहुल यदुवंशी राष्ट्रीय स्तर की सामाजिक संस्था भारत विकास परिषद् के रुहलखंड प्रांतीय महासचिव भी हैं और सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर प्रतिभाग करते रहते हैं। दो माह पहले ही भारत विकास परिषद के मुम्बई में आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन नें बरेली का प्रतिनिधित्व किया है।
पिछले कई वर्षों से राहुल विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी के उच्च प्राथमिक विद्यालय औंध में एकल शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं और तमाम विकट परिस्थितियों से मुस्कराते हुए अकेले ही जूझ रहे हैं।
अपने खर्चे पर स्कूल में लगवाया कंप्यूटर
आज के बदलते परिवेश में कंप्यूटर शिक्षा के महत्व को देखते हुए ग्रामवासी/सजग अभिभावक विद्यालय में कंप्यूटर नहीं होने के कारण अपने बच्चों के एडमिशन निकटवर्ती गैर सरकारी स्कूलों में कराने लगे जिससे विद्यालय का छात्र नामांकन गिरने लगा। छात्र संख्या बढ़ाने के लिए विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक राहुल यदुवंशी ने अपने खर्चे पर कंप्यूटर लगवाकर विद्यालय की विज्ञान कक्षा को आईसीटी रूम में परिवर्तित करवा दिया। इन्हीं कोशिशों सा नतीजा है कि विभागीय आला अफसर भी उनकी तारीफ करते थकते नहीं हैं।

डायट टीम ने औंध उच्च प्राथमिक विद्यालय में बनाए 20 वीडियो
अपने व्यक्तिगत प्रयासों से तैयार किए गए विद्यालय के प्रेरणादायी वातावरण में राहुल छात्र-छात्राओं को नियमित रूप से महापुरुषों के प्रेरक प्रसंग सुनाकर एवं मीना की प्रेरक कहानियों के वीडियो दिखाकर बच्चों को शिक्षित-संस्कारित करने लगे। इस विद्यालय में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) फरीदपुर द्वारा भी लगभग 20 वीडियो शूट किए गए जिसका गहरा प्रभाव अभिभावकों पर हुआ और छात्रों के नामांकन में एकाएक वृद्धि होने लगी।

नियमित होते रहते हैं स्कूल में कार्यक्रम
औंध उच्च प्राथमिक विद्यालय में विभागीय आदेश पर समय-समय पर विभिन्न जयंतियोॆ़ं एवम् मेलों का भी आयोजन किया जाता है जो आपसी सौहार्द्र एवं प्रेम को बढ़ावा देते हैं। इसके अतिरिक्त विद्यालय में समय-समय पर विभिन्न प्रशिक्षण, संस्कारशाला कार्यक्रम, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान, वृक्षारोपण, संविधान दिवस, खेलकूद प्रतियोगिताएं, स्वास्थ्य परीक्षण, जन्मदिन उत्सव, बाल मेला, मतदाता जागरूकता रैली, विभिन्न त्योहार, जनगणना पर निबंध लेखन सांस्कृतिक कार्यक्रमों आदि का भी आयोजन किया जाता रहा है जो छात्र-छात्राओं एवं समाज में बौद्धिक, मानसिक एवं शारीरिक विकास को बढ़ाने के साथ ही जन चेतना का भी संचार करता है।
55 से 70 बच्चे रोजाना आ रहे स्कूल
प्रभारी प्रधानाध्यापक राहुल यदुवंशी ने निजी प्रयासों से विद्यालय के भौतिक परिवेश को विभिन्न प्रकार के फल-फूलदार एवं छायादार वृक्षों और मौसमी साग-सब्जियों से भी सजाया-संवारा है। इन्हीं सब कोशिशों का सुखद परिणाम है कि अब प्रतिदिन औसतन 55 से 70 बच्चे विद्यालय आ रहे हैं।
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