
काव्यदीप हिंदी साहित्यिक संस्थान के तत्वावधान में चतुर्थ वीरेन्द्र कुमार सक्सेना स्मृति सम्मान एवं कवि सम्मेलन का सफल आयोजन
फ्रंट न्यूज नेटवर्क ब्यूरो, बरेली। काव्य दीप हिंदी साहित्यिक संस्थान के तत्वावधान में बदायूं नगर के जवाहर पुरी स्थित मौर्य भवन में स्व.वीरेन्द्र कुमार सक्सेना जी की स्मृति में कवि सम्मेलन और सम्मान समारोह आयोजित किया गया। समारोह की अध्यक्षता बरेली से आए उस्ताद शायर विनय साग़र जायसवाल ने की।

काव्यदीप हिन्दी साहित्यिक संस्थान के बैनर तले कवि सम्मेलन और सम्मान समारोह की गौरवशाली श्रंखला में यह लगातार चौथा एवं अत्यंत सफल-अविस्मरणीय आयोजन रहा।

मुख्य अतिथि रहे बरेली के ही मूर्धन्य कवि हिमांशु श्रोत्रिय ‘निष्पक्ष’। कवयित्री सत्यवती सिंह ‘सत्या’ (बरेली) विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचासीन थीं। कार्यक्रम का काव्यमय सरस-सफल संचालन कवि सुनील शर्मा ‘समर्थ’ एवं शैलेन्द्र देव मिश्र (बदायूं) ने संयुक्त रूप से किया।

मंचासीन अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप जलाकर एवं पुष्पांजलि अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। कवयित्री सत्यवती सिंह ‘सत्या’ द्वारा मां वीणापाणि की सरस वंदना प्रस्तुत की गई। अध्यक्ष विनय सागर जायसवाल द्वारा हृदयस्पर्शी गीत ग़ज़ल सुनाए गए,”ज़िन्दगी चैन से गुज़र जाये,बोझ दिल का अगर उतर जाये।
तू है दरिया तो यह ख़याल भी रख, कोई प्यासा यहाँ न मर जाये।।”

हिमांशु श्रोत्रिय जी ने फरमाया,”जो कँगूरों के कुलों के आत्मज हों,नींव का इतिहास क्या खाकर गढ़ेंगे।
जो स्वयम् ही स्वर्णमृग बनकर विचरते, त्याग के दुष्कर ककहरे क्या पढ़ेंगे।”
हास्यकवि उमेश त्रिगुणायत ‘अद्भुत’ ने पढ़ा, “इन आँखों में पसरी नमी देख लेते, औ पैरों से खिसकी ज़मी देख लेते।
हमें टोंकने की भी क्या घसघसी थी, तभी टोंकते जब कमी देख लेते।”
बिल्सी के ओजस्वी जौहरी ‘सरल’ ने सुनाया,”मैं बेचता हूँ आईने अंधों के शहर में, कंघे बना रहा हूँ गंजों के शहर में।”
बरेली की कवयित्री मिथिलेश राकेश ने माता-पिता के सम्मान में दोहे पढ़े और वाहवाही बटोरी-“जिनको भी माँ-बाप की, सेवा आई रास।
बरस रही उन पर कृपा, वे ईश्वर के ख़ास।।”
बरेली के ही राम स्वरूप गंगवार ‘मौज’ की यह ग़ज़ल भी खूब सराही गई-
ख़ाक़ में ऐसे उड़ाया जायेगा
जामे-मय भरकर पिलाया जायेगा।
उड़ रहे हैं जो ज़मीं को छोड़कर
आसमानों से गिराया जायेगा।

बदायूं के राजवीर सिंह ने समाज-परिवारों में तेजी से छीजते संस्कारों पर गहरी चिंता जताते हुए यह गीत सुनाया और खूब तालियां बजवाईं-“ऑंखों में लाज बातों में रसधार दीजिए, सब अपनी बेटियों को ये संस्कार दीजिए।”
कवि अमन मयंक शर्मा ने अपने इन दोहों से खूब तालियां बटोरीं-“चटक धूप सी जिंदगी,नहीं दूर तक छाॅंव।
बिना पिता जी आपके,जलते मेरे पाँव।।”

अभिषेक अग्निहोत्री की यह ग़ज़ल भी खूब सराही गई-“दांव लगा दी है मैंने तन्हाई तक,कोई तो पहुंचे दिल की गहराई तक।
एक क़फ़स है दुनिया जिसमें क़ैद सभी, जीना ही पड़ता है यहां रिहाई तक।”
बरेली के चर्चित शायर राज शुक्ल ‘ग़ज़लराज’ ने पिता के सम्मान में यह ग़ज़ल पढ़ी और प्रशंसा अर्जित की-“बच्चों के बिना एक पल भी रह नहीं सकता,
बच्चों पे कोई कष्ट भी वो सह नहीं सकता।”

इनके अतिरिक्त कवि-पत्रकार शमशुद्दीन शम्स, दीपक मुखर्जी ‘दीप’, अचिन मासूम, दीप्ति सक्सेना, मंजु सक्सेना, आलोक शाक्य आदि कवियों ने भी उत्कृष्ट रचनाएं सुनाईं और खूब तालियां-वाहवाही बटोरीं। समारोह में उस्ताद शायर विनय साग़र जायसवाल, हिमांशु श्रोत्रिय ‘निष्पक्ष’, राज शुक्ल ‘ग़ज़लराज’ और अन्य सभी अतिथि कवियों का संस्था द्वारा सारस्वत अभिनंदन किया गया। कार्यक्रम अध्यक्ष विनय साग़र जायसवाल ने अपना नवीन चर्चित ग़ज़ल संग्रह ‘पयामे ज़ीस्त’ संस्था अध्यक्ष दीप्ति सक्सेना को सप्रेम भेंट किया।