एफएनएन, ऊखीमठ: श्रीबदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के उत्तराखंड आयुर्वेदिक भेषज्य कल्पक (फार्मासिस्ट) प्रशिक्षण संस्थान के दिन बहुरने वाले हैं। संस्थान को जल्द ही आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एवं शोध संस्थान के रूप में विकसित किया जाएगा। जल्द ही बीएएमएस कॉलेज के लिए रूपरेखा तैयार की जाएगी। साथ ही केदारनाथ के रावल भीमाशंकर लिंग स्वयं के प्रयास से कॉलेज व शोध संस्थान के लिए धनराशि जुटाने में मदद करेंगे।
वर्ष 1947-48 में गुप्तकाशी के विद्यापीठ में श्रीबदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने उत्तराखंड आयुर्वेदिक प्रशिक्षण विद्यालय खोला था। वर्ष 2005 में इस विद्यालय का नाम बदलकर उत्तराखंड आयुर्वेदिक भेषज्य कल्पक (फार्मासिस्ट) प्रशिक्षण संस्थान कर दिया और वर्ष 2009 में पहली बार उत्तराखंड की तत्कालीन भाजपा सरकार ने इस संस्थान को आयुर्वेदिक मेडिकल काॅलेज के रूप में विकसित करने की घोषणा की थी। इसके लिए कैबिनेट बैठक में सैद्धांतिक स्वीकृति के बाद शासनादेश भी जारी किया गया था और ऊखीमठ के निकट चुन्नी, मंगोली और भैंसारी गांव में भूमि चयन भी किया गया था।
150 छात्र-छात्राएं करते हैं अध्ययन
ग्रामीणों की नाप भूमि, मंदिर समिति की भूमि एवं राज्य सरकार की भूमि का प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा गया था, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई। संस्थान में दो वर्षीय आयुर्वेदिक फार्मेसी और एक वर्षीय पंचकर्म डिप्लोमा का संचालन भी हो रहा है, जिसमें प्रत्येक सत्र में 150 छात्र-छात्राएं अध्ययन कर रहे हैं।
अब, एक बार फिर आयुर्वेदिक भेषज्य कल्पक (फार्मासिस्ट) प्रशिक्षण संस्थान को आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज के रूप में विकसित करने की योजना को बल मिला है। इस बार, स्वयं केदारनाथ के रावल भीमाशंकर लिंग ने इसकी पैरवी की है और धनराशि जुटाने में मदद करने की बात कही है। अगले दो वर्ष में उत्तराखंड आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज व शोध संस्थान को धरातल पर उतारने के प्रयास किए जाएंगे।
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रावल भीमाशंकर लिंग ने कहा कि, केदारघाटी में आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज की स्थापना उनकी प्राथमिकता में शामिल है। वह, मुख्यमंत्री सहित मुख्य सचिव सहित आला अधिकारियों से भी इस बारे में स्वयं बात करेंगे। इधर, भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष व केदारनाथ की पूर्व विधायक आशा नौटियाल का कहना है कि विद्यापीठ में आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज खुलने से स्थानीय सहित प्रदेश के अन्य जिलों के छात्र-छात्राओं को आयुर्वेद की पढ़ाई के लिए अन्यत्र दूरस्थ संस्थानों की दौड़ नहीं लगानी पड़ेगी।