Monday, June 9, 2025
03
20x12krishanhospitalrudrapur
previous arrow
next arrow
Shadow
Homeराज्यउत्तर प्रदेशमुक्ति कब मिल पाएगी हिंदुत्व को इस व्याकरण से?

मुक्ति कब मिल पाएगी हिंदुत्व को इस व्याकरण से?

बरेली में ‘साहित्य सुरभि’ की 373वीं मासिक काव्य गोष्ठी में कवियों ने कभी हंसाया-गुदगुदाया, कभी जगाया तो कभी चेताया भी, सबने बटोरीं खूब तालियां और वाहवाही

फ्रंट न्यूज नेटवर्क ब्यूरो, बरेली। शहर की प्राचीनतम और प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थाओं में से एक ‘साहित्य सुरभि’ की 373वीं नियमित मासिक काव्य गोष्ठी रविवार अपराह्न वरिष्ठ कवि रणधीर गौड़ ‘धीर’ की अध्यक्षता और हिंदी ग़ज़ल के चर्चित हस्ताक्षर रामकुमार भारद्वाज ‘अफरोज़’ के मुख्य और गजेंद्र सिंह एवं गणेश ‘पथिक’ के विशिष्ट आतिथ्य में रानी साहिबा के फाटक स्थित श्री शिव हनुमान मंदिर प्रांगण में पुजारी और हास्य कवि मनोज दीक्षित ‘टिंकू’ के संयोजकत्व में संपन्न हुई।

काव्य गोष्ठी आयोजन समिति के अध्यक्ष रहे वरिष्ठ कवि स्वर्गीय ज्ञान स्वरूप ‘कुमद’ के योग्य सुपुत्र सुकवि उपमेंद्र सक्सेना की सरस वाणी वन्दना से प्रारंभ हुई इस काव्य गोष्ठी को वरिष्ठ कवि रणधीर गौ़ड़ ‘धीर’ ने भक्तिगीत, ग़ज़ल और अपनी अन्य श्रेष्ठ कविताओं से ऊंचाइयों तक पहुंचाया-

गर्दिश में आज कैसा भारत का सितारा है?
भारत की वादियों में कांटों का नज़ारा है।
वह बीज बो दिया है हर दिल में नफरतों का
ऐ ‘धीर’ सियासत ने इस देश को मारा है।

गीतकार उपमेंद्र सक्सेना ने भी अपने दोनों गीतों पर खूब तालियां और वाहवाही बटोरी-
कामनाओं ने भरा खुद माॅंग में सिंदूर
वासना के सामने अरमान चकनाचूर
लुट गया सम्मान जिसका हो गया कंगाल
आस्थाऍं हाथ अपने धो गईं।


अपनेपन का नाटक करने वालों का
कच्चा चिट्ठा कौन भला अब खोलेगा
मानवता की सेवा में चतुराई से
काला धन भी उजला होकर डोलेगा।

वरिष्ठ पत्रकार-कवि गणेश ‘पथिक’ ने श्रीराम स्तुति, वाणी वन्दना छन्द और यह अतुकांत कविता सुनाकर वाहवाही बटोरी-
हम नहीं हैं वो
कुरु कुल गुरु द्रोण-
भूखे बच्चे के क्रंदन से सहमी
जिसकी महारथी जिजीविषा,
धृतराष्ट्री चाकरी की गहरी धुंध
में छिपकर सो जाती है।

संस्थाध्यक्ष आशु कवि रामकुमार कोली ने गोष्ठी का काव्यमय सफल संचालन करने के साथ ही भजन और गीत से भक्ति-आनंदरस की वर्षा की और खूब प्रशंसित हुए-

हे राम रमा रमणम् रमणम्
हे राम रमा नमनम् नमनम्।
तुम गूंज रहे भवनम् भवनम्।
तुम ही कण-कण में रमते हो,
लंकेश का कर दहनम-दहनम्।
तुम हो सुख धाम अमल चेतन,
अनिकेत, अजन्म, अलख, बेतन,
निर्गुण, अद्वैत से घट-घट में,
कल्याण कृती जन-जन, जन-जन,
श्रीराम बसे तुम मन-मन में,
तुम पूजित हो सदनम्-सदनम्।

मुख्य अतिथि रामकुमार भारद्वाज ‘अफरोज़’ ने समकालीन समाज की विद्रूपताओं पर अपनी चुटीली-मारक ग़जलों के जरिए करारी चोट की और एक सभ्य-संवेदनशील समाज में ढलने की अनिवार्यता को रेखांकित करते हुए खूब तालियां, वाहवाही और प्रशंसा बटोरी-

आप क्या वाकिफ नहीं हैं आज के वातावरण से
बेटियां भयभीत घर में लंपटों के आचरण से?
राजधानी का प्रदूषण दे रहा संकेत यह भी
देश की संसद अभी है बेखबर पर्यावरण से।
वेशभूषा की नुमाइश आजकल सत्संग में भी
किस कदर तहज़ीब बदली मॉडलिंग के अनुसरण से।
इस कदर धनवान लोगों का मनोविज्ञान बदला
निर्धनों को दूर करते जा रहे अंत:करण से।
कौन ऊंचा कौन नीचा कौन सेवक कौन स्वामी
मुक्ति कब मिल पाएगी हिंदुत्व को इस व्याकरण से?

अपनी छोटी-छोटी कविताओं से विसंगतियों पर व्यंग बाणों के अचूक प्रहार करते और सबको हर पल हंसाते रहने वाले वरिष्ठ व्यंगकार दीपक मुखर्जी ‘दीप’ ने भी गोष्ठी को अविस्मरणीय बनाते हुए नई रौनक बख्शी-

हर रात बिकती रहीं,
रोटियों के लिए बेटियां
वेदनाएं,संवेदनाएं
मुंह ढककर रोती रहीं
होते ही भोर, संवेदनाएं स्वेत मुखौटे ओढ़ ।।

युवा कवि नरेंद्र पाल ने सुंदर भजन गाया और इस खूबसूरत ग़ज़ल से किताबों की दुनिया में एक बार फिर लौट चलने की पुरजोर पैरवी की-

अब तो बस यादें ही बाकी बची हैं,
सुनाई नहीं देता तराना किताब का।
चलो फिर से लौटा लें वो लम्हे,
भर दें दिल में खजाना किताब का।

वरिष्ठ ग़ज़लकारा शुभम साहित्यिक संस्था की अध्यक्षा सत्यवती सिंह ‘सत्या’ ने स्वास्थ्य खराब होते हुए भी सस्वर ग़ज़ल गाकर खूब तालियां बटोरीं-
हम तो उस वक्त ही मर जाएंगे
वो अगर सच में मुकर जाएंगे।
मौत का खौफ दिखाते क्यों हो
हम कहां जिंदा जो मर जाएंगे?
विशिष्ट अतिथि गजेंद्र सिंह ने शहरीकरण के खतरों से आगाह कराता सुंदर गीत प्रस्तुत किया और तालियां बटोरीं।
पेड़ बचे रह गये गाँव में फल शहरों को चले गये।
खाली हाथ खड़े गाॅंवों में अपनों से हैं छले गये।


हर आम से दिखते चेहरे की इक खास कहानी होती है।
मुस्कानों के पीछे अक्सर यादों की रवानी होती है।

ग़ज़लकार राजकुमार अग्रवाल राज़ ने यह ग़ज़ल सुनाकर प्रशंसकों से खूब तालियां बजवाईं-

चले आ रहे हैं सनम धीरे-धीरे
बढ़ाते हुए कुछ कदम धीरे-धीरे।
जवानी में मन तो भटकता फिरेगा
बुढ़ापे में होगा भजन धीरे-धीरे।

हास्य कवि मनोज दीक्षित ‘टिंकू’ ने राजनेताओं की स्वार्थलिप्सा पर अपनी कविता से कुछ इस तरह चोट की-
सबके सब चिकने घड़े हैं
अफसर-नेता सब कुर्सियों के पीछे पड़े हैं।
वरिष्ठ कवि डॉ. रामशंकर शर्मा ‘प्रेमी’ ने कहा-
मेरे इस जीवन वाहन की रफ्तार तुम्हारे हाथों में
मेरे इस नश्वर जीवन का उद्धार तुम्हारे हाथों में।

डीपी शर्मा ‘निराला’ ने ससुराल में बहुओं पर हो रहे अत्याचार को इन शब्दों में वाणी दी-
चीत्कार कर बेटी रोवे
चल-चल मेरे पापा, ले चल अपने गांव में।
यही हाल रहा जो रहा ‘निराला’ तो तड़प-तड़प मर जाऊंगी।

बिंदु सक्सेना उर्फ ‘इशिका सिंघानिया’ ने भी नारी सशक्तिकरण पर प्रभावी रचना प्रस्तुत की-
मैं आज की नारी हूं
इतिहास बनाने वाली हूं।
अब अपने‌ जुल्मों का शिकार नहीं बना सकता कोई मुझे
पर्वतों पर तिरंगा फहराने वाली मैं अरुणिमा सिन्हा हूं।
अब अबला नहीं सबला हूं।

काव्य गोष्ठी में ब्रजेंद्र तिवारी ‘अकिंचन’, साहित्य सुरभि महासचिव डॉ. राजेश शर्मा ‘ककरैली’, नवोदित कवि अंश मिश्रा ‘सोनांश’ ने भी सशक्त रचनाएं सुनाईं और पूरे सदन की प्रशंसा बटोरी।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments