Sunday, April 20, 2025
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पं. राधेश्याम कथावाचक का साहित्य आज भी प्रासंगिक और भविष्य में भी रहेगा

एफएनएन ब्यूरो, बरेली। राधेश्याम रामायण के रचयिता और महान नाटककार पंडित राधेश्याम कथावाचक की 134वें जयंती समारोह में साहित्यकार एवं इतिहासविद् डॉ. अनिल मिश्रा को ‘पं. राधेश्याम कथावाचक स्मृति सम्मान’ प्रदान किया गया। अतिथियों द्वारा ‘विविध संवाद’ पत्रिका के पं. राधेश्याम कथावाचक पर केंद्रित विशेषांक एवं हरि शंकर शर्मा की पुस्तक का लोकार्पण भी किया गया।

मानव सेवा क्लब के तत्वावधान में रोटरी भवन में हुए इस यादगार समारोह में इतिहासविद् डॉ. अनिल मिश्रा ने राधेश्याम कथावाचक की रचनाओं की भाषा पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि उनके शब्दों में भाव संप्रेषणता की अद्भुत शक्ति थी। वह सही अर्थों में भाषा के डिक्टेटर थे। उन्होंने अरबी, फारसी, उर्दू तथा संस्कृत की तत्सम शब्दावलियों का प्रचुरता से प्रयोग किया था।

विशिष्ट अतिथि साहित्यकार रमेश गौतम ने कहा कि राधेश्याम कथावाचक का संपूर्ण सृजन महत्वपूर्ण है। राधेश्याम रामायण में अभिव्यक्त उनकी नारी संवेदना बहुआयामी है। श्रीमती शारदा भार्गव ने अपने बाबा कथावाचक राधेश्याम के बारे में बताते हुए कहा कि उनका समूचा कृतित्व शाश्वत सांस्कृतिक मूल्यों को आधुनिकता की आंधी से बचाने के सार्थक प्रयास के रूप में सदैव प्रासंगिक रहेगा। उन्होंने इलाहाबाद के आनंद भवन में भी कथा वाचन किया था।

अध्यक्षीय उद्बोधन में साहित्यकार हरिशंकर शर्मा ने कहा कि पांडिचेरी विश्वविद्यालय में सुश्री सत्यभामा ने अभी हाल ही में पं. राधेश्याम कथावाचक पर पीएचडी की है लेकिन उनकी जन्मभूमि एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय में न तो ‘पं. राधेश्याम कथावाचक शोध पीठ’ है और न ही हिंदी विभाग जबकि यहीं पंडितजी के कृतित्व पर सबसे अधिक शोध कार्य होना चाहिए और जल्द ही पीठ की स्थापना होनी चाहिए। लेखक रणजीत पांचाले ने कहा कि राधेश्याम कथावाचक के नाटक युग सापेक्ष थे जिनमें उन्होंने अपने युग के प्रश्नों को प्रभावशाली ढंग से उठाया । एक ओर उनके हिंदी नाटकों में हिंदू संस्कृति की गूंज थी तो उनका उर्दू नाटक ‘मशरिकी हूर’ इस्लामी संस्कृति के अनुरूप था।

साहित्यकार डॉ. अवनीश यादव ने कहा कि पं. राधेश्याम कथावाचक का योगदान इस रूप में भी विशेष है कि उन्होंने पारसी थिएटर में प्रवेश करके तत्कालीन नाटकों को भौंडे हास्य तथा अश्लीलता से मुक्त किया। उन्होंने पौराणिक आख्यानों पर आधारित नाटकों के माध्यम से श्रेष्ठ जीवन मूल्यों को प्रतिस्थापित किया। साथ ही तत्कालीन समय और समाज में इस विश्वास को भी पुनर्प्रतिष्ठित किया कि साहित्य का उद्देश्य एक आदर्श समाज की स्थापना है।
मानव सेवा क्लब के अध्यक्ष सुरेन्द्र बीनू सिन्हा ने जिला प्रशासन से मांग की, कि जी. आई. सी. आडोटोरियम का नाम पंडित राधेश्यामकथावाचक के नाम पर रखा जाए।

पंडित राधेश्याम कथावाचक पर मानव सेवा क्लब द्वारा कराई गई निबंध प्रतियोगिता में मीरा मोहन ने प्रथम, अविनाश सक्सेना ने द्वितीय तथा प्रीति सक्सेना ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। सभी को प्रमाण पत्र और स्मृति चिन्ह क्लब के अध्यक्ष सुरेन्द्र बीनू सिन्हा, महासचिव प्रदीप माधवार, कवि देवेंद्र देव, रणधीर गौड़ ने बांटे।

कार्यक्रम का संचालन क्लब के अध्यक्ष सुरेंद्र बीनू सिन्हा ने किया। सभी का आभार इन्द्र देव त्रिवेदी ने व्यक्त किया। समारोह में प्रकाश चंद्र सक्सेना, अरुणा सिन्हा, मधु वर्मा, मधुरिमा सक्सेना, निर्भय सक्सेना, डा. अतुल वर्मा, रीता सक्सेना, शकुन सक्सेना, आशा शुक्ला, प्रो. एस. के. शर्मा, सरला चौधरी, निधि मिश्रा, डॉ एम एम अग्रवाल, सुनीत मूना आदि उपस्थित रहे। कायस्थ चेतना मंच के अध्यक्ष संजय सक्सेना की वैवाहिक वर्षगांठ पर उन्हें भी सम्मानित किया गया।

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