Thursday, November 7, 2024
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जंगलों की आग में ‘झुलसा’ काफल, पैदावार में आई गिरावट, 400₹ किलो तक पहुंचे दाम

एफएनएन, देहरादून: उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते प्रदेश सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है, लेकिन प्रकृति ने राज्य को तमाम अनमोल तोहफों से नवाजा है. जिसमें प्रदेश की खूबसूरत वादियां, नदियों समेत उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में जड़ी-बूटियां शामिल हैं. ऐसा ही एक पहाड़ी फल काफल है, जो ना सिर्फ उत्तराखंड का पारंपरिक फल है, बल्कि ये तमाम औषधीय गुणों के चलते कई बीमारियों की औषधि भी है. प्रदेश के जंगलों में हुई वनाग्नि की घटना के चलते काफल के उत्पादन पर बड़ा फर्क पड़ा है, जिसके चलते काफल के दामों में बढ़ोतरी देखी गई.

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400 रुपए प्रति किलो बिक रहा काफल

उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से न सिर्फ हजारों हेक्टेयर वन संपदा जलकर खाक हो गई है, बल्कि उत्तराखंड के लोकप्रिय फल काफल के पेड़ों को भी बड़ा नुकसान पहुंचा है. जंगलों में लगी आग के चलते काफल के उत्पादन में भले ही गिरावट आई हो, लेकिन काफल के रेट ने आग लगा दी है. 200 से 300 रुपए प्रति किलो बिकने वाला काफल वर्तमान समय में 400 रुपए प्रति किलो की दर से बिक रहा है. गर्मियों के सीजन में मिलने वाला यह काफल स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होता है. यही वजह है कि महंगे दामों में बिक रहे काफल का लोग खूब इस्तेमाल कर रहे हैं.

Kafal prices increase in Uttarakhand

उत्तराखंड राजकीय फल है काफल

उत्तराखंड का एक सर्वाधिक लोकप्रिय गीत “बेडू पाको बारामासा, हो नरैण काफल पाको चैता मेरी छैला” में भी काफल का जिक्र किया गया है. ये पहाड़ी फल, पहाड़ों में होने वाला एक जंगली फल है. ये फल गहरे लाल रंग का होता है. साथ ही इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है. काफल का वैज्ञानिक नाम मिरिका एस्कुलेंटा है. इस पहाड़ी फल में तमाम औषधीय गुण होने से इसे उत्तराखंड के राजकीय फल का दर्जा भी प्राप्त है. काफल सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं बल्कि, हिमाचल प्रदेश समेत नेपाल में भी पाया जाता है.

गर्मियों में स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद काफल

काफल को बेचने वाले विक्रेताओं का मानना है कि पर्वतीय क्षेत्रों में ज्यादा उत्पादन होने के कारण पहले ज्यादा काफल आता था, लेकिन इस बार मसूरी और चंबा से ही काफल मिल पा रहा है. उन्होंने कहा कि बाहरी क्षेत्र से आए टूरिस्ट काफल की खरीदारी कर रहे हैं. वहीं, पर्यटकों का मानना है कि काफल का सेवन गर्मियों में स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है.

काफल आय का बड़ा साधन

उत्तराखंड का पहाड़ी फल काफल मई से जून महीने के बीच पककर तैयार हो जाता है. काफल के पकने के बाद ही मई महीने से बाजारों में काफल मिलना शुरू हो जाता है. ये फल स्थानीय लोगों की आय का एक बड़ा साधन भी है, क्योंकि स्थानीय लोग खुद इस फल को तोड़कर बाज़ार में लाते हैं और एक्स्ट्रा इनकम के लिए बेचते हैं.

पहाड़ी काफल कई बीमारियो में आता है काम

उत्तराखंड के हिमालय में पाया जाने वाला काफल कई बीमारियों में काम आता है. जिसमें मुख्य रूप से इसका उपयोग त्वचा रोग और शुगर की बीमारी में किया जाता है. काफल हमारे शरीर में एक औषधि का काम करता है, क्योंकि काफल में विटामिन, आयरन समेत एंटी ऑक्सीडेंट्स मौजूद है. यही नहीं, काफल पेड़ की छाल, फल और पत्तियों का भी औषधीय गुणों में इस्तेमाल किया जाता है. काफल के पेड़ की छाल में एंटी इंफलैमेटरी, एंटी माइक्रोबियल, एंटी हेलमिथिंक और एंटी ऑक्सीडेंट पाई जाती है, जिसके चलते इसकी छाल का इस्तेमाल आंख की बीमारी, सिरदर्द और जुकाम में किया जाता है.

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