कंचन वर्मा, रुद्रपुर: दो बार भारतीय जनता पार्टी से विधायक रहे राजकुमार ठुकराल के राजनीतिक भविष्य को लेकर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। 3 साल होने को आए लेकिन राजकुमार ठुकराल को अभी तक राजनीतिक मंच नहीं मिला। पहले भाजपा में वापसी और अब कांग्रेस में उनकी ज्वाइनिंग की कोशिशो को बड़ा झटका लगा है। चर्चा है कि कांग्रेस का एक गुट हाईकमान से साफ कह चुका है कि अगर ठुकराल को पार्टी ज्वाइन कराई गई तो वे किनारा कर लेंगे, ऐसे में उत्तराखंड में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस कोई रिस्क लेना नहीं चाहती। हालांकि ठुकराल कांग्रेस के कुछ दिग्गजों के सहारे पार्टी में घुसने की फिराक में थे लेकिन इन दिग्गजों का मूड भी अब बदलता हुआ दिखाई दे रहा है।
राजकुमार ठुकराल दो बार रुद्रपुर सीट से भाजपा के विधायक रहे हैं। वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव टिकट कटने के बाद उन्होंने निर्दलीय लड़ा और तीसरे नंबर पर रहे। 27,000 मत उन्हें मिले। हालांकि इस चुनाव के बाद राजकुमार ठुकराल यह दावा करते रहे हैं कि अगर वह कांग्रेस के टिकट पर लड़े होते तो शायद आज रुद्रपुर से विधायक होते ? अब इस चुनाव को गुजरे ढाई साल से अधिक का समय हो चुका है लेकिन ठुकराल को कोई ठिकाना नहीं मिल सका। पहले वह भाजपा में वापसी की कोशिश करते रहे, यहां तक कि बिना शर्त उनकी वापसी के चर्चे भी तमाम बार हुए लेकिन राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते कोशिशे बेकार गईं। ठुकराल की दस्तक भाजपा के दरवाजे पर नहीं हो सकी। इसके पीछे कहीं न कहीं उनकी पुरानी ऑडियो बाधा बनती रहीं, जिसमें वह पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं और हिंदुओं को अपमानित करते हुए सुने जा सकते थे।
पिछले कुछ दिनों से ठुकराल के कांग्रेस में ज्वाइनिंग के चर्चे चल रहे थे। फिजाओं में बात घूम रही थी कि नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य उनकी ज्वाइनिंग में मददगार बन सकते हैं, लेकिन पार्टी के ही कुछ स्थानीय नेताओं के विरोध के चलते ठुकराल का यह पैतरा भी खाली चला गया। स्थानीय नेताओं ने साफ कर दिया कि अगर ठुकराल को ज्वाइन कराया गया तो वह पार्टी छोड़ देंगे। उत्तराखंड में क्योंकि कांग्रेस खुद हाशिये पर है, ऐसे में बड़े नेताओं ने इस मामले में पुराने नेताओं की बात को दरकिनार नहीं किया और ठुकराल की ज्वाइनिंग में यहाँ भी रोड़ा अटक गया। हालांकि ठुकराल के प्रयास अभी जारी हैं, क्योंकि स्थानीय नेताओं में भी कुछ उनकी परोकारी करते नजर आ रहे हैं।
बड़ा सवाल राजकुमार ठुकराल के राजनीतिक कैरियर को लेकर है। बिना मंच के कम ही नेता नेता रह पाते हैं। ठुकराल दो बार विधायक रहे हैं, उनका जनाधार भी है लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि रफ्ता- रफ्ता ठुकराल का साथ वे लोग तक छोड़ गए जो उनके काफी करीब माने जाते थे। उनके विरोधियों की भी कमी नहीं है।
यह माना कि नगर निगम चुनाव की आहट के साथ ही ठुकराल सक्रिय हुए हैं, लेकिन सीट सामान्य हो भी पाएगी या नहीं, इसको लेकर भी संशय है, हालांकि ठुकराल अपने भाई संजय के साथ-साथ खुद भी चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं, लेकिन कांग्रेस सहारा बनेगी या नहीं यह बात दीगर है। ठुकराल ऐसे में दोबारा निर्दलीय मैदान में उतर सकते हैं, इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता।