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एफएनएन ब्यूरो,बरेली। शुक्रवार 24 जनवरी को लेखिका संघ के तत्वावधान में बरेली में सुशीला धस्माना मुस्कान के आवास पर कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि आचार्य देवेंद्र देव तथा मुख्य आतिथ्य सेवानिवृत प्रधानाचार्य/कवयित्री अल्पना निगम ने किया।
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शुभारम्भ संस्थाध्यक्ष दीप्ती पांडे की सस्वर वाणी वंदना से हुआ।
अल्पना निगम ने कहा,,,
“वर्ष नूतन लो फिर से आया।
मन में उमंग सी लेकर आया।।”
कमल सक्सेना ने गीत पढ़ा,,,,
“कभी डुबोया था सागर में कभी गिरे प्राचीरों से।
युग-युग से यूँ लड़ते आये अपनी भाग्य लकीरों से। “
हिमांशु श्रोत्रिय ‘निष्पक्ष’ ने यह कविता पढ़ी,,
“कहीं केशव कहीं शंकर कहीं देवी निकलती हैं,
खुदाई का करिश्मा हर खुदाई में निकलता है।”
राजेश गौड़ ने बालिका दिवस पर बेटियों पर कविता सुनाई,,,
, ” बेटियाँ जिसके घर जायेंगी
उसकी होकर ही रह जायेंगी। “
बेटी नदिया की धारा सी है कह गयी लौटकर आउंगी। “
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गोष्ठी की संयोजिका सुशीला धस्माना ‘मुस्कान’ ने पंचचामर छंद में वीर रस की कविता पढ़ी,,,
“कटे फलों समान वे, सने लहू की धार में।
समान काल के लगे, विराज राम युद्ध में।।”
संस्थाध्यक्ष दीप्ती पांडे ने भी बेटियों पर कविता पेश की,,,”
” जब हर घर की शान होती हैं बेटियाँ,
घर में सबके दिल के पास होती हैं बेटियाँ।
बन सखी मां की सलाहकार
होती है बेटियाँ ।”
किरण प्रजापति दिलवारी ने यह कविता प्रस्तुत की,,,
” ये गुड़िया मेरी लाड़ो सारी दुनिया से न्यारी
ईश्वर ने दे दी है मुझको मेरी माँ फिर से प्यारी।”
अंशु गुप्ता ने कहा,,,
“चिथड़े-कपङों मे लिपटी अपनी उजड़ी सांसों को कंपन देती, वह मिली थी मुझे कराहती सिसकती नाली में पड़ी।”
मीरा मोहन ने कविता सुनाई,,,,
” देवी के सम ही रही है वेदों में नारी।
लक्ष्मी,साम्राज्ञी, महिषी, रत्ना संज्ञा थीं धारी।”
सीमा सक्सेना ‘असीम’ ने यह कविता पढ़ी,,,
माथे पर लगा कर रोचना
तेरी आरती उतार लूँ !
बाँधूं धागा मन्नतों का
हर मन्नत पूरी करा लूं!!
गीतकार कमल सक्सेना ने सफल संचालन किया। सुरेंद्र बीनू सिन्हा औऱ कल्पना सक्सेना ने सुशीला धस्माना ‘मुस्कान’ को मानव सेवा क्लब की ओर से काव्य व कहानी के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान के लिये स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। अल्पना नारायण व चित्रा जौहरी आदि ने भी काव्यपाठ किया। संयोजिका सुशीला धस्माना ने आभार व्यक्त किया।