- जांच में पुष्टि के बाद भी विकास भवन में लंबे समय से दबी थी फाइल
एफएनएन, रुद्रपुर : मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के गृह जनपद में अफसरों की सुस्ती का आलम देखते ही बनता है। एक ऐसे मामले पर विकास भवन के अफसर पर्दा डाले थे, जिसमें क्षेत्र पंचायत सदस्य का निर्वाचन ही गलत साबित हो रहा था। झूठा शपथ पत्र देकर चुनाव लड़ने वाले इस क्षेत्र पंचायत सदस्य की जांच में आरोप सिद्ध हो जाने के बाद भी कार्यवाही की फाइल विकास भवन में दबी रही। अफसर एक- दूसरे पर टाला- मटोली में लगे रहे। अफसरों का यह रवैया जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली भाजपा सरकार को आईना दिखाने के लिए काफी था। मामला सीडीओ के संज्ञान में आने के बाद उन्होंने क्षेत्र पंचायत सदस्य के खिलाफ विधिक कार्रवाई के बीडीओ को निर्देश दे दिए हैं। अब देखना यह है कि है फाइल आगे बढ़ती भी है या नहीं ?
मामला ग्रामसभा 16 भमरौला-रामनगर का है। यहां से क्षेत्र पंचायत सदस्य आभा सिंह पत्नी शंभू प्रताप सिंह पर झूठा शपथ पत्र देने का आरोप है। नियमानुसार दो बच्चों से ज्यादा वाला व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता, जबकि आभा सिंह के 4 बच्चे वंशिका 11 वर्ष, आयुष्मान प्रताप सिंह 9 वर्ष, रिद्धि सिंह 7 वर्ष और शिवांग प्रताप सिंह 4 वर्ष के हैं।आभा सिंह ने कोर्ट एवं सरकार के आदेश का उल्लंघन करते हुए बीडीसी सदस्य के लिए दाखिल नामांकन पत्र में अपने दो बच्चे ही दिखाएं। दो बच्चों को शपथ पत्र में नहीं दर्शाया गया। इस मामले में अक्टूबर 2019 में जिलाधिकारी से शिकायत हुई। इसमें भमरौला गांव के परिवार रजिस्टर के उस पन्ने की छायाप्रति भी लगाई गई, जिसमें आभा सिंह के चार बच्चे दर्ज हैं। इस मामले की जिलाधिकारी ने जांच कराई। तहसीलदार डॉक्टर अमृता शर्मा ने राजस्व उप निरीक्षक दीपक कुमार चौहान और ग्राम विकास अधिकारी संजय कुमार गांधी को जांच सौंपी तो इसमें आरोप सिद्ध हो गए। यह पाया गया कि आभा सिंह ने 4 बच्चे न दिखाकर शपथ पत्र में दो बच्चे ही दिखाएं हैं। ऐसे में तहसीलदार की ओर से जिलाधिकारी को जांच रिपोर्ट दी गई, जिसमें आभा सिंह को दोषी बताया गया और उनका चुनाव निरस्त करने की संस्तुति की गई। जिलाधिकारी ने राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव को पत्र भेजा और राज निर्वाचन आयोग ने पंचायती राज विभाग के सचिव को उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम 2016 (यथा संशोधित) की धारा 53 द का उल्लंघन पाते हुए इस मामले में कार्रवाई करने के निर्देश दिए। इसके बाद निदेशक पंचायती राज की ओर से उत्तराखंड शासन के प्रभारी सचिव डॉ रंजीत कुमार सिन्हा को पत्र भेजकर कार्रवाई हेतु उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम की धारा 138 में प्रतिनिधि किए गए प्राधिकारी के दृष्टिगत कार्रवाई को कहा । इसकी प्रति भी राज निर्वाचन आयोग के सचिव को भेजी गई। निदेशक पंचायती राज हरीश चंद्र सेमवाल ने आभा सिंह पर कार्रवाई के लिए जिला अधिकारी को पत्र भेजा और जिलाधिकारी ने सीडीओ को पत्र लिखकर औपचारिकता पूरी कर ली। बड़ा सवाल यह है कि दोषी मिलने के बाद भी आज तक इस मामले में 2 वर्ष बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। कार्रवाई की फाइल कभी राज्य निर्वाचन आयोग तो कभी पंचायती राज विभाग तो कभी जिलाधिकारी और सीडीओ के टेबल पर चक्कर काटती रही। इस मामले में सूचना अधिकार के तहत जानकारी भी ली जा चुकी है, इसके बावजूद अधिकारी कार्रवाई को तैयार नहीं है। ऐसे में भाजपा सरकार के जीरो टॉलरेंस का दावा मुख्यमंत्री के गृह जनपद उधम सिंह नगर में ही धड़ाम होता दिख रहा है। मामला सीडीओ के संज्ञान में आने के बाद उन्होंने फाइल दबाए बैठे जिला पंचायत राज अधिकारी को इस मामले में निर्देशित किया अब यह फाइल विधिक कार्रवाई के लिए बीडीओ को भेजी गई है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि 2 साल बाद भी इस मामले में कार्रवाई क्यों नहीं की गई ऐसे में जबकि पंचायती राज निदेशालय की ओर से भी आभा सिंह को दोषी ठहराया जा चुका है। अब देखना यह होगा कि यह फाइल कितना आगे बढ़ती है।
- बड़ा सवाल : आखिर कौन असरदार है फ़ाइल रोकने के पीछे ?
2 साल से भी अधिक समय से विकास भवन के अफसर इस मामले में लीपापोती में लगे हैं। बड़ा सवाल यह है आखिर क्यों ? क्या कोई राजनीतिक दबाव है या फिर स्थानीय अफसरों की मामले पर पर्दा डालने की मंशा। सूत्रों की मानें तो भाजपा के कुछ नेताओं के कारण अफसरों ने इस मामले पर पर्दा डाला है। 2 वर्ष बाद भी कार्रवाई न होना यह साबित करता है कि अफ़सर अपने कार्य को लेकर कितने जिम्मेदार हैं? और किस तरह निष्पक्षता से कार्य करते हैं। सूत्रों की मानें तो जल्द ही यह मामला कोर्ट में पहुंच सकता है और अफसरों की गर्दन नप सकती है। डीपीआरओ का इस मामले में गोलमोल जवाब बड़े सवाल पैदा कर रहा है।
- जिम्मेदार अफसरों के आदेशों के विपरीत विकास भवन के अफसरों की कार्रवाई
जिम्मेदार विभाग मसलन निदेशक पंचायती राज व निर्वाचन कार्यालय के आदेशों के विपरीत विकास भवन के अवसर इस मामले में कार्यवाही कर रहे हैं। पहले तो इस मामले पर पर्दा डाला जाता रहा, लेकिन जब मामला चर्चा में आया तो यह कहते हुए कार्रवाई को रोक दिया गया कि हाईकोर्ट ने एक ऐसे ही मामले में कार्रवाई पर रोक लगा दी। लेकिन सवालों में उलझे अफसर आखिर खुद फंस गए? पहला सवाल तो यही है कि फर्जी शपथ पत्र क्यों दिया गया ? कार्रवाई से बचते हुए अब बीडीओ की तरफ पासा फेंक दिया गया है और उन्हें विधिक कार्रवाई के लिए निर्देशित किया गया है। सूत्रों की मानें तो अफसरों को चुनाव आचार संहिता लगने का इंतजार है, ताकि इस मामले में कोई कार्यवाही न की जा सके।