Sunday, September 22, 2024
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सौम्य हैं तो रौद्र भी हैं प्रलय और संहार के देवता देवाधिदेव महाकालेश्वर शिवशंकर

पवित्र श्रावण मास पर सम्मानित शिव भक्तों के लिए Front News Network की विशेष प्रस्तुति

देवाधिदेव महाकालेश्वर शिवशंकर को संहार का देवता कहा जाता है। शंंकर जी सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। इन्हें अन्य देवों से बढ़कर माना जाने के कारण महादेव कहा जाता है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए हैं। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। शिव के कुछ प्रचलित नाम, महाकाल, आदिदेव, किरात, शंकर, चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय [मृत्यु पर विजयी], त्रयम्बक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, विषधर, नीलकण्ठ, महाशिव, उमापति [पार्वती के पति], काल भैरव, भूतनाथ, त्रिलोचन [तीन नयन वाले], शशिभूषण आदि।

भगवान शिव को रूद्र नाम से जाना जाता है रुद्र का अर्थ है रुत् दूर करने वाला अर्थात दुखों को हरने वाला अतः भगवान शिव का स्वरूप कल्याण कारक है। रुद्राष्टाध्यायी के पांचवें अध्याय में भगवान शिव के अनेक रूप वर्णित हैं। रूद्र देवता को स्थावर जंगम सर्व पदार्थ रूप, सर्व जाति मनुष्य देव पशु वनस्पति रूप मानकर के सर्व अंतर्यामी भाव एवं सर्वोत्तम भाव सिद्ध किया गया है इस भाव का ज्ञाता होकर साधक अद्वैतनिष्ठ बनता है।

शिवजी
रामायण में भगवान राम के कथन अनुसार शिव और राम में अंतर जानने वाला कभी भी भगवान शिव का या भगवान राम का प्रिय नहीं हो सकता। शुक्ल यजुर्वेद संहिता के अंतर्गत रुद्र अष्टाध्यायी के अनुसार सूर्य, इंद्र, विराट पुरुष, हरे वृक्ष, अन्न, जल, वायु एवं मनुष्य के कल्याण के सभी हेतु भगवान शिव के ही स्वरूप हैं। भगवान सूर्य के रूप में वे शिव भगवान मनुष्य के कर्मों को भली-भांति निरीक्षण कर उन्हें वैसा ही फल देते हैं। आशय यह है कि संपूर्ण सृष्टि शिवमय है। मनुष्य अपने-अपने कर्मानुसार फल पाते हैं अर्थात स्वस्थ बुद्धि वालों को वृष्टि रूपी जल, अन्न, धन, आरोग्य, सुख आदि भगवान शिव प्रदान करते हैं और दुर्बुद्धि वालों के लिए व्याधि, दुख एवं मृत्यु आदि का विधान भी शिवजी करते हैं।

  

श्री शिव महापुराण: जानें, इस पुराण के पाठ का माहात्म्य

श्री शिव महापुराण में भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया गया है। इस पुराण का संबंध शैव मत से माना जाता है। इसमें भगवान शिव की आराधना करने की आराधना और ज्ञान से परिपूर्ण आख्यान भी शामिल हैं। हिंदू धर्म में भगवान शिव त्रिदेवों में से एक हैं और संहार का देवता भी माना जाता है। भगवान शिव को महेश, महाकाल, नीलकंठ, रुद्र आदि देवताओं से भी पुकारा जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शिव महान योगी थे और इसीलिये उन्हें आदियोगी की संज्ञा भी दी जाती है। हिंदू शास्त्रों में भगवान शिव को एक ऐसे देवता के रूप में वर्णित किया गया है जो बहुत दयालु और भोले हैं और भक्तों की सच्ची पुकार पर प्रसन्न होते हैं। हालाँकि जब भगवान शिव क्रोध में आते हैं तो सारि सृष्टि काम्पने लगते हैं।
भगवान शिव की महिमा का गुणगान कई प्राचीन भारतीय ग्रंथों में देखने को मिलता है लेकिन शिव पुराण में उनके जीवन की गहराई से प्रकाश डाला गया है। शिव पुराण में उनके जीवन, विवाह, संत, रहन-सहन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है।श्री शिव महापुराण में 6 खंड और 24000 श्लोक हैं। इसके खंडों के नाम हैं-

  1. विद्याश्वर संहिता 2. रुद्र संहिता 3. कोटिरुद्र संहिता 4. उमा संहिता 5. कैलाश संहिता 6. वायु संहिता
  2. विद्याश्वर संहिता
    शिव पुराण की इस संहिता में भगवान शिव से संबंधित ओंकार, लिंग की पूजा और दान का महत्व बताया गया है। भगवान शिव के पुष्प से बने रुद्राक्ष और उनकी भस्म के बारे में भी इस संहिता में जानकारी दी गई है। बताया गया है कि ऐसे रुद्राक्ष को धारण नहीं करना चाहिए जिसमें कीड़े लगे हों, या जो खंडित हो। ज्योतिष शास्त्र की बहुत सी उपयोगी जानकारियां भी इस सहिंता में हैं।

  1. रुद्र संहिता
    शिव पुराण की यह महत्वपूर्ण संहिता है इसी संहिता के सृष्टि खंड में भगवान शिव को आदि शक्ति का कारण बताया गया है और बताया गया है कि विष्णु और ब्रह्मा की उत्पत्ति भी शिव से ही हुई है। इसके साथ ही इस संहिता में भोलेनाथ के जीवन और उनके चरित्र के बारे में भी जानकारी दी गई है। इस संहिता में पार्वती विवाह, कार्तिकेय और गणेश का जन्म, पृथ्वी प्रतिमा से जुड़ी कथा आदि का भी उल्लेख है। भगवान शिव की पूजा विधि का वर्णन इसी संहिता में भी देखें।
  2. कोटिरुद्र संहिता
    इस संहिता में शिव के अवतारों का उल्लेख है। भगवान शिव ने समय-समय पर सृष्टि की रक्षा करने के अवतार लिए हैं। उनके प्रमुख अवतार हैं- हनुमान जी, ऋषभदेव और श्वेत मुख। इस संहिता में भगवान शिव की आठ मालाओं का भी उल्लेख है। इनमें भूमि, पवन, क्षेत्रज, जल, अग्नि, सूर्य और चन्द्र को अधिष्ठित माना जाता है। यह संहिता इसलिये भी प्रसिद्ध है क्योंकि इसी प्रकार भगवान शिव के अर्द्धनारीश्वर रूप धारण करने की रोचक कथा है।
  3. उमा संहिता
    इस संहिता में माँ पार्वती के चरित्र के बारे में बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती भगवान शिव का ही अभिन्न रूप हैं। इसके साथ ही इस संहिता में दान, तप का महत्व बताया गया है। इस पुराण में पाप के प्रकार और उनसे मिलने वाले नरकों की जानकारी भी दी गई है। आप पाप कर्म करने के बाद उसका प्रायश्चित कारक कैसे प्राप्त कर सकते हैं इसका उल्लेख इस संहिता में भी किया गया है।
  4. कैलाश संहिता
    कैलाश संहिता में भगवान शिव की पूजा की संपूर्ण विधि है। साथ ही इसमें योग के बारे में भी विस्तार से बताया गया है। ब्रह्मा कहे जाने वाले शब्द ओंकार के महत्व की भी इस संहिता में विस्तार से चर्चा की गई है। इसी संहिता में गायत्री जप के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है।
  5. वायु संहिता
    वायु संहिता दो भागों में विभाजित है-पूर्व और उत्तर। इस संहिता में भगवान शिव के प्रधानता के लिए योग और मोक्ष प्राप्त करने के साथ ही शिव ध्यान के बारे में भी विस्तार से चर्चा की गई है। इस संहिता में भगवान महादेव के सगुण और निर्गुण रूप का भी उल्लेख है।

   श्री शिव महापुराण पढ़ने और सुनने से लाभ
भगवान शिव को भोलेनाथ भी कहते हैं और उनकी कृपा से भक्तों को कई कष्टों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि शिव भगवान की महिमा से परिपूर्ण शिव पुराण को पढ़ने से भक्तों को क्या लाभ मिलता है।

शिव पुराण का पाठ करने से व्यक्ति को भय से मुक्ति मिलती है।
इस पुराण का पाठ करने से व्यक्ति को भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। यदि आप अपने पापों से मुक्ति पाना चाहते हैं तो शिव महा पुराण का पाठ ही उपयुक्त है। सावन के महीने में शिव महापुराण का पाठ करने से जीवन के सभी दुखों से मुक्ति मिलती है।
शिव महापुराण के पाठ से मनुष्य को मृत्यु का भय नहीं लगता और मृत्यु के बाद ऐसे व्यक्ति को मोक्ष या शिवलोक प्राप्त होता है।
मानसिक शांति की प्राप्ति के लिए भी शिव महापुराण का पाठ विशेष फलदायी माना गया है।
शिव महापुराण पूजा विधि
शिव पुराण का पाठ और शिव भगवान की पूजा करने से पहले आपको नित्य कर्मों से निवृत्त, शुद्ध जल से स्नान कराना चाहिए। इसके बाद पूजा स्थल पर भगवान शिव और पार्वती के साथ नंदी की तस्वीर या मूर्ति की स्थापना की गई। यदि घर में पूजन है तो मिट्टी के पात्र में जल अभिलेख के रूप में जलाभिषेक करना। इसके बाद शुद्ध मन से शिवपुराण का पाठ नक्षत्र और रात्रि उत्सव का पाठ करना। शिव महापुराण का पाठ यदि महाशिवरात्रि के दिन कराया जाए तो व्यक्ति को कई तीर्थों का फल और परम मुक्ति मिलती है।
शिव पुराण का पाठ करवाकर अगर आप भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो सबसे पहली और महत्वपूर्ण नियम है- ब्रह्मचर्य का कठोरता से पालन। पाठ पर बैठने  चमकाने से आपको साफ पानी से नहाना और साफा-सुथरे कपड़े से रंगना होगा। अपने नैक-बाल आदि को भी साफ़ करना। जब तक आप शिव पुराण का पाठ कर रहे हैं तब तक आपको स्वर्ण नक्षत्रों पर भूमि नहीं मिलेगी। वैकल्पिक की बातों में आपको समय नहीं है नक्षत्रीय जन्म, ना है किसी की बुरी करण तिथियां और ना ही है सुन्नी जन्मोत्सव। मांस-मदिरा का सेवन भी अनुपयुक्त है। कथा के होने के बाद आपको शिव परिवार की पूजा करनी चाहिए।

शिव महापुराण का महत्व
भारतवर्ष के साथ ही पूरी दुनिया में भगवान शिव के भक्त हैं, वो भगवान शिव से सुख और शांति की कामना करते हैं। भगवान शिव के भक्तों के लिए शिव पुराण का सबसे बड़ा महत्व। इस पुराण में शिव भगवान की महिमा बताई गई है। इस पुराण में शिव जी को वात्सल्य, दया और करुणा की मूर्ति के रूप में महिमामंडित किया गया है। इस पुराण का पाठ करने से भक्तों के अंदर भी ऐसे ही गुणों का संचार होता है। यानि भक्तों का चरित्र भी भगवान शिव की तरह ही लगता है। जो भक्त शिव पुराण की विधि पूर्वक पाठ करते हैं वो जीवन-मरण के चक्र से भी मुक्ति पा जाते हैं। इसलिए हिन्दू धर्म में शिव पुराण को बहुत अहम माना गया है।

शिव पुराण में ‘ॐ’ के जप का महत्व बताया गया है, इसमें शिव का अक्षरशः मंत्र भी बताया गया है। जो भी व्यक्ति प्रतिदिन 1000 बार ‘ॐ’ का जप करता है उसे कई रोगों से मुक्ति मिलती है। इस जप को करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और व्यक्ति की आवाज में तेज आता है। ‘ॐ’ का जाप करने से कई मंत्रों से भी मुक्ति मिलती है। इसके अलावा शिव पुराण में यह भी उल्लेख है कि, ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र का प्रतिपादन स्वयं भगवान शिव ने अपने अनुयायियों के लिए किया था। यह मंत्र बहुत सूक्ष्म है लेकिन इसके जाप से बड़ी मुश्किलें भी दूर हो सकती हैं।

शिव महापुराण में वर्णित हैं मृत्यु से जुड़े रहस्य
महादेव प्रलयकर्ता और संहारक भी हैं। यद्यपि भगवान शिव की भक्ति करने से लंबी उम्र का वरदान प्राप्त होता है। जिस जातक की जन्म कुंडली में अल्पायु का योग होता है, उसे भी पंडितों द्वारा भगवान शिव की पूजा और अभिषेक करने की सलाह दी जाती है।

शिव महापुराण में इंद्रियों को वश में रखने और मोह-माया के चक्कर  में नहीं फंसने का भी संदेश है। बताया गया है कि पड़कर मोह और माया के बंधनों से व्यक्ति जब आजाद हो जाता है तभी उसे परम ज्ञान की प्राप्ति होती है। अपने चरित्र पर नियंत्रण रखना और अपनी वाणी और कर्मों से किसी को भी कभी कोई कष्ट नहीं देने की भी सीख दी गई है।
शिव महापुराण में सदैव सत्य बोलने और सत्य मार्ग पर ही चलने का संदेश भी दिया गया है। एक प्रसंग के अनुसार, जब माता पार्वती पूछती हैं कि सबसे बड़ा धर्म क्या है तो भगवान शिव कहते हैं कि सत्य का साथ देना ही सबसे बड़ा धर्म है।
जो भी व्यक्ति भगवान शिव की अहेतुकी कृपा प्राप्त करना चाहता है और जीवन से दुःख-दरिद्रता को दूर करना चाहता है तो उसे शिव महापुराण का पाठ करना-सुनना चाहिए। इस महापुराण को पढ़ने-सुनने से आत्मिक सुख के साथ मानसिक शांति भी मिलती है।

शिव महापुराण समेत विभिन्न शास्त्रों में वर्णित है ‘महामृत्युंजय मंत्र’
शिव महापुराण का सीधा संबंध शैव मत से है। शिव महापुराण में मुख्य रूप से भगवान शिव की भक्ति और महिमा का वर्णन किया गया है। प्रायः सभी पुराणों में भगवान शिव को त्याग,समर्पण, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। भगवान शिव को भक्तिभाव से बड़ी आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। ‘शिव महापुराण’ में भगवान शिव के जीवन, उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के बारे में पूर्ण विस्तार से बताया गया है।

भगवान शिव अपने भक्तों की भक्ति से जल्द प्रसन्न होकर उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। शिव महापुराण में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ऐसे कई फलदा़यी मंत्रों का वर्णन है। इन सभी मंत्रों में शिव को जल्द प्रसन्न करने का सबसे प्रभावशाली मंत्र है-महामृत्युंजय मंत्र।

देवता मंत्रों के अधीन होते हैं मंत्राधीनस्तु देवताः। मंत्रों से देवता प्रसन्न होते हैं। मंत्र से अनिष्टकारी योगों एवं असाध्य रोगों का नाश होता है तथा सिद्धियों की प्राप्ति भी होती है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता एवं निरुक्तादि शास्त्रीय ग्रंथों में ‘त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्‌ उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌।’- मंत्र महामृत्युंजय मंत्र के नाम से प्रसिद्ध है। शिवपुराण में सतीखण्ड में इस मंत्र को ‘सर्वोत्तम’ महामंत्र’ की संज्ञा से विभूषित किया गया है- मृत संजीवनी मंत्रों मम सर्वोत्तम स्मृतः। इस मंत्र को शुक्राचार्य द्वारा आराधित ‘मृतसंजीवनी विद्या’ के नाम से भी जाना जाता है। नारायणोपनिषद् एवं मंत्र सार में- ‘मृत्युर्विनिर्जितो यस्मात तस्मान्यमृत्युंजय स्मृतः’ अर्थात्‌ मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के कारण इन मंत्र योगों को ‘मृत्युंजय’ कहा जाता है। सामान्यतः मंत्र तीन प्रकार के होते हैं-वैदिक, तांत्रिक, एवं शाबरी। इनमें वैदिक मंत्र शीघ्र फल देने वाले हैं। त्र्यम्बक मंत्र भी वैदिक मंत्र है।

महामृत्युंजय मंत्र जाप के लाभ
आइये, जानते है भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र से होने वाले फायदों के बारे में-
अकाल मृत्यु से छुटकारा
जो जातक भक्तिपूर्वक इस मंत्र का जाप करते हैं, उन्हें अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता। उम्र बढ़ती है। इस मंत्र को जीवन प्रदाता मंत्र भी कहा गया है। प्रत्यक्षं ज्योतिषं शास्त्रम्‌ अर्थात्‌ ज्योतिष प्रत्यक्ष शास्त्र है। फलित ज्योतिष में महादशा एवं अन्तर्दशा का बड़ा महत्व है। ज्योतिष में वर्णित मारकेश ग्रहों की दशा एवं अन्तर्दशा में महामृत्युंजय मंत्र प्रयोग फलदायी है। जन्म, मास, गोचर, अष्टक आदि में ग्रहजन्य पीड़ा के योग, मेलापक में नाड़ी के योग, मेलापक में नाड़ी दोष की स्थिति, शनि की साढ़ेसाती, अढय्या शनि, पनौती (पंचम शनि), राहु-केतु, पीड़ा, भाई का वियोग, मृत्युतुल्य विविध कष्ट, असाध्य रोग, त्रिदोषजन्य महारोग, अपमृत्युभय आदि अनिष्टकारी योगों में महामृत्युंजय प्रयोग रामबाण औषधि है।

धन-संपत्ति में लाभ एवं रोगों से छुटकारा
महामृत्युजंय मंत्र का नित्य जाप व शिव पूजन करने से स्वास्थ उत्तम बना रहता है। अगर किसी बीमारी से पीड़ित हैं, तो वह रोग दूर हो जाता है। यदि आर्थिक समस्या बनी रहती है, धन हानि होती है, व्यापार में लाभ नहीं होता, तो इस मंत्र का जाप करने से धन-दौलत और वैभव प्राप्त होता है।

शनि की महादशा में शनि तथा राहु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, केतु में केतु तथा गुरु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, रवि की महादशा में रवि की अनिष्टकारी अंतर्दशा, चन्द्र की महादशा में बृहस्पति, शनि, केतु, शुक तथा सूर्य की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, मंगल तथा राहु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, राहु की महादशा में गुरु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, शुक्र की महादशा में गुरु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, मंगल तथा राहु की अन्तर्दशा, गुरु की महादशा में गुरु की अनिष्टकारी अंतर्दशा, बुध की महादशा में मंगल-गुरु तथा शनि की अनिष्टकारी अन्तर्दशा आदि इस प्रकार मारकेश ग्रह की दशा अन्तर्दशा में सविधि मृत्युंजय जप, रुद्राभिषेक एवं शिवार्जन से ग्रहजन्य एवं रोगजन्य अनिष्टकारी बाधाएँ शीघ्र नष्ट होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।

उपर्युक्त अनिष्टकारी योगों के साथ ही अभीष्ट सिद्धि, पुत्र प्राप्ति, राजपद प्राप्ति, चुनाव में विजयी होने, मान-सम्मान, धन लाभ, महामारी आदि विभिन्न उपद्रवों, असाध्य एवं त्रिदोषजन्य महारोगादि विभिन्न प्रयोजनों में सविधि प्रमाण सहित महामृत्युंजय जप से मनोकामना पूर्ण होती है। विभिन्न प्रयोजनों में अनिष्टता के मान से 1 करोड़ 24 लाख, सवा लाख, दस हजार या एक हजार महामृत्युंजय जप करने का विधान उपलब्ध होता है। मंत्र दिखने में जरूर छोटा दिखाई देता है, किन्तु प्रभाव में अत्यंत चमत्कारी है। महामृत्युंजय के जप करवाने के लिए संपर्क करे ।

समाज में मान सम्मान एवं संतान प्राप्ति
इस मंत्र का निरंतर जाप करने वाले जातकों को समाज में उच्च स्थान मिलता है। समाज में सम्मान बना रहता है, ख्याति फैलती है, नौकरी या कारोबार में तरक्की होती है, जीवन में आनंद की प्राप्ति होती है व सुख-समृद्धि बढ़ती है। ऐसे जातक जो निःसंतान है। वह प्रतिदिन शिव को जल अर्पित करने के साथ-साथ इस मंत्र का जाप करें, तो जल्द सुंदर संतान की प्राप्ति होगी।

भूमि-भवन, संपत्ति विवादों के निपटारे और महामारियों से बचाने में सहायक
इस मंत्र में आरोग्यकर शक्तियां हैं। इसके जाप से ऐसी ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो आपको मृत्यु के भय से मुक्त कर देती है। इसीलिए इसे मोक्ष मंत्र भी कहा जाता है। इस मंत्र के जप से शिव की कृपा प्राप्त होती है। अगर कुंडली में किसी भी प्रकार से मृत्यु दोष है, तो इस अनमोल मंत्र का जप करें। इस मंत्र का जाप करने से हर प्रकार की महामारी से बचा जा सकता है, साथ ही मंत्र जाप पारिवारिक समस्याओं, भूमि , भवन, संपत्ति के विवादों से भी बचाता है।

आपको व्यापार में घाटा हो रहा है, तो महामृत्युजंय मंत्र का जाप करें, लाभ होने लगेगा। भविष्य पुराण में कहा गया है कि महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से अच्छा स्वास्थ्य, धन, समृद्धि और लंबी उम्र मिलती है।

महामृत्युंजय मंत्र जाप करने का समय

शिव महापुराण में इस मंत्र का जप करने के लिए सुबह 2 से 4 बजे का समय सबसे उत्तम माना गया है, लेकिन अगर आप इस समय मंत्र जाप नहीं कर पाते हैं, तो सुबह उठकर स्नान कर साफ कपडे़ पहनें, फिर कम से कम पांच बार रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जाप करें।

महामृत्युंजय मंत्र की रचना
मृत्युंजय जप, प्रकार एवं प्रयोगविधि का मंत्र महोदधि, मंत्र महार्णव, शारदातिक, मृत्युंजय कल्प एवं तांत्र, तंत्रसार, पुराण आदि धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में विशिष्टता से उल्लेख है। मृत्युंजय मंत्र तीन प्रकार के हैं- पहला मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र। पहला मंत्र तीन व्यह्यति- भूर्भुवः स्वः से सम्पुटित होने के कारण मृत्युंजय, दूसरा ॐ हौं जूं सः (त्रिबीज) और भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) से सम्पुटित होने के कारण ‘मृतसंजीवनी’ तथा उपर्युक्त हौं जूं सः (त्रिबीज) तथा भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) के प्रत्येक अक्षर के प्रारंभ में ॐ का सम्पुट लगाया जाता है। इसे ही शुक्राचार्य द्वारा आराधित महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है।

इस प्रकार वेदोक्त ‘त्र्यम्बकं यजामहे’ मंत्र में ॐ सहित विविध सम्पुट लगने से उपर्युक्त मंत्रों की रचना हुई है। उपर्युक्त तीन मंत्रों में मृतसंजीवनी मंत्र ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्‌ ॐ स्वः भुवः ॐ सः जूं हौं ॐ। यह मंत्र सर्वाधिक प्रचलित एवं फल देने वाला माना गया है। कुछ लघु मंत्र भी प्रयोग में आते हैं, जैसे- त्र्यक्षरी अर्थात तीन अक्षरों वाला ॐ जूं सः पंचाक्षरी ॐ हौं जूं सः ॐ तथा ॐ जूं सः पालय पालय आदि। ॐ हौं जूं सः पालय पालय सः जूं हौं ॐ। हौं जूं सः पालय पालय सः जूं हौं ॐ।

इस मंत्र के 11 लाख अथवा सवा लाख जप का मृत्युंजय कवच यंत्र के साथ जप करने का विधान भी है। यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखकर पुरुष के दाहिने तथा स्त्री के बाएँ हाथ पर बाँधने से असाध्य रोगों से मुक्ति होती है। सर्वप्रथम यंत्र की सविधि विभिन्न पूजा उपचारों से पूजा-अर्चना करना चाहिए, पूजा में विशेष रूप से आंकड़े, एवं धतूरे का फूल, केसरयुक्त, चंदन, बिल्वपत्र एवं बिल्वफल, भांग एवं जायफल का नैवेद्य आदि। मंत्र जप के पश्चात्‌ सविधि हवन, तर्पण एवं मार्जन करना चाहिए। मंत्र प्रयोग विधि सुयोग्य वैदिक विद्वान आचार्य के आचार्यत्व या मार्गदर्शन में सविधि सम्पन्न हो तभी यथेष्ठ की प्राप्ति होती है, अन्यथा अर्थ का अनर्थ होने की आशंका हो सकती है।

शोधपरक आलेख- ज्योतिषाचार्य पंडित सुरेंद्र शर्मा

वरिष्ठ पुरोहित, कर्मकाण्डी विद्वान एवं पत्रकार

भूड़, बरेली

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