बरेली में लेखिका संघ की सरस काव्य गोष्ठी
एफएनएन ब्यूरो, बरेली। लेखिका संघ के तत्वावधान में बालाजी रेस्टोरेंट राजेंद्र नगर में काव्य गोष्ठी का आयोजित की गई। जिसकी राजेश गौड़ की अध्यक्षता तथा शायरा सिया सचदेव के मुख्य आतिथ्य में इस गोष्ठी का शुभारम्भ संस्था की सचिव किरण कैंथवाल की सरस सरस्वती वंदना से हुआ।
उमा शर्मा ने “लिखते जा रहे हँ” शीर्षक से प्रभावी काव्य पाठ किया।सुशीला धस्माना ‘मुस्कान’ ने ”याद तुम्हारी आती प्रियतम” गीत सुनाकर मन मोह लिया। सीमा सक्सेना असीम ने अनूठे अंदाज में पूछा, “क्या समय बदला है, क्या मौसम बदला है, या मैं ही बदल गयी हूँ। ” सिया सचदेव ने अपनी ग़ज़ल कुछ ऐसे पढ़ी, “बस जरूरत रही है रिश्तों की पर जरूरी कभी नहीँ रही मैं। मोना प्रधान ने कहा, “काले मेघों मध्य छुपी एक बूँद अनोखी”। अविनाश अग्रवाल ने अपनी ग़ज़ल के शेर सुनाकर वाहवाही लूटी।
मीना अग्रवाल ने अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा,,,”पहली बार जब तुमसे हुआ था सामना। मुश्किल हुआ था दिल को संभालना।” निर्मला सिंह ने कहा,,, बीत गयी सो बीत गयी मत उसकी कुछ बात करो, अपनेपन की गंध देते कुछ ऐसी मुलाक़ात करो।” उपाध्यक्ष अल्पना नारायण ने ‘सम्मान’ शीर्षक से कविता सुनाई। वरिष्ठ कवि कमल सक्सेना ने अपनी ग़ज़ल से तालियां बटोरीं,”जाने क्यों पाँव लड़खड़ाये हैँ। बाद ए मुद्द्त वो याद आये हैँ। आज फिर सुनके दोस्तों की ग़ज़ल, अपने भी ज़ख्म उभर आये हैँ। “
किरण कैंथवाल ने यह ग़ज़ल सुनाकर सबका मन मोह लिया-“मोहब्बतों के शहर में बदनाम फिरती हूँ, लेकर तेरा नाम सरेआम फिरती हूँ।” राजेश गौड़ ने अपने इस गीत पर खूब तालियाँ बजवाईं, “वर्षों पहले देखा सपना सच हो गया. सरयू के किनारे राम पैदा हो गया। दीप्ती पांडे नूतन ने अपनी कविता सुनाई, “मसले नर्म धागे सा जो मोहब्बत तेरी, जरूरी क्या है उसी की इबादत की जाये।”
अध्यक्ष दीप्ती पांडे ने मोहक संचालन किया। बेहतरीन रचनाओं पर बहुत से सुधी श्रोता और सभी रचनाकार पूरे समय वाहवाह करते और तालियाँ बजाते रहे।