वर्षों पहले राज्य में निहित हो चुकने के बावजूद नहीं लिया गया सरकारी कब्जा,
बड़े फर्जीबाड़े में एसआईटी ने कराईं पांच एफआईआर
एफएनएन ब्यूरो, देहरादून-उत्तराखंड। एसआईटी की जांच में गोल्डन फॉरेस्ट की हजारों हेक्टेयर जमीन को फर्जी तरीके से बेचने का खुलासा हुआ है। कंपनी की समस्त जमीन वर्षों पहले राज्य सरकार में निहित हो चुकने के बावजूद इस पर सरकारी कब्जा नहीं लिया गया और इस तरह हजारों हेक्टेयर जमीन को खुर्द-बुर्द हो जाने दिया गया।
एसआईटी जांच में राजस्व कर्मियों की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं। एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर पांच नए मुकदमे दर्ज कराए गए हैं। गोल्डन फॉरेस्ट्स रजिस्ट्री फर्जीवाड़े की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा इस फर्जीवाड़े की पूरी रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है। रिपोर्ट में बताया गया कि गोल्डन फॉरेस्ट्स की 4000 एकड़ से भी अधिक सरकारी जमीन विकास नगर, मिसरास पट्टी, मसूरी, धनोल्टी और आसपास के इलाकों में है।
भूमि दुबारा बेचने को ही बना़या ‘सिंडिकेट’
गोल्डन फॉरेस्ट्स की जमीनों पर कब्जों के चलते राजस्व विभाग ने काफी जमीन विभिन्न सरकारी विभागों को आवंटित कर दी थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाई है। इस रिपोर्ट के आधार पर ही पांचों मुकदमे दर्ज कराए गए हैं।
एसआईटी के विशेष कार्याधिकारी अजब सिंह चौहान ने रिपोर्ट में बताया कि हजारों हेक्टेयर भूमि जो पूर्व में ही गोल्डन फॉरेस्ट को विक्रय की जा चुकी थी, उसे साजिशन अन्य व्यक्तियों को बेचने की तस्दीक हुई है। गोल्डन फॉरेस्ट इंडिया ने इस पर कोई आपत्ति भी नहीं की। एसआईटी के मुताबिक अनुमान है कि एक भूमि को दो बार बेचने के लिए कई लोगों का ‘सिंडिकेट’ बनाया गया था।
एक ही भूमि कई व्यक्तियों को बेचने के मामले भी सामने आए हैं। जिसे पहले बेची गई और जिसे बाद में बेची गई, दोनों ने ही कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई है। जिससे आपसी सांठगांठ साबित हो रही है। गोल्डन फॉरेस्ट इंडिया की भूमि राज्य सरकार में निहित होने के बावजूद सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने के लिए ही उसे कई बार बेचा गया। एसआईटी ने राजीव दुबे, विनय सक्सेना, रविंद्र नेगी, संजय कुमार, रेणू पांडे, अरुण कुमार, संजय घई के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई है।