
कंचन वर्मा, बरखेड़ा (पीलीभीत) : भाजपा के लिए सॉफ्ट समझी जाने वाली बरखेड़ा विधानसभा सीट पर इस बार रहा मुश्किल है। समाजवादी पार्टी स्टेट पर भाजपा को कड़ा मुकाबला दे रही है। इसके पीछे बड़ी वजह क्षेत्र के लोगों की परेशानी है। हालांकि भाजपा ने मौजूदा विधायक का टिकट काटकर क्षेत्र के लोगों को संदेश दिया है लेकिन नए प्रत्याशी को लेकर भी लोगों में उत्सुकता नजर नहीं आती। हालांकि ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो 10 मार्च को ही पता लगेगा।
उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले की पूरी तरह से ग्रामीण परिवेश में रची बसी बरखेड़ा विधानसभा सीट में लोग मुख्यता खेती-किसानी से अपनी जीविका चलाते है। धान, गेंहू और गन्ना यहां की मुख्य फसल है। इस विधानसभा क्षेत्र में बड़े उद्योगों के नाम पर सिर्फ एक निजी क्षेत्र की चीनी मिल है। वह भी गन्ना किसानों को कभी समय पर मूल्य भुगतान नहीं दे पाती है। शिक्षा और चिकित्सा के मामले में इस इलाके का पिछड़ापन अब तक दूर नहीं हो सका है। पूरे विधानसभा क्षेत्र में सिर्फ एक विकास खंड है, इसके विभिन्न गांव दूसरे विधानसभा क्षेत्रों के विकास खंड के अंतर्गत आते हैं। बरखेड़ा में मुस्लिम 50 हजार के आसपास है, वहीं लोध, किसान राजपूत 1 लाख 10 हजार हैं। जनसंख्या में लोध किसान बिरादरी ज्यादा हैं इसीलिए इस क्षेत्र की राजनीति भी लोध किसान नेताओं पर टिकी है।
यह क्षेत्र बीजेपी का गढ़ माना जाता है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यहां एकतरफा वोट मिलता दिखा था। इतना ही नहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में मंडल की सबसे बड़ी जीत बीजेपी के उम्मीदवार को मिली थी, हालांकि इस बार विधानसभा चुनाव में सपा यह सीट बीजेपी से छीनने की पूरी कोशिश कर रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी सांसद वरुण गांधी को सबसे ज्यादा वोट मिला था, इसलिए उनके लिए यहां बीजेपी उम्मीदवार को जिताकर भेजने की चुनौती होगी। लेकिन उनकी पार्टी से नाराजगी कहीं ना कहीं सपा को मजबूती दे रही है।
बरखेड़ा विधानसभा सीट के इतिहास पर नजर डालें तो यह सीट साल 1967 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई। 1967 में इस सीट के लिए पहली दफा विधानसभा चुनाव हुआ और जनसंघ के किशोरी लाल जीते। जनसंघ के किशोरी लाल 1967 के साथ ही 1969 और 1974 में भी विजयी रहे। 1977 में किशोरी लाल ने जीत का चौका लगाया, लेकिन इस बार पार्टी थी जनता दल। 1980 में कांग्रेस (आई) के बाबू राम, 1985-1991 और 1993 में बीजेपी के किशन लाल, 1989 में निर्दलीय सन्नू लाल, 1996 और 2002 में सपा के पीतम राम, 2007 में बीजेपी के सुखलाल जीते। 2012 में इस विधानसभा सीट से फिर सपा के उम्मीदवार को जीत मिली।
सपा के हेमराज वर्मा जीते और अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री भी बने। 2017 में बीजेपी के टिकट पर उतरे किशन लाल राजपूत ने निवर्तमान विधायक सपा के हेमराज वर्मा को करीब 58 हजार वोट के बड़े अंतर से हरा दिया था। वह भी तब, जब 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार रहे स्वामी प्रवक्तानंद ने बगावत कर राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) से चुनाव लड़ा था। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर उतरे जिले के सबसे बड़े सर्जन डॉक्टर शैलेंद्र गंगवार तीसरे स्थान पर रहे थे।
यहां से बीजेपी के किशन लाल राजपूत विधयाक हैं, जिन्होंने बीजेपी को बरेली मंडल में सबसे जीत दिलाई थी। यह विधानसभा सीट पहले जनसंघ और अब बीजेपी का गढ़ मानी जाती है। इस बार भी मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच माना जा रहा है। भाजपा ने इस बार इस सीट पर किशनलाल का टिकट काटकर स्वामी प्रवक्ता नंद को अपना प्रत्याशी बनाया है, वहीं समाजवादी पार्टी से हेमराज वर्मा को पार्टी ने मौका दिया है।
कांग्रेस से हरप्रीत सिंह चबबा और बसपा से मोहन स्वरूप वर्मा चुनाव मैदान में है लेकिन मुख्य मुकाबला सपा और भाजपा में ही माना जा रहा है। सपा का किला इस बार इस विधानसभा क्षेत्र में मजबूत दिखाई दे रहा है। इसकी वजह मौजूदा विधायक की क्षेत्र के विकास को लेकर लापरवाही शामिल है, हालांकि भाजपा ने उनका टिकट काट दिया है लेकिन प्रत्याशी बनाए गए स्वामी प्रवक्ता नंद को लेकर भी लोग खुश नहीं हैं। वही आवारा जानवर यहां बड़ी समस्या है जो ग्रामीणों की फसल को बर्बाद करते हैं। सपा प्रत्याशी हेमराज वर्मा ने लोगों की परेशानियों को समझते हुए उन्हें भरोसा दिलाया यदि सपा सरकार सत्ता में आई तो 1 माह के भीतर आवारा पशुओं से निजात मिलेगी।

