फ्रंट न्यूज नेटवर्क ब्यूरो, बरेली। बज्मे सुखन पीपलसाना की जानिब से फ़राज़ अकादमी पीपलसाना में आल इंडिया मुशायरा आयोजित किया गया। मुशायरे में मुल्क के मशहूर और मारूफ शोरा हजरात ने हिस्सा लिया।

मुशायरे की शुरुआत हाजी अमीर हुसैन ने शमा रोशन कर की। नूर कादरी ने आयत ए करीमा और नआत शरीफ पेश की।शुभम ने इस ग़ज़ल से वाहवाही बटोरी-
किसी का चाहने वाला किसी से दूर न हो,
मुहब्बतों में हलाला हराम होता है।
मनोज मनु ने भी अपनी इस ग़ज़ल पर खूब तालियां बजवाईं- ज़मीं पे पांव फलक पे निगाह याद रहे,
मियां बुजुर्गो की ये भी सलाह याद रहे।
मुरसलीम ‘ज़ख्मी’ की इस उम्दा ग़ज़ल पर पूरी महफिल वाहवाह करती रही-
सर कटाना तो हम जानते हैं,
सर झुकाने की आदत नहीं है।
अशोक साहिब ने कहा कि आदमी को हर कदम इंसान होना चाहिए,
सबके दिल में प्यारा हिंदुस्तान चाहिए।

इरफान हमीद काशीपुरी ने अपनी इस ग़ज़ल से खूब तालियां और वाहवाही हासिल की- ये ही किस्मत में था शायद कि सरे शीश महल,
एक दिन संग ब कफ आईना गर आने थे।
प्रोफेसर मुहम्मद हुसैन ‘दिलकश’ आगरा ने अपनी यादगार ग़ज़लों से मुशायरे को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा़या- लहू की किस्त चुकाई है मुद्दतों साहिब,
हमारी आंखों ने जब-जब ये ख्वाब देखे हैं।
शायर नफीस पाशा ‘मुरादाबादी’ ने अपना शानदार कलाम पेश किया और खूब तालियां और वाहवाह लूटी-महफ़िल में ये कमाल तुझे देखके हुआ,
दस्ते हसीं हलाल तुझे देखके हुआ।
सहील भोजपुरी ने यह ग़ज़ल पेश की- किसी का राज न खुल जाए रोशनी में कहीं,
कभी-कभी तो दियों को बुझाना पड़ता है।
डॉ. आज़म बुराक़ की ग़ज़ल भी खूब सराही गई- इल्ज़ाम मेरे वास्ते पहले से ही तय थे,
किरदार अभी मैंने निभाया भी नहीं था।
शायर फरहत अली ‘फरहत’ ने अपने इस कलाम से सबको प्रभावित किया- हमने गुलशन से नहीं कोई शिकायत की है,
फूल तो फूल हैं कांटों से मुहब्बत की है।
सैफ उर रहमान ने सुनाया- यूं भी तमाम दोस्तों का दिल बड़ा रहा,
मैं कहकहे लगाने की जिद पर अड़ा रहा।
माईल भोजपुरी ने कहा- तकमीले ज़िंदगी का पता ढूंढते रहे,
हम उम्र भर फना में बका ढूंढते रहे।
करीम मुरादाबादी ने कहा कि हसरतों के सुपुर्द ग़म करके,
घर में बैठा हूँ आँखें नम करके।
तहसीन मुरादाबादी ने फरमाया- ऐ खुदा मस्जिदे अक्सा की हिफाजत करना,
ये दुआ करते हुए आंखों में नमी आई है।
उस्ताद शायर बिस्मिल भोजपुरी ने कहा- करम की आस लिए बेकरार आए हैं,
तेरे दयार पे ये दिल फिगार आए हैं।
बुजुर्ग शायर नूर कादरी ने कहा कि बामो-दर पे छा जाए रोशनी चिराग़ों की,
आज फिर जरूरत है ऐसे ही चिरागों की।
दावर मुरादाबादी ने कहा के बादे-सबा से सूरज की फिर पहली किरन से यह बोला,
शब का मुसाफिर फूलों पर फिर अपनी शबनम भूल गया।
रईस अहमद ‘राज़ नगीनवी’ ने ग़ज़ल पेश की-फासला दिल से मिटाना अब जरूरी हो गया,
रूठे भाई को मनाना अब जरूरी हो गया।
अक़ीमुद्दीन बिजनौरी ने सुनाया-मेरी आंख के आंसू तुम संभाल कर रखना,
यह मेरी मुहब्बत की आखरी निशानी हैं।
मशहूर शायर सरफराज हुसैन ‘फ़राज़’ ने अपना कलाम कुछ इस तरह पेश किया- शर्म ओ हया से और न पास ए हिजाब से,
पहुंची है दिल को चोट तुम्हारे जवाब से।
जुबैर मुरादाबादी ने ग़ज़ल पेश की-सदियों का रतजगा मिरी आंखों को सौंपकर,
चुपचाप चल दिया है वो इक अजनबी के साथ।
सदर ए मुशायरा सय्यद गुफ़रान राशिद गुलावठी ने फरमाया- तेरे ग़मों से ख़ुशियों के पहलू खंगाल के,
मुश्किल को आ गया हूं मैं मुश्किल में डाल के।
कार्यक्रम के अन्त में धन्यवाद कन्वेनर रिजवाना नर्गिस ने किया। इस अवसर पर सैकड़ों अदब परस्त लोगों ने खूबसूरत शेर-ओ-शायरी का जमकर लुत्फ लिया।