एफएनएन, रुद्रप्रयाग। आधुनिकता की अंधी दौड़ के चलते पहाड़ की रीढ़ पहाड़ी घराट (पारम्परिक पन चक्कियां) विलुप्ति की कगार पर हैं। पहाड़ियों में अरसे से बंद पड़े खंडहरनुमा घराटों की जगह आधुनिक आटा चक्कियों ने ले ली है। ऐसे में रुद्रप्रयाग के एक गांव के कक्षा 11 के होनहार छात्र ने परिवार की मदद से अपने पुश्तैनी घराट को 25 साल बाद चालू किया है। गांव और आसपास के लोग सेहत के लिए फायदेमंद घराट का पिसा आटा खाकर बहुत खुश हैं। साथ ही परिवार की आमदनी भी बढ़ गई है।
रुद्रप्रयाग में 11वीं के छात्र अमित भट्ट ने चाचा शिवशंकर भट्ट की मदद से 25 साल से बंद पड़े अपने घराट को दुबारा चालू किया है। गांव के लोगों को पहले गेहूं या अन्य अनाज पिसाने के लिए तीन-चार किलोमीटर दूर जाना पड़ता था।अब गांव में ही घराट चालू होने से ग्रामीण
आसानी से अनाज पिसवा लेते हैं। घराट में पिसा आटा बेहद पौष्टिक और पेट के लिए अच्छा माना जाता है। घराट में उन्होंने कुछ बदलाव भी किए हैं। पुरानी लकड़ी की टरबाइन की जगह लोहे की हल्की टरबाइन समेत कई आधुनिक उपकरण लगाए गए हैं ताकि कम पानी में भी घराट साल भर चल सके।
शिवशंकर भट्ट बताते हैं कि पहले पानी को टरबाइन पर डालने के लिए पठालों का इस्तेमाल किया जाता था। अब इनकी जगह पाइप लगा दिए हैं जिससे पानी ज़्यादा मात्रा में और तेज़ी से टरबाइन पर गिरता है। दरअसल सर्दियों में पानी कम होने के कारण पहाड़ के घराट बंद हो जाते थे लेकिन अमित भट्ट ने घराट को पुनर्जीवित कर अन्य लोगों को भी राह दिखाई है। अब कम पानी में भी आधुनिक हल्की टरबाइन पर भी घराट बारहों महीने चलाकर स्वरोज़गार का माध्यम बनाया जा सकता है।
घराट बनने के बाद अमित आजकल कम पानी में भी रोजाना 80 किलो आटा अपने घराट में पीस रहे हैं। बरसात में पानी बढ़ने पर ढाई क्विंटल तक पिसाई हो सकती है। लिहाजा अमित के परिवार को आमदनी का नया जरिया भी मिल गया है।