संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
एफएनएन, वाशिंगटन। अमेरिका ने ब्राजील को छोड़कर भारत, जापान और जर्मनी को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट देने की मांग का तो समर्थन किया है लेकिन पांच देशों की वीटो पॉवर से छेड़छाड़ नहीं होने देने का इरादा भी जाहिर किया है।
भारत समेत दुनिया के कई देश लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बदलाव की मांग विभिन्न फोरमों पर उठाते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत लिंडा थॉमस ग्रीनफील्ड ने गुरुवार को समर्थन की घोषणा की। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका सुरक्षा परिषद में अफ्रीकी देशों के लिए अस्थायी सदस्यता के अलावा अफ्रीका के लिए दो स्थायी सीटें देने का भी समर्थन करता है। अमेरिकी राजदूत ने हालांकि यह भी स्पष्ट किया है कि अमेरिका वीटो पावर का विस्तार करने या उससे छेड़छाड़ के पक्ष में नहीं है।
ब्राजील को स्थायी सीट के समर्थन से इन्कार
अमेरिकी राजदूत ने ब्राजील को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता को लेकर स्पष्ट रूप से अपना समर्थन व्यक्त नहीं किया है। बताते चलें कि जी4 देशों में शामिल भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील लंबे समय से एक-दूसरे को सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट देने का समर्थन करते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र में यूएस राजदूत थॉमस ग्रीनफील्ड ने कहा कि ‘भारत की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है और हम वास्तव में उसके स्थायी रूप से सुरक्षा परिषद में होने का दृढ़ता से समर्थन करते हैं। मुझे लगता है कि भारत को इसमें शामिल न करने का कोई आधार नहीं है। फिर भी ऐसे लोग हैं, जो विभिन्न कारणों से विभिन्न देशों का विरोध करेंगे। इस पर आगे बातचीत की जाएगी।’
वीटो पावर देने के पक्ष में नहीं अमेरिका
अमेरिका के एक शीर्ष अधिकारी ने भी सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सीट देने का समर्थन किया। उन्होंने भारत के अलावा लैटिन अमेरिकी, कैरिबियाई देशों को भी स्थायी प्रतिनिधित्व देने की पैरवी की। हालांकि, इस अधिकारी ने भी दोहराया कि अमेरिका नए स्थायी सदस्यों के लिए वीटो का विस्तार करने का समर्थन नहीं करता है। वीटो को लेकर हमारा रुख नहीं बदला है। हमारा मानना है कि वीटो का विस्तार करने से परिषद में और भी अधिक गतिरोध पैदा होगा।’
भारत वर्षों से चला रहा सुरक्षा परिषद में सुधार की मुहिम
भारत सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए वर्षों से अभियान चला रहा है। भारत का कहना है कि साल 1945 में स्थापित 15-राष्ट्रों की सुरक्षा परिषद 21वीं सदी की चुनौतियों का मुकाबला करने में बिल्कुल भी सक्षम नहीं है और समकालीन भू-राजनीतिक परिस्थितियों को भी प्रतिबिंबित नहीं करती है। भारत ने सुरक्षा परिषद की विफलता का उदाहरण देते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध और इस्राइल-हमास संघर्ष का भी जिक्र किया है।