एफएनएन, देहरादून : उत्तराखंड के चमोली जिले के तपोवन में आई आपदा के बाद सरकार भी अपडेट होने की कोई कसर नहीं छोड़ रही है। एसडीआरएफ की ओर से वाटर लेवल सेंसर और अलार्म सिस्टम लगाया जा रहा है। इन अत्याधुनिक उपकरणों की मदद से नदी का जलस्तर बढ़ने से तुरंत ही अलार्म बज उठेगा। अलार्म की मदद से जिले प्रशासन को किसी भी आपदा से पहले ही बचाव के उपाय कर सकेगी। वहीं दूसरी ओर, तपोवन व आसपास के क्षेत्र के बाद राहत व बचाव कार्य जारी है। आपदा के एक हफ्ते बाद भी लापता लोगों के सुराग नहीं होने परिजनों के आंखों के आंसू सूखने का नाम नहीं ले रहे हैं। चिंता की बात है कि आपदाग्रस्त क्षेत्र से अब तक 53 लोगों की लाश मिल चुकी है। जबकि, एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी 154 लोगों का कोई सुराग नहीं है। एनडीआरएफ,एसडीआरएफ,सेना,आईटीबीपी, बीआरओ आदि के जवान लापता लोगों को खोजने में कोई कमी कसर नहीं छोड़ रहे हैं। तबाही होने के तुरंत बाद से लोगों को बचाने का हर संभंव प्रयास किया जा रहा है। आपदा ग्रस्त क्षेत्र में भारतीय वायु सेना का चिनूक की मदद से आपदा क्षेत्र में भारी सामान लाने मे मददगार साबित हो रहा है। जिला प्रशासन ने रैणी क्षेत्र में आई आपदा में लापता लोगों की तलाश के लिए अधिशासी अभियंता आरडब्ल्यूडी और तहसीलदार के नेतृत्व में एक टीम भी बनाई जा चुकी है, जो लापता लोगों की खोजबीन करने में जुटी हुई है। लेकिन, सुरंग के जमी गाद व मलबा राहत कार्य की रफ्तार को कम कर रहा है। जो पुरानी फोटो के आधार एवं स्थानीय लोगों की मदद से ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट में काम करने वाले लोगो की तलाश में जुट गई है। इसके साथ ही यह टीम जहां पर भी लोगों के दबे होने की संभावना है वहां एनडीआरएफ और कंपनी के लोगों के साथ मिलकर लापता लोगों की तलाश कर रही। सर्च टीम यहां पर एक्सावेटर मशीन और जेसीबी से मलबे में खुदाई कर लापता लोगों की तलाश की जा रही है। चिंता की बात है कि सुरंग के अंदर गाद मिलने से टनल में कैमरा डालने का प्रयोग सफल नहीं हो पाया। अब बचाव दल इस छेद को बड़ा करने में जुटा हुआ है। इधर, जेसीबी से मलबा हटाने के लिए डम्पर भी लगा दिए गए हैं। तपोवन सुरंग में फंसे लोगों को निकालने का प्रयास जारी है। पहले पांच दिन सिर्फ जेसीबी ही मलबा हटाने का काम कर रही थी, अब जेसीबी के साथ सुरंग में डम्पर भी भेजे गए। जो मलबा बाहर लाने में लगे रहे। इसके साथ ही नई मशीनों के साथ ड्रिल का प्रयास भी किया। आपदा के छह दिन बाद भी 167 लोग लापता हैं। बता दें कि ऋषिगंगा पर बनी झील से पानी निकालने के लिए विशेषज्ञों ने रौंठी गदेरे के बाईं ओर से झील को धीरे धीरे खोलने की सलाह दी है। नदी का वास्तविक रास्ता इसी ओर है और इससे भविष्य में झील से आपदा का खतरा भी नहीं रहेगा। ऋषिगंगा कैचमेंट एरिया में हिमस्खलन और झील बनने की वजह से ऋषिगंगा में बाढ़ आ गई थी जिसने भारी तबाही मचाई। उस तबाही से मिले जख्म अभी हरे भी नहीं हैं कि अब विशेषज्ञ ऋषिगंगा पर बनी झील से भी खतरे की आशंका जता रहे हैं। इसके खतरे से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग ने तैयारी शुरू कर दी है। नौ सदस्यीय दल गठित करने के पीछे मुख्य मकसद यही है कि झील के खतरे से निपटने के लिए एक्शन प्लान तैयार किया जा सके। आपदा प्रबंधन विभाग के सूत्रों ने बताया कि झील को खाली करने के संदर्भ में विशेषज्ञों ने तीन विकल्प दिए हैं। इसमें पहला विकल्प है कि झील के कोने से मिट्टी को धीरे-धीरे हटाकर पानी के लिए रास्ता बनाया जाए। दूसरा विकल्प यह है कि पंप या पाइप के सहारे पानी को निकाला जाए। तीसरा विकल्प कंट्रोल ब्लास्टिंग भी है। लेकिन इससे पानी के अचानक डिस्चार्ज होने का भी खतरा है। ऐसे में झील के किनारे को धीरे धीरे खोलने के विकल्प पर ही काम होने की संभावना है। उत्तराखंड अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक डॉ एमपीएस बिष्ट का भी मानना है कि झील को रोंथी गदेरे की ओर यानी झील के बाईं ओर से खाली करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अभी झील के बीच से पानी निकल रहा है। लेकिन जब तक नदी का वास्तविक रास्ता नहीं खोला जाता तब तक झील से खतरा बना रहेगा।