


- 1866 से 2010 के बीच साढ़े तीन किमी खिसका, लगातार भारी बारिश बनी बड़ा खतरा
- हर साल 25 मीटर तक खिसक रहे, वर्ष 2010 से कुछ घटी है ग्लेशियर पिघलनने की रफ्तार
पर्यावरण पर संकट
एफएनएन, उत्तरकाशी। मौसम में आ रहे बदलाव गंगोत्री ग्लेशियर पर भारी पड़ रहे हैं। करीब 25 मीटर सालाना रफ्तार से पीछे खिसक रहे ग्लेशियर की मोटाई भी कम होती जा रही है। रेन फॉल एरिया बढ़ने से अब चार हजार मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी हो रही बारिश ग्लेशियरों की सेहत के लिए खतरनाक मानी जा रही है।
गोमुख से चौखंबा बेस तक करीब 28 किमी लंबे इस ग्लेशियर में मिलने वाले अधिकांश छोटे ग्लेशियर पीछे खिसक चुके हैं और इसके ऊपर जगह-जगह झीलें बन गई हैं।
वर्ष 2010 में गोमुख से चौखंबा बेस तक गंगोत्री ग्लेशियर का मुआयना करने वाली आईएमएफ की टीम का नेतृत्व करने वाली डॉ. हर्षवंती बिष्ट बताती हैं कि ग्लेशियर पीछे खिसकने के साथ ही इसकी मोटाई भी कम हो रही है।
वर्ष 1866 से 2010 के बीच यह ग्लेशियर करीब साढ़े तीन किमी पीछे खिसका है। इसमें मिलने वाले रक्त वर्ण, चतुरंगी, घनोहिम आदि तमाम ग्लेशियर अब इससे अलग हट गए हैं। इन ग्लेशियरों के जंक्शन प्वाइंट बर्फ विहीन हो गए हैं और जगह-जगह झीलें बन गई हैं। वर्ष 2010 में गोमुख से चौखंबा बेस तक गंगोत्री ग्लेशियर का मुआयना करने वाली आईएमएफ की टीम का नेतृत्व करने वाली डॉ. हर्षवंती बिष्ट बताती हैं कि ग्लेशियर पीछे खिसकने के साथ ही इसकी मोटाई भी कम हो रही है। इसमें मिलने वाले रक्त वर्ण, चतुरंगी, घनोहिम आदि तमाम ग्लेशियर अब इससे अलग हट गए हैं। इन ग्लेशियरों के जंक्शन प्वाइंट बर्फ विहीन हो गए हैं और जगह-जगह झीलें बन गई हैं।
गंगोत्री ग्लेशियर को नुकसान पहुंचा रही बारिश
गंगोत्री हिमालय क्षेत्र में पर्वतारोहण के लिए जाने वाले पर्वतारोही बताते हैं कि बीते कुछ सालों से भोजवासा, गोमुख क्षेत्र में भी बारिश हो रही है। जबकि पूर्व में यहां बरसाती सीजन में भी बर्फबारी ही होती थी। बारिश और ग्लेशियर की सतह पर उभरी झीलों का पानी गंगोत्री ग्लेशियर को नुकसान पहुंचा रहा है। पूर्व में हुए अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2008 के बाद गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार में कमी दर्ज की गई थी। रेन फॉल एरिया बढ़ने से अब चार हजार मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी बारिश हो रही है। यह ग्लेशियर के लिए खतरनाक है।
इनका क्या कहना है
इन स्थितियों के लिए प्रदूषण आदि ग्लोबल कारण जिम्मेदार हैं। इन बदलावों को रोक पाने की फिलहाल कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। जल्द ही गंगोत्री ग्लेशियर का अध्ययन कराया जाएगा।
– डीपी डोभाल, वैज्ञानिक वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान देहरादून