कर्मचारियों के वेतन भत्ते और पेंशन का खर्च कम करने के लिए विभागों का पुनर्गठन।
नगरपालिका क्षेत्र में बिजली की खपत पर एक अधिबार या उपकर लगे, इससे बिजली बिलों का भुगतान हो।
विस्तृत सर्वेक्षण के बाद जीआईसी आधारित मास्टर प्लान तैयार हो, इसके लिए 15 करोड़ अनुदान दिया जाए।
400 करोड़ की ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजना में राज्य के हिस्से की 180 करोड़ के अनुदान की सिफारिश।
भूमिगत कचरा बिन स्थापित करने के लिए 20 करोड़ रुपये की सिफारिश की। शहरी निकायों में देहरादून, हरिद्वार और हल्द्वानी में विद्युत शवदाह गृह बनें, 100 करोड़ के संयुक्त अनुदान की सिफारिश।
प्रदेश के ग्रामीण निकायों में 20 करोड़ रुपये का संयुक्त अनुदान दिया जाए। ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा क्षेत्र में सूक्ष्म उद्यमों के माध्यम से आर्थिक गतिविधियों को सुगम बनाना होगा। स्वैच्छिक, समेकित, प्रसंस्करण उद्योग लिंकेज के साथ अनुबंध खेती व तकनीकी निवेश की समीक्षा होनी चाहिए।
कृषि, बागवानी अनुसंसाधन, प्रसंस्करण, उत्पादन, विपणन में यदि गंभीर अड़चने हैं, तो संस्थागत संरचना और रणनीति में बदलाव किए जाएं।
बैंकाक की तर्ज पर जैव चिकित्सा अपशिष्ट का सुरक्षित निपटान आवश्यक है।
पर्यटन विकास योजना पर नए सिरे से विचार कर भविष्य की योजनाओं और रणनीतियों को बदली हुईं परिस्थितियों के अनुरूप तैयार करना होगा।
शहरी स्थानीय निकायों के लिए वैल्यू कैप्चर फाइनेंस को राजस्व का महत्वपूर्ण स्रोत बनाया जा सकता है। विकास प्राधिकरण बेहतरी शुल्क, विकास शुल्क लागू कर सकते हैं।
आयोग ने पूर्ववर्तीय आयोग की तर्ज पर जिला पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों को संपत्ति एवं विभव कर को व्यवसाय कर के रूप में लगाने की सिफारिश की है।
ग्राम पंचायतों के कार्यालयों में कर्मचारियों की कमी को दूर किया जाना चाहिए।
शहरी स्थानीय निकायों के भीतर एक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन या प्रकोष्ठ बनें, जिसमें विशिष्ट तकनीकी और प्रबंधकीय विशेषज्ञता वाले कर्मचारी हों।
शहरीकरण से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर विचार करने और स्थानीय परिस्थितियों व विभिन्न हितधारकों के लिए उपयुक्त व उचित समाधान के उपाय सुझाने के लिए शहरी विकास संस्थान की स्थापना होनी चाहिए।
शहरी विकास निदेशालय को भी मजबूत किया जाना चाहिए।