Monday, April 21, 2025
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Homeराज्यउत्तर प्रदेश"ये लगता है नदी किनारे फिर से रांझा छला गया...!"               

“ये लगता है नदी किनारे फिर से रांझा छला गया…!”               

बरेली में लेखिका संघ की सरस काव्य गोष्ठी

फ्रंट न्यूज नेटवर्क ब्यूरो, बरेली। साहित्यिक संस्था ‘लेखिका संघ’, बरेली के तत्वावधान में कवि राजेश गौड़ की अध्यक्षता तथा वरिष्ठ गीतकार कमल सक्सेना के मुख्य आतिथ्य में सरस काव्य गोष्ठी काव्य का आयोजन किया गया। गोष्ठी का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा माँ शारदे की प्रतिमा पर दीप प्रज्ज्वलन और पुष्पार्चन से हुआ।

संस्था की महासचिव डॉ. किरण कैंथवाल ने माँ वाणी की वंदना की। अध्यक्ष राजेश गौड़ के गीत-मैने कभी अपने आंसुओं का हिसाब नहीँ रखा, वर्षों पुराने मेरी डायरी के सभी पन्ने आज भी गीले हैँ-को काफी पसंद किया गया।
मुख्य अतिथि गीतकार कमल सक्सेना ने श्रंगार रस के मुक्तक और गीत से वाहवाही बटोरी-
ऐसी चपल दामिनी दमकी शीशे का घर टूट गया।                     कहते हैँ उसके हाथों में आकर साहिल छूट गया।                            ये लगता है नदी किनारे फिर से रांझा छला गया।                        कब तक वह परदेशी रहता आखिर इक दिन चला गया।

संस्था की संरक्षक चर्चित कहानीकार डॉ. निर्मला सिंह ने अपने इस गीत को सस्वर सुनाकर खूब वाहवाही बटोरी-

संयोग वियोग मिले हैँ कांटों में फूल खिले हैँ।           ‌‌‌‌‌‌‌‌‌                 यह अजब योग देखा है जो बिछड़े वही मिले हैँ।

संस्थाध्यक्ष दीप्ती पांडे ‘नूतन’ ने अपनी कविता कुछ ऐसे पढ़ी,,,
चलो आज झूठी मुस्कानों को छोड़ रोया जाये। क्यों न किसी अज़नबी के घाव को धोया जाये। अधिक पाने की चाह ने कर दिया सबको अकेला, क्यों न इस दर्दे ग़म को दूर किया जाये। जिसने सभी की वाह वाही लूटी।

उपाध्यक्ष अल्पना नारायण ने अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा कि,,किस पर भरोसा करे कौन कैसे सभी लोग दिखते मुखौटा लगाये। ने वातावरण को भावुक बना दिया।

महासचिव किरण कैंथवाल की रचना-सवालों के घेरों में तुझको रोज पाती हूँ। मची कैसी हलचल है तेरे औऱ मेंरे दिल में, यही सब सोचकर मैं तो ख़ुद ब ख़ुद डूब जाती हूँ। सभी को अच्छी लगी।

इन्द्रदेव त्रिवेदी के इस गीत पर भी खूब तालियां बजीं- अगर आप यूँ मुस्कराते रहेंगे। तो सच मानिये हम गाते रहेंगे। नहीँ जिन्दा रहना युगों से युगों तक, परों के घरौंदे बनाते रहेंगे।
मोना प्रधान की कविता- चंद सांसों का खेल है ये छोटी सी ज़िन्दगी, कौन बांध सका मुट्ठी में ये केवल बहता पानी-आध्यात्मिक चेतना का संचार कर गयी।
चित्रा जौहरी ने बहुत अच्छी आध्यात्मिक कविता पढ़कर वाहवाही लूटी।
सुशीला धष्माना की कविता-रोशनी यों चमकती रही रात भर।घोंसले को कहीं तो ठिकाना मिले, रोज चिड़िया भटकती रही रात भर,, भी बहुत सराही गयी।

मीरा मोहन की यह ग़ज़ल-मौत ने मुझसे कहा मैं तुझको लेने आ रही हूँ। ज़िन्दगी बोली डरो मत मैं अभी मुस्करा रही हूँ-भी सबके दिलों में उतर गयी।
शैलज़ा ने यह ग़ज़ल सुनाकर प्रशंसा अर्जित की-,ख़ो दिया मैने पाकर किसी को, आग लग जाये ऐसी ज़िन्दगी को।
उमा शर्मा ने हुंकार भरी,,,कौन कहता है नारी भारत में अबला है।
डॉ. विभोर, बीनू सिन्हा भी उपस्थित रहे। गोष्ठी की संयोजक मोना प्रधान ने सभी का आभार प्रकट किया।‌ इंद्रदेव त्रिवेदी ने सफल संचालन  किया।

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