एफएनएन ब्यूरो, बरेली। लेखिका संघ के तत्वावधान में हिंदी पखवारे के अंतर्गत शहर के एक होटल में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। गोष्ठी में कवि कमलकांत तिवारी और डॉ. निशा शर्मा को सम्मानित भी किया गया।
शुभारम्भ डॉ. निशा शर्मा की सरस माँ वाणी वंदना से हुआ।
अध्यक्षता कर रहे कवि-गीतकार कमल सक्सेना ने हिंदी को समर्पित गीत पढ़ा-
” मैं तो दरवेश कबीरा थी। मैं तुलसी सूर कबीरा थी।
मैने पग-पग पर गरल पिया आखिर मैं भी एक मीरा थी। “
कवि राजेश गौड़ ने कहा,,,
भूख अपने हिस्से का टुकड़ा उठा लेती है। “
मीना अग्रवाल ने कहा, ” ख़ुद तेरे दिल में मेरा दिल डाल दे,,,
संस्था की अध्यक्ष दीप्ति पांडे ने अपनी ग़ज़ल पेश की,,,
जिसे देखो हर इंसान परेशान सा है.
लगता है आने वाला कोई तूफान सा है।
संस्था की उपाध्यक्ष अल्पना नारायण ने अपनी ग़ज़ल इस तरह पढ़ी,,, मोहब्बत की शम्मा जलाने चला हूँ।
तुम को ही तुमसे चुराने चला हूँ।”
किरण प्रजापति दिलवारी ने अपनी कविता पढ़ी,, “मैं ना बोलूंगी तो मेरी लेखनी बोलेगी “
सुशीला धस्माना मुस्कान ने अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा कि “
” कूचे वीरान हो गये देखो।
लोग हैवान हो गये देखो। “
डॉ निशा शर्मा ने कहा, “चाँद-तारों का रौशन जहाँ चाहिए।
उस जगह पर मुझे बस तू चाहिए।
कमल कान्त तिवारी ने देश प्रेम की रचना पढ़ी, “मंदिर-मंदिर शंख बजे औऱ मस्जिद लगे अजान है।
यह मेरा हिन्दुतान है।
मोना प्रधान ने कहा,, भारत मां के मस्तक पर बिंदी है हिंदी की शान, “
संस्था की सचिव किरण कैंथवाल ने एक शेर कुछ इस तरह पढ़ा,,,
” तू जो रहता है मेंरे दिल के आशियाने में,
तो ये के लगता है जरा सी बात कर लूँ मैं।
कवि गोष्ठी में एसके कपूर, अविनाश अग्रवाल, सुरेंद्र बीनू सिन्हा, अल्पना नारायण, सीमा सक्सेना आदि कवियों ने अपनी रचनाएँ पढ़कर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। अंत में डॉ. निशा शर्मा और ओज कवि कमलकान्त तिवारी को साहित्य में उनके योगदान के लिये शॉल ओढ़ाकर व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
संस्था की संरक्षक श्रीमती निर्मला सिंह अस्वस्थता के कारण गोष्ठी में नहीँ आ सकीं। उनके संदेश को अध्यक्ष दीप्ति पांडे ने पढ़कर सुनाया।कवि गोष्ठी का सुंदर एवं सफल संचालन संस्था अध्यक्ष दीप्ति पांडे नूतन ने किया। अंत में उन्होंने सबका आभार भी प्रकट किया।