Monday, July 28, 2025
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ग्राउंड रिपोर्ट : धामी के लिए आसान न होगी खटीमा की डगर, ‘ अपने ‘ ही निभा सकते हैं विभीषण की भूमिका, जानें क्यों

एफएनएन, रुद्रपुर : मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए इस बार खटीमा विधानसभा की डगर आसान नहीं होगी। पिछले चुनाव में 27 सौ वोटों से जीत हासिल करने वाले धामी को इस बार उन्हीं के ‘ अपने ‘ मात देने की फिराक में लगे हैं। मुख्यमंत्री रहते भुवन चंद्र खंडूरी और हरीश रावत की हार इसका उदाहरण है। ऊधमसिंह नगर की खटीमा विधान सभा सीट पर जिले की ही नहीं, पूरे प्रदेश की निगाह होना लाज़मी है। वजह, इस सीट से प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी विधायक है और इस बार हैट्रिक लगाने जा रहे हैं। उनका सामना फिर पुराने प्रतिद्वंदी कांग्रेस के भुवन कापड़ी से होगा, लेकिन इस बार पुष्कर सिंह धामी की राह बहुत आसान नहीं है।

खटीमा विधान सभा सीट के यदि पिछले दो चुनावों के नतीजों पर गौर किया जाए तो वर्ष 2012 की तुलना में वर्ष 2017 में पुष्कर सिंह धामी की जीत का अंतर कम हुआ था। बता दें कि वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में पुष्कर सिंह धामी को 29539 मत हासिल हुए थे जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के भुवन कापड़ी को 26930 मत मिले। इस प्रकार धामी को 2709 मतों की बढ़त से जीत मिली थी। उस वक्त बसपा प्रत्याशी रमेश एस राणा को 13845 वोट मिले थे। यानि कुल पड़े मतों के 36 प्रतिशत वोट धामी और 33 प्रतिशत वोट कापड़ी को मिले। सिर्फ तीन प्रतिशत का अंतर रह गया।

इससे पहले वर्ष 2012 के चुनावी नतीजों पर नजर डाली जाए तो पुष्कर सिंह धामी को 20586 वोट मिले, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी देवेंद्र चंद को 15192 और बसपा प्रत्याशी डाक्टर जीसी पांडेय को 9426 वोट मिले। उस वक्त धामी 5394 वोटों से चुनाव जीते थे। उन्हें कुल पड़े वोटों के 29.91 प्रतिशत और कांग्रेस प्रत्याशी देवेंद्र को 22.09 प्रतिशत वोट मिले थे। यानि उस वक्त भाजपा की 7.82 प्रतिशत वोटों की बढ़त थी जो बाद में घट कर सिर्फ तीन फीसदी रह गई।

अब वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो मुख्यमंत्री बनने के बाद पुष्कर सिंह धामी से उनके क्षेत्र के लोगों को उम्मीदें बढ़ जाना स्वाभाविक है, लेकिन अल्प कार्यकाल के चलते लोगों की उम्मीदें पूरी कर पाना संभव नहीं था। एंटी इनकमबेंसी फेक्टर भी यहां होना स्वाभाविक है। दूसरे सीएम का पदभार मिलने के बाद वे अपने विधान सभा क्षेत्र में न के बराबर रह पाए। शायद यही वजह रही कि धामी को लेकर यह चर्चा रही कि वे अपना निर्वाचन क्षेत्र बदल सकते हैं। अब चुनाव में भी उन पर पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी होगी, लिहाजा वह पिछले दो चुनावों की तुलना में अपने विधान सभा क्षेत्र को पूरा वक्त नहीं दे पाएंगे। ऐसे में उनकी डगर और कठिन होने वाली है।

यहां यह बताना जरूरी है कि मुख्यमंत्री रहते भुवन चंद्र खंडूरी और हरीश रावत भी अपने क्षेत्र पर पूरा फोकस नहीं कर पाए और नतीजा उन्हें पराजय के रूप में स्वीकार करना पड़ा। मुख्यमंत्रियों के चुनाव हारने का इतिहास भी धामी की जीत के प्रति संशय पैदा करता है।

कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष भुवन कापड़ी का लगातार क्षेत्र में रह कर काम करना उनका प्लस प्वाइंट माना जा रहा है। यह भी संभावना है कि भाजपा में मुख्यमंत्री पद के कई वरिष्ठ दावेदार भी उनकी अंदरखाने धन बल से मदद कर सकते हैं, क्योंकि पार्टी में जूनियर कद के पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री की कमान मिलने को वे पचा नहीं पा रहे हैं। बहरहाल, खटीमा का चुनाव परिणाम तो वहां के जागरूक मतदाता ही तय करेंगे, लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की चुनावी डगर आसान नजर नहीं आती।

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