
एफएनएन, दिल्ली : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं झारखंड मुक्ति मोर्चो के अध्यक्ष शिबू सोरेन का सोमवार को यहां एक अस्पताल में निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे। सोरेन गत 19 जून से यहां सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती थे और उन्होंने आज सुबह यहीं अंतिम सांस ली। वह लम्बे समय से बीमार चल रहे थे। वह किडनी एवं हृदय संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए भर्ती हुए थे।
दिशोम गुरुजी के नाम से लोकप्रिय श्री सोरेन के निधन की खबर मिलते ही समूचे झारखंड में शोक की लहर दौड़ गयी। पिछले कई दिनों से राज्य में विभिन्न स्थानों और विशेष रुप से उनकी कर्मभूमि संताल परगना में लोग मंदिर , मस्जिद और गिरजाघरों में पूजा अनुष्ठान कर उनके शीघ्र स्वस्थ होने की दुआएं कर रहे थे। झारखंड मुक्ति मोर्चो के संस्थापक श्री सोेरेन पृथक राज्य के आंदोलन में लगातार संघर्षरत रहे और वर्ष 2000 में अलग झारखंड राज्य का गठन हुआ।
झारखंड में गरीबों के मसीहा कहे जाने वाले सोरेन का जन्म रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में 11 जनवरी 1944 को हुआ था। उनके पिता सोबरन सोरेन शिक्षक थे लेकिन किसानी का काम भी करते थे। उनकी किसी ने हत्या कर दी थी जिसके कारण श्री शिबू सोरेन को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी और वह कम उम्र से ही गरीबों पर अत्याचार , अन्याय , नशाबंदी तथा महाजनी प्रथा के खिलाफ संघर्ष की राह पर निकल पड़े। उन्हें मजदूरी तक करनी पड़ी। उन्होंने सदियों से शोषित , पीड़ित आदिवासी समाज को जागरुक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
दुमका से सांसद या विधायक चुने जाते रहे सोरेन
झामुमो के संस्थापक और मौजूदा राज्यसभा सदस्य सोरेन 1980 से 2019 तक दुमका से सांसद या विधायक चुने जाते रहे। वह दुमका लोकसभा क्षेत्र से आठ बार सांसद तथा जामतारा से एक विधायक चुने गए। वह दो बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे। श्री सोरेन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में तीन बार कोयला एवं खान मंत्री भी रहे। पहली बार उन्हें 22 मई 2004 में केंद्रीय कोयला मंत्री बनाया गया। लेकिन तीस साल पुराने जामताड़ा के एक मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी किये जाने की वजह 24 जुलाई 2004 को उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
हालांकि इस मामले में करीब एक महीने तक जेल में बंद रहने के बाद वे जमानत पर रिहा हुए। उसके बाद उन्हें फिर दूसरी बार 27 नवम्बर 2004 को पुनः कोयला एवं खान मंत्रालय की जिम्मेवारी दी गयी। लेकिन दो मार्च 2005 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। झारखंड विधानसभा चुनाव के बाद दो मार्च 2005 को वे पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। लेकिन विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण 12 मार्च 2005 को महज 10 दिन के भीतर ही उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना पड़ा।
तीसरी बार मनमोहन सरकार में कोयला मंत्री के रूप में शपथ
इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सरकार में पुन 29 जनवरी 2006 को सोरेन ने तीसरी बार कोयला मंत्री के रूप में शपथ ली। इस बार भी दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। इस बीच दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने उनके निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या के कथित आरोप से संबंधित एक मामले में उन्हें दोषी करार दे दिया। इस वजह से 29 नवंबर 2006 को उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन 2007 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस हत्याकांड मामले में उन्हें बरी कर दिया। इसके करीब एक साल के बाद निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा सरकार के गिर जाने की वजह से 28 अगस्त 2008 को शिबू सोरेन कांग्रेस, राजद व अन्य गैर भाजपा समर्थित विधायकों के समर्थन से दूसरी बार सांसद रहते राज्य के मुख्यमंत्री बने।
महज 114 दिन के भीतर ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा
छह महीने के भीतर विधानसभा का सदस्य बनने की अनिवार्यता के मद्देनजर तमाड़ विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में यूपीए ने उन्हें साझा उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा। लेकिन इस उपचुनाव में पराजित होने की वजह से महज 114 दिन के भीतर ही 18 जनवरी 2009 को उन्हें मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसी साल 2009 में सम्पन्न झारखंड विधानसभा के चुनाव में राज्य में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिल पाया इस वजह से दुमका से सांसद रहते हुए वह भाजपा के समर्थन से 30 दिसम्बर 2009 में तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री चुने गये।
सम्पूर्ण जीवन बेहद उतार चढ़ाव भरा
लेकिन इस बार भी विवादों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार द्वारा लोकसभा में पेश एक प्रस्ताव का उनकी पार्टी ने समर्थन कर दिया। इस कारण भाजपा ने राज्य में उनसे समर्थन वापस ले लिया और इस वजह से उनकी सरकार गिर गयी। महज 153 दिन के भीतर 31 मई 2010 को तीसरी बार उन्हें मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे देना पड़ा। इस तरह उनका सम्पूर्ण जीवन बेहद उतार चढ़ाव भारा रहा। फिर भी वह कभी विचलित नहीं हुए। पिछले एक दशक से दिशोम गुरू शिबू सोरेन बीमार रहने के बावजूद पार्टी संगठन और कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाते रहे।