एफएनएन, देहरादून : उत्तराखंड में पिछले दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का मत प्रतिशत तेजी से गिरा है। हालांकि फिर भी यह 31 प्रतिशत से अधिक रहा है। मत प्राप्ति की दौड़ में लगातार पिछड़ने के बाद भी जनाधार बढ़ाने के लिए कांग्रेस के प्रदेश से लेकर केंद्रीय नेतृत्व के स्तर पर न सतर्कता दिखाई पड़ रही और न ही इच्छाशक्ति।
पहले प्रत्याशियों के चयन और अब चुनाव प्रचार पर असमंजस और आंतरिक गुटबाजी की छाया साफ दिखाई दे रही है।
नामांकन वापसी के बाद प्रदेश की पांचों लोकसभा सीट पर चुनावी रण उफान ले रहा है, लेकिन पार्टी क्षत्रप एकजुटता प्रदर्शित नहीं कर पा रहे हैं। हाईकमान भी अब तक उत्तराखंड के लिए चुनाव अभियान और समन्वय समेत कई महत्वपूर्ण समितियों का गठन नहीं कर सका है। स्टार प्रचारकों की स्थिति भी साफ नहीं है। प्रचार युद्ध प्रत्याशियों के भरोसे सिमटा हुआ है। ऐसे में जनाधार के मोर्चे पर यह चुनाव पार्टी के लिए अग्नि परीक्षा साबित हो सकता है।
क्या कांग्रेस छू पाएंगी 2009 का आंकड़ा?
पृथक उत्तराखंड बनने के बाद यह लोकसभा का पांचवां चुनाव है, जिसमें कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला है। पिछले दो लोकसभा चुनाव में मत प्रतिशत पर नजर डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि मतदाताओं में पार्टी का ग्राफ तेजी से गिर रहा है।
यह हाल उस पार्टी का है, जिसने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी पांच सीट पर जीत का परचम लहराया था। तब पार्टी को 43.13 प्रतिशत मत मिले थे, जो अब तक का सर्वाधिक है। पार्टी इस आंकड़े को दोबारा न तो छू पाई और न ही इसके समीप ही पहुंच सकी।
2014 और 2019 में घटा वोट शेयर
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 34.40 प्रतिशत मत मिले थे। उसके बाद मुश्किलें बढ़ती गई। 2019 में मत प्रतिशत गिरकर 31.73 प्रतिशत हो गया। इसे रोकने और जीत दर्ज करने की चुनौती और बढ़ चुकी है। इससे निपटने की रणनीति धरातल पर आकार लेती दिखाई नहीं दी है। निर्णय लेने में विलंब और ऊहापोह से उबरने के प्रयास भी मूर्त रूप नहीं ले पाए हैं।
प्रभारी सैलजा अब तक नहीं आईं
चुनाव की घोषणा के बाद से अबतक कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी कुमारी सैलजा ने उत्तराखंड का रुख नहीं किया है। क्षत्रपों के बीच खींचतान रोकने और उन्हें मनाकर मजबूत प्रत्याशी तय करने की पहली मोर्चाबंदी पर असमंजस हावी रहने का ही परिणाम रहा कि कद्दावर नेताओं ने प्रत्याशी बनने से ही कन्नी काट ली है। उन्हें मनाने और डैमेज कंट्रोल के प्रयास भी नहीं हुए।
महत्वपूर्ण समितियों की नहीं हुई घोषणा
पहले चरण के मतदान में कम दिन बचे हैं। फिर भी बड़े नेता बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। उन्हें एकजुट कर प्रचार में सहयोग लेने को लेकर अबतक अनिश्चितता है। चुनाव अभियान समिति, चुनाव प्रचार समिति, चुनाव समन्वय समिति जैसी महत्वपूर्ण समितियों की घोषणा के लिए पार्टी हाईकमान पर टकटकी लगी हुई है।
इस मामले में भाजपा बढ़त ले चुकी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के चुनाव कार्यक्रम तय हो चुके हैं। कांग्रेस ने स्टार प्रचारकों की सूची तक घोषित नहीं की। राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा, राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समेत पार्टी के बड़े केंद्रीय नेताओं के कार्यक्रम तय होने की प्रतीक्षा की जा रही है।
लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मिले मत
वर्ष |
कांग्रेस (प्रतिशत में) |
2004 | 38.31 |
2009 | 43.13 |
2014 | 34.40 |
2019 | 31.73 |