एफएनएन, रुद्रपुर : उत्तराखंड की सियासत एक बार फिर हिचकोले ले सकती है। मुख्यमंत्री की कुर्सी डगमगा सकती है और तीरथ सिंह रावत अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं। वजह, नियमों का फेर कहेंगे, जिसमें तीरथ सिंह रावत उलझ गए हैं। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुच्छेद 151ए ने उनकी राह में कांटे पैदा कर दिए हैं। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सियासत में यह उलटफेर बड़ी खलबली पैदा कर सकता है। आपको बता दें कि तीरथ सिंह रावत ने 10 मार्च 2021 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इस लिहाज से 9 सितंबर 2021 तक उनका उत्तराखंड विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी है। उत्तराखंड में अभी दो विधानसभा सीट रिक्त हैं। पहली, गंगोत्री जो अप्रैल में गोपाल सिंह रावत के निधन के चलते खाली हुई और दूसरी हल्द्वानी, जो इसी जून माह में नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश के निधन से रिक्त हुई है। इन दोनों ही सीटों पर उपचुनाव नहीं कराया जा सकता। वजह, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 151ए है। इसके मुताबिक ‘ निर्वाचन आयोग संसद के दोनों सदनों और राज्यों के विधायी सदनों में खाली सीटों को रिक्ति होने की तिथि से 6 माह के भीतर उपचुनावों के द्वारा भरने के लिए अधिकृत है, बशर्तें रिक्ति से जुड़े किसी सदस्य का शेष कार्यकाल एक वर्ष अथवा उससे अधिक हो ‘ अब चुनाव में ही छह माह शेष बचे हैं ऐसे में उपचुनाव का तो सवाल ही नहीं उठता। 9 अक्टूबर 2018 को चुनाव आयोग इस पस्थिति भी स्पष्ट कर चुका है। बगैर विधानसभा सदस्य बने तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री रह नहीं सकते तो संवैधानिक नियम के मुताबिक उनको इस्तीफा देना होगा !
… तो सांसद बने रहेंगे रावत
2019 के लोकसभा चुनाव में पौढ़ी गढ़वाल लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहुँचे तीरथ सिंह रावत ने अभी तक सांसद पद से इस्तीफा नहीं दिया है। ऐसे में अगर वो उत्तराखंड में 6 माह के अंदर विधानसभा सदस्य नहीं बन पाते है तो सीएम पद से हटने के बाद वह सांसद बने रहेंगे।
…तो किसी मंत्री या विधायक पर दांव खेल सकती है भाजपा
9 सितंबर के बाद भाजपा खाली हुई मुख्यमंत्री की कुर्सी पर प्रदेश के किसी मंत्री या विधायक पर दांव खेल सकती है। वजह, उसके लिए चुनाव लड़ने की बाध्यता नहीं होगी। ऐसे में किसी का भी भाग्य चमक सकता है। अब वह चेहरा कौन होगा यह तो वक्त ही बताएगा।