मणिनाथ हिंदी भवन में जुटे कवि, काव्य गोष्ठी में कवियों ने भरे इंद्रधनुषी रंग
बरेली में ‘साहित्य सुरभि’ की 365वीं मासिक काव्य गोष्ठी
एफएनएन ब्यूरो, बरेली। शहर की प्राचीन-शीर्ष साहित्यिक संस्थाओं में से एक ‘साहित्य सुरभि’ की 365वीं नियमित मासिक गोष्ठी रविवार सायं प्रह्लाद नगर मणि नाथ स्थित हिंदी भवन में संस्थापक अध्यक्ष राममूर्ति गौतम ‘गगन’ के संयोजकत्व में आयोजित की गई।
अध्यक्षता वरिष्ठ कवि डॉ. राम शंकर शर्मा ‘प्रेमी’ ने की और मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि के रूप में क्रमश: वरिष्ठ कवि-पत्रकार गणेश ‘पथिक’ एवं डीपी शर्मा ‘निराला’ मंचासीन रहे। मां सरस्वती के चित्र पर दीप प्रज्ज्वलन- माल्यार्पण के उपरांत वरिष्ठ कवयित्री डॉ. (श्रीमती) शिवरक्षा पांडेय ने इन शब्दों में सस्वर-सरस वाणी वन्दना प्रस्तुत कर काव्य गोष्ठी का शुभारम्भ किया-
वीणापाणि शारदे वर दे
अपना अनुपम प्यार अमर दे।
संस्थाध्यक्ष वरिष्ठ कवि-साहित्यकार राममूर्ति गौतम ‘गगन’ ने इस सावन गीत से गोष्ठी में रस और भाव का संचार किया और खूब तालियां, वाहवाही बटोरी-
निश्छल-निर्मल मीत उमंगों का सावन
मलिन हृदय में भी भर दे अमृत मनभावन।
इंद्र धनुष के रंग फागुनी गीतों में
फाग मल्हारें गूजें मानवता के आंगन में।
‘गगन’ जी ने अपने इस गीत पर भी खूब प्रशंसा बटोरी-
विजय पाने का साहस ही लक्ष्य की ओर बढ़ता है,
एक बलिदान रच देता अमर इतिहास के पन्ने,
पारकर सारी बाधाएं शिखर श्रंगों पर चढ़ता है।
अर्थ गंभीरता का एक नव सोपान चढ़ता है।
तिरंगा गीत पर भी उन्होंने खूब तालियां बजवाईं-
उच्च शिखर लहराए तिरंगा, यह भारत की शान है
आंच न आने पाए इसको यही हमारी आन है
वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्।।
मुख्य अतिथि गणेश ‘पथिक’ ने अपने इस चर्चित गीत और एक ग़ज़ल से गोष्ठी में ओज और वीर रस का संचार किया-
आज विदेशी षड्यंत्रों के हाथ खिलौना बन बैठे,
अरे पुन: आम्भीक सिकन्दर के चरणों में जा बैठे।
आज द्रौपदी के केशों को खींच रहा फिर दु:शासन,
कौरव सभा मौन, जंघाएं पीट रहा पापी दुर्योधन।
गहन कुंड में जा छुप बैठा द्रुपदसुता का अपराधी,
“पथिक” भीम आओ, विषधर कुंडों में आग लगाते हैं।
पथिक’ जी की यह ग़ज़ल भी खूब प्रशंसित हुई-
किस तरह शिकारी के जाल से बचें पंछी,
पाल रखे हैं षड्यंत्र आजकल बसेरों ने।
ऐ ‘पथिक’ अंधेरों की सल्तनत मिटा देंगे,
दिल में अपने ठानी है सुरमई सवेरों ने।
अध्यक्षीय आसन से वरिष्ठ कवि डॉ. राम शंकर शर्मा ‘प्रेमी’ ने तन्मय होकर सुरीले सुरों में सावन का यह छंद सुनाया तो सब झूम उठे-
सावन माह औ मेघ गगन, नभ में गरजे, जग में बरसे।
छायी धरा पे सुहानी छटा है मनवा किसानन के अति हर से।
प्रिया के दृगन बरसात हुई कि गए हैं पिया जब से घर से।
आग लगी उर बरसें नयन, तिय को अन्तस पिय को तर से।
रक्षाबन्धन का महत्व समझाता उनका यह गीत भी खूब सराहा गया-
नहीं मांगती धन और दौलत, न कपड़ा न गहना
सदा ही सच्चा प्यार तुम्हारा, मांग रही है बना।
दौड़े आना मेरे भइया, सुनकर मेरी पुकार।
वरिष्ठ कवयित्री डाॆ. शिवरक्षा पांडेय ने भी राखी के त्यौहार की महत्ता बताते अपने इस मधुर-कर्णप्रिय गीत से गोष्ठी को भाव और रसधार से भर दिया और खूब वाहवाही, तालियां बटोरीं-
बहना बोले राखी के रेशम तार में,
भइया डोले रे बहना के इंतज़ार में।
मेरे वीरन भइया तुमको बुरी नज़र न लागे
हर संकट से तुम्हें उबारें राखी के ये धागे।
चंदा जैसा सूरज जैसा भाग तुम्हारा जागे,
लिए खड़ी है बहना प्यारी, बढ़ा कलाई आगे।
प्रिय पावन प्यार भरा यह बंधन है संसार में।
चर्चित युवा कवि प्रताप मौर्य ‘मृदुल’ ने इस कविता पर खूब प्रशंसा और वाहवाही लूटी-
वैसे तो तुम उत्तम कवि हो, जो मन में है सब कह डालो।
लेकिन कुछ कहने से पहले धर्म ध्वजा फिर सखे उठा लो।
कवि एके सिंह ‘तन्हा’ ने मुक्तकों और इस गीत से गोष्ठी में नई जान फूंकी-
गीत को दिनमान किया जाए,
मौन को स्वरमान किया जाए,
बहुत हो चुका झूठ का अभिनन्दन,
अब तो सत्य का सम्मान किया जाए।
कृष्ण अवतार गौतम ने भ्रष्टाचार और बेईमानी के खिलाफ इस अंदाज में आवाज़ बुलंद की-
देश जाय भाड़ में नेता हैं झूठे वोट के,
भ्रष्टाचारी हर जगह भूखे पड़े हैं नोट के।
वरिष्ठ कवि-गीतकार रामकुमार कोली ने गोष्ठी के काव्यमय संचालन का दायित्व सफलतापूर्वक निभाने के साथ ही अपने इस गीत से देशभक्ति के रंग भरे-
जश्ने आजादी का गौरव गान सुनाते हैं-
कैसे बची रहे आजादी ये समझाते हैं।
सावन पर शिव भक्ति का उनका यह छंद भी खूब सराहा गया-
आ़यो है सावन जो मनभावन पाप नसावन पावन है।
विशिष्ट अतिथि डीपी शर्मा निराला ने आध्यात्मिक रचना सुनाकर सबको प्रभावित किया। अंत में संयोजक श्री गगन ने आयोजन को सफल बनाने के लिए सबका आभार जताते हुए गोष्ठी के समापन की घोषणा की।