एफएनएन देहरादून :बागेश्वर उपचुनाव में सहानुभूति की लहर पर सवार भाजपा आखिरकार कड़ी मशक्कत को विवश हो गई। कांग्रेस की रणनीति सत्तारूढ़ दल को उलझाए रखने पर रही। दोनों दलों के बीच जोर-आजमाइश का अंदाजा इससे लग सकता है कि मतदान की तारीख समीप आते-आते विपक्ष की शिकायतों पर पलटवार करते हुए भाजपा ने भी निर्वाचन आयोग के केंद्रीय पर्यवेक्षक की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए। इस चुनावी जंग को लेकर उत्साहित कांग्रेस की नजरें आज हो रहे मतदान पर टिकी हैं।
उपचुनाव को सधी रणनीति के तहत लड़ रही कांग्रेस
कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास के निधन से रिक्त हुई बागेश्वर आरक्षित सीट (अनुसूचित जाति) पर उपचुनाव को कांग्रेस सधी रणनीति के तहत लड़ रही है। प्रमुख विपक्षी दल ने इस उपचुनाव को लोकसभा चुनाव से पूर्व तैयारी के रूप में लिया है। यही कारण है कि भाजपा के हर दांव की काट के लिए कांग्रेस ने अपनी ओर से कसर नहीं छोड़ी।
भाजपा ने अपनाया सहानुभूति का पैंतरा
लगातार चार बार इस सीट से विधायक रहे कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास के निधन से उपजी सहानुभूति लहर को ध्यान में रखकर भाजपा ने उनकी पत्नी पार्वती देवी को चुनाव मैदान में उतारा। जवाब में कांग्रेस ने उपचुनाव को एकतरफा नहीं होने देने पर जोर लगाया। माहरा और आर्य ने डाला डेरा मजबूत प्रत्याशी पर दांव खेलने के लिए पार्टी ने बाहर से अपेक्षाकृत अधिक दमदार समझे जा रहे बंसत कुमार को अपने पाले में खींचा और फिर प्रत्याशी बनाने में देर नहीं लगाई।
लोकसभा से पहले तैयारी
सरकार और सत्तारूढ़ दल से मिल रही चुनौती को भांपकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा और नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य पूरे उपचुनाव के दौरान क्षेत्र में ही डटे रहे। अल्मोड़ा संसदीय सीट पर नजर कांग्रेस इस उपचुनाव को अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव से पूर्व तैयारी के रूप में ले रही है।
अल्मोड़ा संसदीय सीट भी है आरक्षित
बागेश्वर विधानसभा क्षेत्र अल्मोड़ा संसदीय सीट के अंतर्गत है। अल्मोड़ा संसदीय सीट भी आरक्षित है। बागेश्वर उपचुनाव के परिणाम अगर कांग्रेस के पक्ष में रहते हैं तो पार्टी को नई ऊर्जा मिलना तय है। इसे ध्यान में रखकर ही पार्टी ने अधिक संख्या में मतदाताओं में पैठ बनाने पर ध्यान केंद्रित किया और पांच-पांच बूथों पर बड़े नेताओं की चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी दी।