एफएनएन, उत्तराखंड : उत्तराखंड में हाथी गलियारों से गुजरने वाले रेलवे ट्रैक वन्यजीवों के लिए ‘मौत का कॉरिडोर’ बनते जा रहे हैं। शुक्रवार शाम गूलरभोज से लालकुआं जा रही OMC स्पेशल ट्रेन की टक्कर से एक नर हाथी बुरी तरह घायल हो गया और 15 घंटे से अधिक समय तक इलाज के इंतजार में तड़पता रहा। यह हादसा कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि यह उसी संवेदनशील क्षेत्र में बार-बार होने वाली दुर्घटनाओं की एक श्रृंखला है, जो रेलवे द्वारा गति सीमा के उल्लंघन और प्रशासनिक लापरवाही की ओर इशारा करती है।
गति सीमा का निरंतर उल्लंघन हाथी कॉरिडोर क्षेत्र में तेज रफ्तार ट्रेनों की समस्या कोई नई नहीं है, बल्कि यह इस क्षेत्र में हाथियों की मौत का सबसे बड़ा कारण रही है। टांडा रेंज के रेंजर रूपनारायण गौतम ने स्पष्ट किया कि हादसे वाली जगह से सिर्फ 50 मीटर की दूरी पर 30 किमी/घंटा की गति सीमा का साइन बोर्ड लगा है। यह बोर्ड साढ़े तीन साल पहले एक हथिनी और उसके बच्चे की मौत के बाद लगाया गया था, फिर भी OMC स्पेशल ट्रेन की गति बहुत ज्यादा थी। उत्तराखंड में पिछले 21 वर्षों में ट्रेन की चपेट में आकर 21 से अधिक हाथी अपनी जान गँवा चुके हैं, जिसमें लालकुआं-गूलरभोज ट्रैक प्रमुख है।
अपर्याप्त सुरक्षा और रेस्क्यू में देरी वन क्षेत्राधिकारी पीसी जोशी (पीपलपड़ाव) के अनुसार घायल हाथी की पिछली दोनों टांगें बुरी तरह क्षतिग्रस्त होने के कारण वह उठने में असमर्थ है और इलाज के लिए आगरा रेस्क्यू सेंटर से विशेषज्ञों का इंतजार हो रहा है। यह स्थिति रेलवे और वन विभाग के बीच समन्वय की कमी को दर्शाती है। पूर्व की दुर्घटनाओं के बाद रेल और वन विभाग के बीच रात्रि में ट्रेनों की गति धीमी रखने का समझौता हुआ था, बावजूद इसके दुर्घटनाएं जारी हैं। वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि वन विभाग ने हाथी गलियारों में अंडर पास या ओवर ब्रिज बनाने के प्रस्ताव भेजे थे, जिनपर आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है।
उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश हाथी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय ने भी समय-समय पर रेलवे को वन क्षेत्रों से गुजरते समय ट्रेनों की गति कम करने के निर्देश दिए हैं। हालांकि, रेलवे प्रशासन अक्सर यह कहकर इन निर्देशों का पालन नहीं करता कि एक्सप्रेस ट्रेनों की रफ्तार कम करना संभव नहीं है। इस अमानवीय लापरवाही का खामियाजा निर्दोष हाथियों को अपनी जान गँवाकर चुकाना पड़ रहा है। जब तक रेलवे और वन विभाग समन्वित रूप से हाथी गलियारों में ठोस सुरक्षा उपाय नहीं करते, तब तक यह दर्दनाक सिलसिला जारी रहने की आशंका है।





