
लखीमपुर खीरी में सरस्वती पूजन पखवाड़े के अंतर्गत शैक्षिक संस्थानों में इतिहास संकलन समिति के विभाग प्रचारक और प्रखर राष्ट्रवादी विचारक राजेश दीक्षित का प्रेरणादायी और उपयोगी उद्बोधन
एफएनएन ब्यूरो, लखीमपुर खीरी। इतिहास संकलन समिति के विभाग संयोजक और प्रखर राष्ट्रवादी विचारक राजेश दीक्षित ने जीवन में यश-वैभव, सद्संस्कार प्राप्ति के लिए विद्या-ज्ञान-विवेक की देवी मां सरस्वती और राष्ट्रदेव का सच्चा साधक-आराधक बनने का प्रत्येक विद्यार्थी से आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि संस्कारों से युक्त शिक्षा, संस्कृति और राष्ट्रभक्ति हर विद्यार्थी के जीवन का मुख्य और मूल आधार है।

श्री दीक्षित बसंत पंचमी से प्रारंभ हुए सरस्वती पूजन पखवाड़े के अंतर्गत सनातन धर्म सरस्वती बालिका विद्या मंदिर इंटर कॉलेज, गुरुनानक विद्यक सभा इंटर कॉलेज और कुछ अन्य शिक्षण संस्थानों में मुख्य वक्ता के रूप में छात्र-छात्राओं, शिक्षक वर्ग और अभिभावकों का प्रेरणादायी उद्बोधन कर रहे थे। श्री दीक्षित ने समझाया कि मां सरस्वती के साधक स्वभाव से ही अपने राष्ट्र, धर्म और संस्कृति के सच्चे आराधक होते हैं।

वेद-पुराण, इतिहास से उदाहरण देते हुए श्री दीक्षित ने समझाया कि देवगुरु बृहस्पति के पुत्र कच, आचार्य चाणक्य, आचार्य रामानुज, आदि शंकराचार्य और स्वामी विवेकानंद मां सरस्वती के कुछ ऐसे प्रमुख अनन्य साधक हुए हैं जिन्होंने ज्ञानप्राप्ति की उत्कट जिज्ञासा-आकांक्षा, एकाग्रता, तल्लीनता और दृढ़ निश्चय, अटूट लगन और निरंतर अथक कठोर परिश्रम जैसे गुणों के बल पर बहुत बड़े और असंभव से लक्ष्यों को भी प्राप्त करके दिखाया। बताया-देवगुरु पुत्र कच की गुरुभक्ति ऐसी थी कि उसने गुरुपुत्री से विवाह करने की अपेक्षा मृत्यु के वरण को श्रेयस्कर समझा। सर्वसमाज के अखंड कल्याण के उद्देश्य से चार वर्ष की बाल्यावस्था में ही संन्यास लेकर देश भर की परिब्रज्या पर निकले आद्य शंकराचार्य ने माता की वचन का सम्मान रखने के लिए यात्रा बीच में ही छोड़कर मृत्यु शय्या पर पड़ी माता की सेवा और देहावसान के बाद उनका अंतिम संस्कार अपने ही हाथों से किया था। आचार्य रामानुज ने गणित की प्रमेय सिद्ध करते हुए तल्लीनता में डूबकर अपनी पीठ के नासूर जैसे फोड़े का अतिकष्टदायक आपरेशन भी आसानी से करवा लिया था।

श्री दीक्षित ने कहा-“आज के छात्र-छात्राएं भी निरंतर कठोर अभ्यास, अध्ययन-मनन, अनुशीलन को अपने स्वभाव में ढाल लें तो विद्यार्थी और मानव जीवन की कठिन से कठिन चुनौतियों पर भी आसानी से विजय प्राप्त कर सकते हैं।

प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक राजेश दीक्षित ने चेताया कि लॉर्ड मैकाले द्वारा पुष्पित-पल्लवित आज की अंग्रेजी गुलाम मानसिकता पर केंद्रित हमारी दूषित शिक्षा पद्धति भारत की आजादी के 78 वर्ष बाद भी अपने धर्म-संस्कृति, भाषा और सद्संस्कारों की मूल जड़ों से लगभग कट चुके बेजान ब्यूरोक्रेटेस की अंधी फौज ही तैयार कर रही है। अगर हमें नई पीढ़ी को अपने राष्ट्र-समाज, भाषा और संस्कृति का सच्चा संरक्षक बनाना है तो अपनी शिक्षा प्रणाली को कौशल-रोजगारपरक और प्रासंगिक बनाने के साथ ही उसे धर्म, संस्कृति, राष्ट्र प्रेम, परोपकार, सेवाभाव, सर्वकल्याण और सद्संस्कारों जैसे सद्गुणों के अमृत जल से पोषित-पल्लवित करना ही पड़ेगा।”

सरस्वती पूजन पखवाड़े के इन कार्यक्रमों में संबंधित कॉलेजों के प्रबंधकों, प्रबंधन समिति, प्रधानाचार्यों और शिक्षक समुदाय का भी सहयोग प्राप्त हुआ।