- – सोशल मीडिया पर घूम रहे बिल में जीएसटी नंबर और मुहर भी अंकित नहीं
- – लोगों ने कहा – भ्रष्टाचार का एक नमूना है यह, 3 साल के मेंटेनेंस और बिजली बिलों का मांगा हिसाब
एफएनएन, रुद्रपुर : चर्चा में रहने वाली मेट्रोपोलिस रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (MRWA) अब संस्था के रिनुअल के लिए चंद डॉक्यूमेंट अपलोड करने के मामले में सुर्खियों में आ गई है। सोसायटी की ओर से शहर के एक डॉक्यूमेंट सेंटर को 60 हजार रुपये का भुगतान किया गया है। इस बिल पर न तो कोई जीएसटी नंबर की अंकित है और न ही कोई मुहर। सोशल मीडिया पर यह बिल तमाम सवाल खड़े कर रहा है। सोसाइटी के ही लोग इसे भ्रष्टाचार का एक नमूना बता रहे हैं। अधिकारियों को भी इस मामले में अवगत कराया गया है, इसके साथ ही पिछले 3 साल में वसूले गए मेंटेनेंस और बिजली बिल का भी हिसाब भी मांगा गया है।
आपको बता दें कि मेट्रोपोलिस रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन सुर्खियों में बनी रहती है। इस सोसाइटी के विवाद आए दिन अफसरों की चौखट पर दस्तक देते रहते हैं। सोसायटी के लोगों का ही सीधा आरोप है कि बड़ा भ्रष्टाचार किया जा रहा है। सोसाइटी में 1700 फ्लैट और विला हैं जिनसे 30 लाख से ज्यादा मेंटेनेंस शुल्क वसूला जाता है। बावजूद मेंटेनेंस का हाल सोसाइटी में आकर खुद देखा जा सकता है। बिल्डिंग का प्लास्टर गिर रहा है, जाले लगे हैं, सड़कों पर जलभराव हो रहा है, पार्को में गंदगी पड़ी है, नालियां कूड़े से पटी हुई है, लेकिन सोसाइटी को मतलब है तो सिर्फ मेंटेनेंस वसूलने से।
पिछले दिनों भ्रष्टाचार को लेकर ही मामला अधिकारियों की चौखट पर पहुंचा था, तब शिकायतों का निस्तारण न होने तक सोसायटी के रिनुअल को भी रोकने को कहा गया था। आरोप है कि अनाप-शनाप पर फर्जी कागज लगाकर सोसाइटी ने अपना रिनुअल करा लिया। रिन्यूअल कराने में कार्यालय के एक क्लर्क की अहम भूमिका रही।
इस सबके बीच रिनुअल के कागज अपलोड करने के नाम पर सोसाइटी की ओर से किया गया 60,000 का भुगतान चर्चा का विषय बना है। इस भुगतान की एक रसीद भी सोशल मीडिया पर तैर रही है। इस रसीद पर डॉक्यूमेंट अपलोड करने वाली शॉप का gst नंबर भी अंकित नहीं है, इसके साथ ही मुहर भी नहीं लगी है। सोसाइटी के लोग इसे भ्रष्टाचार का नमूना बता रहे हैं। उनका कहना है कि इसी तरह सोसायटी की ओर से गोलमाल किए जाते हैं और यहां रहने वाले लोगों की ओर से दिया जाने वाला मेंटेनेंस सोसाइटी पदाधिकारियों की जेब मे जाता है।
Front news network ने इस संबंध में जब सोसायटी के सचिव सुनील शुक्ला से बात की तो उनका कहना था कि सोशल मीडिया पर घूम रहा बिल पूरे साल का है। हालांकि बिल पर ऐसा कुछ अंकित नहीं है। बिल में साफ-साफ लिखा है कि ₹60000 सोसाइटी ऑनलाइन अप्रूवल और रिनुअल के दिए गए हैं। इतनी बड़ी रकम रिनुअल के नाम पर दिया जाना खुद ही सवाल खड़े करता है, हालांकि सुनील शुक्ला की इस बात को सही मान भी लिया जाए तो फिर बिल पर अंकित तिथि में पूरे एक साल का जिक्र क्यों नहीं किया गया। 20 मई 2023 के इस बिल पर न तो जीएसटी नंबर ही अंकित है और न ही मुहर। बिल नंबर भी फर्जी ही प्रतीत होता है। खैर जो भी हो पर लोगों से वसूले जाने वाले मेंटेनेंस की इस तरह गड़बड़ी बड़े सवाल खड़े करती है। आगे पढ़िए, ईएसआई और न पीएफ, जीएसटी के नाम पर ही बड़ा चूना
क्रमशः