Saturday, September 6, 2025
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अनिल अंबानी की बढ़ी मुश्किले , अब बैंक ऑफ बड़ौदा ने लगा दिया फ्रॉड का ठप्पा

एफएनएन, नई दिल्ली: कभी भारत के सबसे अमीर कारोबारियों की सूची में शामिल रहे अनिल अंबानी की मुश्किलें थमने का नाम नहीं ले रही हैं. कर्ज में डूबे अंबानी की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस और उनके लोन अकाउंट को अब बैंक ऑफ बड़ौदा ने फ्रॉड घोषित कर दिया है. कंपनी ने एक्सचेंज फाइलिंग के जरिए यह जानकारी दी.

इससे पहले जून में देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने आरकॉम के लोन अकाउंट को फ्रॉड करार दिया था. इसके बाद 24 अगस्त को बैंक ऑफ इंडिया ने भी यही कदम उठाया था. लगातार तीसरे बड़े बैंक की कार्रवाई ने अनिल अंबानी की चिंताओं को और बढ़ा दिया है.

शेयरों में भारी गिरावट
खबर के असर से रिलायंस कम्युनिकेशंस के शेयरों में आज तेज गिरावट देखने को मिली. बीएसई पर शुरुआती कारोबार में यह 2.8% गिरकर 1.39 रुपये पर आ गया. यह स्तर कंपनी के 52 हफ्ते के न्यूनतम 1.33 रुपये के करीब है. कंपनी ने बताया कि उसे 2 सितंबर को बैंक ऑफ बड़ौदा का पत्र मिला, जिसमें लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करने की बात कही गई है.

कंपनी का बचाव
आरकॉम ने अपने बचाव में कहा कि वह पहले से ही कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) से गुजर रही है. समाधान योजना को क्रेडिटर्स की समिति ने मंजूरी दे दी है, लेकिन अब भी इसे NCLT की स्वीकृति का इंतजार है. कंपनी ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन लोन और क्रेडिट सुविधाओं का जिक्र बैंक ऑफ बड़ौदा ने किया है, वे दिवाला प्रक्रिया शुरू होने से पहले की हैं.

कंपनी का दावा है कि अनिल अंबानी का कंपनी के संचालन में कोई सीधा हस्तक्षेप नहीं था. वे 2006 से 2019 तक केवल नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर के तौर पर जुड़े रहे. उनके पास न तो कार्यकारी अधिकार थे और न ही वे रोजमर्रा के फैसलों में शामिल होते थे.

बढ़ती कानूनी मुश्किलें
अनिल अंबानी पहले ही कई कानूनी और वित्तीय संकटों से जूझ रहे हैं. उनकी कई कंपनियां बिक चुकी हैं या दिवालिया प्रक्रिया में हैं. हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने रिलायंस ग्रुप से जुड़े कई लोगों और कंपनियों पर मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के तहत छापेमारी की थी. मुंबई में 35 से ज्यादा ठिकानों पर की गई इस कार्रवाई में करीब 50 कंपनियां और 25 लोग शामिल थे.

कभी उद्योग जगत के दिग्गज माने जाने वाले अनिल अंबानी के लिए यह स्थिति बेहद कठिन है. लगातार बैंकों की सख्ती और जांच एजेंसियों की कार्रवाई ने उनके कारोबारी साम्राज्य को लगभग खत्म कर दिया है.

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