
एफएनएन, हल्द्वानी : हल्द्वानी में नागर और कत्यूर शैली के शिव मंदिरों की संख्या पूरे कुमाऊं में अच्छी खासी है। अधिकांश मंदिर नवीं से 16वीं शताब्दी के बताए जाते हैं। पिरामिड के रूप में बने इन मंदिरों की देखरेख आज भी पुरातत्व विभाग कर रहा है। इनमें प्रमुख ज्योर्तिलिंग के रूप में जागेश्वर धाम विशेष महत्व रखता है। यहां जागनाथ, मुत्युंजय, केदारनाथ समेत 125 छोटे बड़े शिव मंदिर समूह में हैं। जागनाथ मंदिर में केदारनाथ की तरह ही प्राकृतिक शिवलिंग मौजूद है। वहीं महामृत्युंजय मंदिर की अलग मान्यता है। संतान प्राप्ति के लिए यहां महिलाएं रातभर दिया लेकर खड़ी रहती हैं।
प्रमुख ज्योर्तिलिंग जागेश्वर धाम समेत कुमाऊं मंडल में शिव मंदिरों की संख्या लगभग पांच सौ से अधिक है। इनमें नवीं से 16वीं शताब्दी के प्रमुख देवालयों में पिथौरागढ़ में पाताल भुवनेश्वर, अल्मियां में एक हथिया देवाल, थल में प्राचीन शिव मंदिर शामिल है। चंपावत में नादबोरा, चैकुनी का शिव मंदिर, खर्क कार्की गांव में स्थित और तल्ली मादली का शिव मंदिर। अल्मोड़ा में जागेश्वर धाम, पिथुनी का मुंडेश्वर महादेव,
पातालदेवी, बानठौक का नौदेवल मंदिर समूह, बमनसुयाल का त्रिनेश्वर और एकादश रुद्र, चौसाला का प्राचीन शिव मंदिर, नंदादेवी स्थित पार्वतेश्वर और दीप चंद्रेश्वर, सैंज गांव का कपिलेश्वर महादेव, बल्सा में महारुद्रेश्वर मंदिर समूह और बागेश्वर जिले में बागनाथ, बद्रीनाथ मंदिर समूह, गढ़सेर गरुड़ मंदिर विशेष है।
- इसलिए हैं पिरामिड रुप में
- दो मंदिरों में पांच साल पहले शुरु हुई थी पूजा