Saturday, December 20, 2025
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काव्य संध्या में मिला राष्ट्रीय कवि संगम के सचिव कमलेश मृदु के पौत्र अथर्व को काव्यमय आशीष

फ्रंट न्यूज नेटवर्क ब्यूरो, बरेली। राष्ट्रीय कवि संगम बरेली (ब्रज प्रांत ) के तत्वावधान में बीसलपुर रोड स्थित मेगा मेंशन के सभागार में शुभाशीष काव्य संध्या आयोजित की गई। यह आयोजन कवि संगम के राष्ट्रीय मंत्री साहित्य भूषण कमलेश मौर्य “मृदु”के पौत्र अथर्व मौर्य के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता आचार्य देवेंद्र देव ने की। मुख्य अतिथि रहे सांसद छत्रपाल गंगवार। सबने अथर्व मौर्य को आशीर्वाद देते हुए उनके चिरायु व यशश्वी होने की कामना की। विशिष्ट अतिथि राजेश गौड़, कमल सक्सेना, डॉ महेश मधुकर व हिमांशु श्रोत्रिय निष्पक्ष रहे।

कवि सम्मेलन का संचालन संस्था के रोहिलखंड संयोजक रोहित राकेश ने किया।कवि सम्मेलन का प्रारंभ कमल सक्सेना की सरस्वती वंदना से हुआ।
हिमांशु श्रोत्रिय निष्पक्ष ने अपना काव्य पाठ करते हुए कहा-
ग़ज़ब का ज्ञान वेदों की पढ़ाई में निकलता है,
जगत में सच सनातन की दुहाई में निकलता है।
कहीं केशव कहीं शंकर कहीं देवी निकलती हैं,
खुदाई का करिश्मा हर खुदाई में निकलता है।
गीतकार कमल सक्सेना ने अपना मुक्तक पढ़ते हुए कहा कि,,,
पतझर जो आ गया तो बहारों की क्या खता। जो चाँद छिप गया है सितारों की क्या खता। था दोष किसी और का तो हमको क्यों लगा,
डूबी अगर ये नाव किनारों की क्या खता।
रोहित राकेश ने कहा
आंखें जो दो थी उनको भी तो चार कर गए
कमबख्त अपने दिल का भी व्यापार कर गए
डॉ महेश मधुकर ने अपना काव्य पाठ करते हुए कहा
जीवन का पथ बहुत कठिन है,
सॅंमल-सॅंभल कर चलना भाई।
है घुमाव हर एक मोड़ पर,
ठौर-ठौर बैठी कठिनाई।।
मुकेश मीत ने अपना काव्य पाठ करते हुए कहा
आसमां पे ढूँढें, आओ जमीं पे ढूँढें।
जो खो गईं हैं खुशियाँ उनको यहीं पे ढूँढें।
कवयित्री किरन प्रजापति दिलवारी ने कहा
अपने पलड़ों में सिर्फ सच को ही ये तोलेगी
भेद कैसा भी हो ये उसकी परत खोलेगी
मुझको चुप कैसे करा पाओगे बोलो आखिर
मैं न बोलूंगी तो फिर मेरी कलम बोलेगी
उमेश त्रिगुणायक अद्भुत ने अपना काव्य पाठ करते हुए कहा
ग़ैर की ख़ातिर दिया है,क्या करें।
ज़ख्म उसने फ़िर दिया है,क्या करें।
मूसलों से अब ज़िरह बेकार है,
ओखली में सिर दिया है,क्या करें।
संयोजक कमलेश मौर्य मृदु ने तब और अब की तुलना करते हुए गजब की गीतिका प्रस्तुत की
पहले तो थे बिना बात के घंटों तक बतियाते हम।
अब तो किसी से बिना स्वार्थ कै मिलने से कतराते हम।
अब हम इतने व्यवसायिक हैं नपी-तुली बातें करते,
जिससे जितना मतलब होता उतना ही मुस्काते हम।।
अपना काव्य पाठ करते हुए आचार्य देवेंद्र देव ने कहा
बहारें दें तुमको आशीष
थिरक कर मन के आंगन में।
घटाएं गम की मत छाएं
कभी भी उजले जीवन में।
कवियों व अतिथियों का स्वागत रामचंद्र मौर्य, डा लक्ष्मी मौर्य , दीपू चौहान ने किया व आयोजक अनुभव मौर्य ने आभार प्रकट किया। सभी कवियों व अतिथियों तथा उपस्थित जनों ने अथर्व मौर्य के दीर्घायु होने की कामना की। प्रीति भोज के साथ आयोजन का समापन हुआ।

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