एफएनएन, पटना : लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के संस्थापक व पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान ने सिनेमाई दुनिया की संक्षिप्त यात्रा के बाद राजनीति के मैदान में कदम बढ़ाना शुरू ही किया था कि पिता का साथ छूट गया। पिता ने बिहार में जो राजनीतिक जमीन तैयार की थी, उस पर नई फसल उगाने से पहले ही विरासत की लड़ाई में परिवार दो फाड़ हो गया।
रामविलास की लोजपा दो धड़ों में विभक्त हो चुकी थी। इस लोकसभा चुनाव में चिराग अब लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के साथ राजग के घटक दल के रूप में मैदान में हैं। राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी नाम के दूसरे धड़े का नेतृत्व उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के पास है।
स्वयं को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हनुमान बताने वाले चिराग राजग का हिस्सा तो बने रहे, पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से प्रतिकूल रिश्ता भी जगजाहिर रहा है। परिवारवाद के आरोप से भी बरी नहीं हैं। मूल पार्टी का सर्वेसर्वा बनने के बाद पारिवारिक फूट के कारण इसके दो धड़ों में विभाजन, नीतीश से हुई कड़वाहट से लेकर परिवारवाद के आरोप, आरक्षण से लेकर आध्यात्मिक गलियारे जैसे कई मुद्दों पर उन्होंने दैनिक जागरण पटना के समाचार संपादक अश्विनी से खुलकर खुलकर बातें कीं।
कई प्रश्न हैं, जो कहीं आपके पारिवारिक जीवन से जुड़े हैं, आपकी राजनीतिक यात्रा से भी। आरोप भी हैं। लोकसभा का यह पहला चुनाव है, जब आपके पिता की छत्रछाया नहीं है। सफलता या विफलता, दोनों के भागी भी आप ही…क्या यह बात आप मानते हैं?
जवाब: (कुछ पल शून्य में निहारने के बाद)। जी। आपने बिल्कुल सही कहा है। आप निश्चिंत होते हैं, जब पिता की छाया होती है। मेरे साथ भी था। पिता नहीं रहे तो एक बड़ी रिक्तता तो जीवन में आ ही गई, पर उनके सपनों को फलीभूत करने का भी दायित्व है। उन्होंने लोकसभा, राज्यसभा से लेकर तमाम बीसियों चुनाव देखे।
मेरा सौभाग्य रहा कि अपनी पार्टी के संसदीय दल के नेता के रूप में मैंने उनके संरक्षण में कार्य किया। उनके जाने के बाद मुश्किलों से बाहर निकल सका, यह उनका ही आशीष है। ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं वे हमारे आसपास हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि मेरे परिवार के पिछले तीन-चार साल किन कठिनाइयों से भरे रहे।
शायद आप उस पीड़ा की ओर इशारा कर रहे, जहां राजनीतिक विरासत की लड़ाई थी। पिता तक तो सब ठीक था, आपके आते ही अचानक यह सब क्यों?
जवाब: (इशारा चाचा की ओर), चलिए यह भी मान लिया कि मैं ही गलत था, लेकिन आप तो बड़े थे। मेरा कान पकड़ते, दो थप्पड़ लगाते। पापा नहीं रहे, परिवार में सबसे बड़े आप थे। पर, आपने तो मुझे जैसे मरने के लिए अकेला छोड़ दिया। नाम, पार्टी, सिंबल, सब छीन लिया। जब हमारा घर खाली कराया गया तो हम सड़क पर थे। नाना-नानी का घर नहीं होता तो रहने के लिए कोई जगह भी नहीं थी। मैं, मेरी मां तीन-चार साल में कहां हैं, किस हाल में, कभी सुध भी ली? तकलीफ तो है…।
बाद में ऐसी बयानबाजी…जिन्हें भाभी कहते नहीं थकते थे, वे आज चिराग की मां हो गईं! वह भाई जिसे मैंने बेटे की तरह देखा…आप दिल्ली में स्कूल में चले जाएं। वहां अभिभावक में मेरा ही नाम है। वह भाई अपनी चाची, यानी मेरी मां का नाम लेकर पुकारता है। वह भी ऐसे…रीना शर्मा पासवान। यह बात किसी से छिपी नहीं है, मेरी मां पंजाबी है, सरदारनी हैं। आप पता कर लें, सरदारों में शर्मा टाइटल होता है? सिंह, कौर जैसे टाइटल होते हैं। आप नाम भी ले रहे हैं तो इस तरह गलत।
…तो क्या अब सारे दरवाजे बंद?
जवाब: (बीच में ही रोकते हुए) इसके बाद भी कोई रास्ता बच जाता है क्या? ऐसा भी क्या कि बैठकर बात नहीं हो सकती थी। सारे रास्ते बंद कर दिए गए। जिस रात पार्टी टूटी, मीडिया के माध्यम से पता चला। मेरी मां फोन करती रहीं, उन्होंने फोन नहीं उठाया। जिस तरह से एकदम पराया कर दिया, समझ में नहीं आता। मैं उनके यहां गया, ऐसा व्यवहार कि कोई अपरिचित हूं। मैं भी इंसान हूं, मेरी भी भावनाएं हैं। इसमें क्या हो सकता था।
चुनाव में परिवारवाद पर तीखे बयान आ रहे हैं। आरोप तो आप पर भी है, आप भी इससे बरी नहीं। आपकी पार्टी के ही कई निकल गए?
जवाब: आपका इशारा मेरे जीजा को लेकर है। तकलीफ यह है कि उनके सारे व्यक्तित्व को इसमें समाहित कर दिया जाता है कि वे मेरे जीजा हैं, पर आप उनकी योग्यता को देखें। लंदन से पढ़ा एक व्यक्ति, एमबीए किया हुआ एक सफल बिजनेसमैन, जिनकी मां की भी राजनीतिक पृष्ठभूमि रही और समाज की सेवा की।
मैंने जमुई में एक बेटा बनकर सेवा की। जब पिता की कर्मभूमि हाजीपुर जा रहा हूं तो उसे छोड़ नहीं सकता। मेरे लिए जरूरी था कि मेरी जगह वैसे ही बेटा बनकर कोई कार्य करे, इसलिए ऐसे व्यक्ति को दायित्व सौंपा। वह बेहतर कर सकते हैं, ऐसा विश्वास है और मैं हाजीपुर में वैसा ही कर सकूं, जैसे मेरे पिता करते थे। आप सबको खुश नहीं कर सकते। कुछ निर्णय बेहतरी के लिए लेने पड़ते हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में तो नीतीश कुमार के साथ आपका छत्तीस का ही रिश्ता रहा। हालांकि, आपने यह जरूर कहा था कि व्यक्तिगत रूप से उनका बहुत सम्मान करते हैं, विरोध नीति को लेकर है। तो क्या चुनाव के समय राजग के प्लेटफार्म पर आते ही नीतियां सही हो गईं?
जवाब: हम लोग बड़े लक्ष्य की ओर अग्रसर हो रहे हैं और यह है अपने प्रधानमंत्री जी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाना। राजनीति का विद्यार्थी हूं। हम लोगों को सिखाया जाता है कि राष्ट्रहित से ऊपर कुछ भी नहीं है। उसके बाद गठबंधन, फिर दल, उसके बाद व्यक्तिगत, जब कुछ बच जाए तो अपने लिए सोच सकते हैं। ऐसे में राष्ट्रहित के लिए…मैं मानता हूं कि मेरे प्रधानमंत्री का तीसरी बार प्रधानमंत्री बनना जरूरी है।
इसके लिए गठबंधन का हित साधना जरूरी है और वह कहता है कि आज की तारीख में हम सब एक होकर एक मंच पर प्रधानमंत्री जी के लिए कार्य करें। यदि कहीं भी आपसी मतभेद हो जाते हैं तो उसका लाभ विपक्ष उठा लेगा, जो कतई सही नहीं है। ऐसे में मुझे लगता है कि बहुत कुशलता के साथ मुख्यमंत्री जी ने, दोनों पार्टियों ने इस नाजुक परिस्थिति को संभाला। अब प्राथमिकता तय करते हुए हम लोग लोकसभा चुनाव की ओर अग्रसर हो रहे हैं। मैं उनका हमेशा सम्मान करता हूं।
विपक्ष आरोप लगा रहा है, इंटरनेट मीडिया पर भी पोस्ट किए गए हैं कि भाजपा संविधान बदलने का प्रयास कर रही है, आरक्षण खत्म कर देगी। कुछ बोलेंगे? आप भी तो उसी मंच पर हैं…। आपके पिता तो आरक्षण के बड़े पैरोकार रहे?
जवाब: यह संभव है क्या? आरक्षण खैरात नहीं है, संवैधानिक अधिकार है, जो समाज के एक बड़े वर्ग को मुख्यधारा से जोड़ने को समर्पित है। इसे कोई खत्म कर सकता है क्या। मेरी पार्टी एक पहरेदार की तरह खड़ी है। मैं यह मानता हूं कि यह सरकार वंचितों, शोषितों का संरक्षण करने वाली है, जिसका नेतृत्व पिछड़ा वर्ग से आने वाले ऐसे प्रधानमंत्री कर रहे हैं, जिन्होंने कभी न कभी उस पीड़ा को झेला है, ऐसे में अपने सोच को समाज के हर वंचित वर्ग से जोड़कर देखते हैं।
यह भ्रम फैलाया जा रहा विपक्ष के द्वारा। अगर आपको याद हो, 2015 में भी यही किया था। आज दस साल हो गए, क्या हो गया। जो बोलते हैं आरक्षण को समाप्त कर दिया जाएगा, उनकी पार्टी हो या जिस गठबंधन में हैं, उसका सबसे प्रमुख दल कांग्रेस। उनके प्रधानमंत्री का वह पत्र ही पढ़ लें, उसमें क्या था।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्पष्ट कहा था कि मैं इसका (आरक्षण का) पक्षधर नहीं हूं और यह पत्र मुख्यमंत्रियों को भेजा था। हमारे प्रधानमंत्री जी ने कुछ दिनों पहले संसद में इसे साझा किया था। जो कह रहे हैं लोकतंत्र खतरे में है, वे बताएं जिस समय देश में आपातकाल लगा था, वह लोकतंत्र की हत्या नहीं थी? ये लोग केवल वैसे मुद्दे उठाना चाहते हैं, जिससे समाज में विभेद उत्पन्न हो, जबकि यह हर कोई जानता है कि कोई संविधान को बदल नहीं सकता।
प्रधानमंत्री तो हर मंच पर संविधान की शपथ लेकर बोलते हैं कि जो कार्य होगा इसी के अनुरूप होगा। जिन्होंने संविधान को सबसे ज्यादा मर्यादा दी, आश्चर्य है विपक्ष किस मुंह से उनके बारे में ऐसी बातें करता है।
चुनाव में मुद्दे महत्वपूर्ण होते हैं। क्या महंगाई और रोजगार भी मुद्दा है? आपका क्या सोचना है?
जवाब: बिल्कुल। इस पर बात क्यों नहीं होनी चाहिए। यह मुद्दा तो है ही। देश की बड़ी आबादी को रोजगार चाहिए। हर साल रोजगार सृजन हो। मुद्दा यह है कि वह कैसे हो। इसका रोडमैप क्या हो। नरेन्द्र मोदी ने जब सत्ता संभाली 125 करोड़ की आबादी थी। आज 140 करोड़ के करीब है। वे उस हिसाब से सोच रहे हैं।
दुनिया के मानचित्र पर भारत को एक सशक्त राष्ट्र के रूप में लेकर बढ़ रहे हैं। स्टार्टअप से लेकर सुदूर गांव के लोगों तक उज्ज्वला से लेकर उन्हें स्वावलंबन का मंत्र देकर आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने का कार्य इस मुद्दे की गंभीरता नहीं है? हम केवल बात नहीं, काम में विश्वास रखते हैं और वह लोगों को दिख रहा है। यह भरोसा ऐसे ही नहीं है। हमारी पार्टी, हमारा गठबंधन इसे अच्छी तरह समझता है।
लेकिन विपक्ष ने तो इसे ही मुद्दा बना रखा है। लोग भी रोजगार का प्रश्न तो उठा ही रहे हैं…?
जवाब: कौन उठा रहे हैं? वे, जो भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं। आप याद कीजिए न। वही केजरीवाल, अन्ना की सभा में दिल्ली में हाथ में पर्ची लेकर भ्रष्टाचार की बातें करने वाले आज कहां हैं? विपक्ष स्वयं को बचाने के लिए जूझ रहा है, हम राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए जूझ रहे हैं। बस यही अंतर है।
रोजगार का रोडमैप क्या हो सकता है? चलिए बिहार की ही बात कर लें। पलायन तो है, इससे इन्कार करेंगे? कुछ तो सोच में होगा, लोगों का जीवन कैसे बेहतर हो? उन्हें काम मिले?
जवाब: जी, है। सोच भी है, कार्यान्वित भी हो रहा और आगे भी बढ़िया से होगा। इस पर मेरा जो दृष्टिकोण है, उससे विपक्ष सहमत नहीं होगा। आप बिहार को देखें। यहां पर्यटन का बड़ा स्कोप है। वह भी आध्यात्मिक पर्यटन। यहां बुद्ध हैं, महावीर हैं, माता जानकी हैं…। एक आध्यात्मिक गलियारा है। उसे विकसित करना होगा। अयोध्या को देख लें। वहां का परिदृश्य बदल गया।
आप जाकर वहां के आर्थिक बदलाव को देखें। जो सांस्कृतिक चेतना आपके जीन में है, उससे आपको कोई अलग नहीं कर सकता है, यही समृद्धि की सबसे बड़ी ताकत है। जनमानस इससे जुड़ा है, वह हमारी सनातन संस्कृति है।
जीवन से जुड़ी उस आस्था में ही हमारा स्वाभिमान वास करता है और जिस रोजी-रोजगार की बात कर रहे, वह भी उसका बहुत बड़ा आधार है। आप कहीं भी, दुनिया के किसी भी कोने में चले जाएं। इसे समझना होगा। हम इससे रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं लेकिन जब इसकी बात करें तो बहुत लोगों को कष्ट होने लगता है।
किनको कष्ट होता है? इसमें कष्ट क्यों होगा?
जवाब: बहुत हैं। विपक्ष है, उनका सबसे बड़ा धड़ा कांग्रेस, आप राजद को ले लें। दक्षिण में एक नेता सनातन पर आपत्तिजनक टिप्पणी करता है, बिहार में आपके नेता टिप्पणी करते हैं और सब मुंह पर टेप चिपका लेते हैं। एक शब्द नहीं बोलते हैं। सनातन से इतनी नफरत, इतनी घृणा। क्यों? जहां उस संस्कृति के प्रति ही दुराव का भाव हो, वे इसमें रोजी-रोजगार की संभावनाएं कहां से देखेंगे। उन्हें कुछ नहीं दिखेगा। और, यह बात मैं पूरी गंभीरता से कह रहा हूं। समाज को मत बांटिए, लोग सब समझ रहे, वे चैतन्य हैं।
आपने बिहार के मुद्दे पर प्रश्न पूछे। यहां बाढ़ की समस्या है, नदियों को जोड़ना, किसानों को अधिक से अधिक सुविधा मिले, यह मेरे सोच में है। प्रधानमंत्री जी इस पर लगातार काम कर रहे, बिहार में भी काम हुआ है। हम सब मिलकर इसे आगे बढ़ाएंगे।
पहले फिल्म, अब राजनीति में एक मंच पर आप अभिनेत्री कंगना रनौत के साथ हैं? कैसा लग रहा है?
जवाब: (हंसते हुए…) हां, हम लोगों ने फिल्म ‘मिले न मिले हम’ में साथ काम किया था। अब राजनीति में साथ काम करेंगे। बातचीत होती रहती है।
होली के अवसर पर परिवार के बीच आपका नृत्य करता एक वीडियो खूब प्रसारित हुआ, जिसमें वे पूरे मनोयोग से ठुमके लगाते दिख रहे हैं। क्या गायन या नृत्य में रुचि है?
जवाब: होली पर बहनें, भानजे-भानजी वगैरह थे। एक खुशी का अवसर था, सो थोड़ी मस्ती हो गई। पता नहीं यह किसने इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट कर दिया। फिल्म में काम किया है, पर मुझे अच्छा नृत्य करना नहीं आता। संगीत सुनना पसंद है। खाने में चावल, अरहर की दाल और आम का अचार बहुत पसंद है। अचार भी मां के हाथ बना हुआ।
विवाह के बारे में क्या विचार है?
जवाब: अरे, अब इसे छोड़ दें। (हंसते और टालते हुए) अब उम्र कहां है…।